अटलजी दे सकते हैं श्री बुश को कुछ भीष्म उपदेश
और अब मेरे ही शब्दों में, वक्त आ गया है कि मुझे चलना चाहिए, धन्यवाद और शुभरात्रि। इन लफ्जों के साथ श्री अल गोर ने कल रात राष्ट्र के नाम संदेश में अपनी हार औपचारिक रूप से स्वीकार कर श्री जॉर्ज बुश को अमेरिका के 43वें राष्ट्रपति बनने की बधाई दी। यहां यह कहना पड़ेगा कि न सिर्फ अमेरिका की चुनाव प्रणाली, वरन यहां की पार्टी व्यवस्था में भी देश को आगे ले जाने की कला में भारतीय प्रधानमंत्री अटलजी श्री बुश को जरूर कुछ भीष्म उपदेश दे सकते हैं।
“श्री बुश को यह ताज बड़े बोझ के साथ मिला है” ये ही शब्द श्री गोर ने ठीक आठ साल पहले पूर्व राष्ट्रपति श्री जॉर्ज बुश के लिए कहे थे कि अब समय आ गया है और उन्हें चले जाना चाहिए। विडंबना और कीर्तिमानों की फेहरिस्त तो इस राष्ट्रपति चुनाव में बहुत लंबी है।
(1) 271 वोट पाकर सिर्फ एक वोट से निर्वाचक मंडल में जीतकर राष्ट्रपति बनने वाले श्री जॉर्ज बुश पहले व्यक्ति हैं।
(2) इतिहास में चौथी और इस शताब्दी में पहली बार बगैर जनमत हासिल किए भी 54 वर्षीय श्री जॉर्ज बुश राष्ट्रपति बन रहे हैं।
(3) 1824 में जॉन क्विंसी एडम्स की तरह वे अमेरिकी इतिहास में दूसरे पुत्र हैं, जो पिता के बाद राष्ट्रपति बन रहे हैं। जॉन क्विंसी एडम्स भी जनमत हारकर जीते थे।
(4) श्री गोर की तरह उन्होंने भी टेनिसी के नागरिक को ही हराया था।
(5) शताब्दी में पहली बार कैलिफोर्निया के चुनाव हारकर भी कोई राष्ट्रपति बना है।
(6) सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राष्ट्रपति बनने वाले भी श्री जॉर्ज बुश 1876 के बाद पहले राष्ट्रपति हैं।
परसों रात को 10 बजे सुप्रीम कोर्ट के 5-4 वोट से फ्लोरिडा में पुनर्गणना रोकने के बाद यह तय था कि पिछले 36 दिनों की चुनावी रामायण का उत्तरकांड आ गया है। अमेरिकावासी भी कुछ-कुछ ऊब से गए थे, इस कभी न खत्म होने वाले मैच से। यह वह देश है जहां कुछ घंटे से ज्यादा तो कोई खेल स्पर्धा भी नहीं चलती। रात 9 बजे, आठ मिनट के अपने संदेश में श्री अल गोर ने ये स्पष्ट कहा कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले से सहमत नहीं हैं, पर उसका सम्मान और आदर करेंगे और श्री जॉर्ज बुश के राष्ट्रपति काल में उन्हें पूर्ण सहयोग देंगे। इसके बाद वे क्या करेंगे, उन्होंने नहीं सोचा, अपने गृह राज्य टेनिसी जाकर पुराने रिश्तों को ठीक-ठाक करेंगे। ज्ञात रहे कि श्री अल गोर अपने गृहराज्य में भी जीते नहीं। सबसे पहले उन्होंने श्री बुश को बधाई संदेश का फोन किया और यह भी कहा कि मैं आज आपको दोबारा फोन करके बधाई वापस नहीं लूंगा। सोचिए श्री गोर क्या महसूस कर रहे होंगे जब वे 17 महीनों से दिन-रात के इतने प्रचार के बाद और सिर्फ निर्वाचक मंडल में एक मत से सुप्रीम कोर्ट के फैसले से चुनाव हार गए। 24 वर्षों से लोकसेवा में रहे श्री गोर, जिस कुर्सी के आठ साल बहुत करीब रहे, परंतु वह उनके हाथ से दूर चली गई, तब उन्हें कैसा लगा होगा। हालांकि उन्होंने यह पन्ना खुला छोड़ दिया है कि वे फिर से चुनाव लड़ेंगे या नहीं।
श्री बुश को यह ताज बड़े बोझ के साथ मिला है। सीनेट में बिलकुल 50-50 सदस्यों की बराबरी है और वीटो का वोट हमेशा उपराष्ट्रपति डिक चैनी को डालना पड़ेगा। आठ सालों से बढ़ती आर्थिक व्यवस्था और पूंजी बाजार भी कुछ थमते नजर आ रहे हैं। श्री गोर के भाषण के ठीक एक घंटे बाद अपने उद्बोधन में श्री बुश ने देश से यह वादा किया कि वे पार्टियों से ऊपर उठकर देश के हित में काम करेंगे। श्री बुश के साथ सकारात्मक पक्ष यह भी है कि उनके अधिकांश मंत्रिमंडलीय सदस्य उन्हें धरोहर में मिले हैं। सर्वश्री डिक चैनी, एन्ड्रयू कॉर्ड, जनरल कॉलिन पॉवेल (जिन्हें विदेश मंत्री बनाने की प्रबल संभावनाएं हैं) आदि सभी उनके पिता के साथ थे। ये सब अनुभवी हैं, लेकिन शीतयुद्ध से लेकर आज का विश्व और अमेरिका की राजनीति काफी अलग है।
अमेरिकी क्या सोचते हैं श्री बुश के बारे में-और वह भी ऐसी स्थितियों में चुने जाने पर-
काफी मिश्रित प्रतिक्रिया है। कुछ का मानना है कि ये ठीक हुआ, कुछ कहते हैं, बड़ा बुरा हुआ। निष्कर्ष में यह कि अब श्री बुश के नेतृत्व की परीक्षा रहेगी कि वे सारे देश को कैसे साथ लेकर चलते हैं। भारत के प्रति श्री बुश का रुख भी मैत्रीपूर्ण ही होना चाहिए। अंत में अवलोकन करते हुए यह लगता है कि श्री गोर ने अपने पार्टी के ब्रह्मास्त्र यानी श्री क्लिंटन का चुनाव प्रचार में उपयोग न करने की शायद कीमत चुकाई है। श्री क्लिंटन के व्यक्तिगत चरित्र के बाद भी श्रीमती क्लिंटन ने उनसे प्रचार कराया और जीती भीं। क्या श्रीमती हिलेरी तेज थीं और श्री गोर अति आदर्शवान और भावुक। ऐसा जवाब तो अब तारीख ही देगी। तो करिए इंतजार 20 जनवरी की सुबह का, जब श्री बुश का राज्याभिषेक होगा।