बजट बाद बीएसई इंडेक्स 3000 पार कर जाएगा?

27 फ़रवरी 1992

वर्तमान तेजी के शेयरों में जहां, एसीसी, गुजरात फर्टिलाइजर, आईटीसी आदि की घट-बढ़ सेन्सेक्स में बखूबी प्रतिबिंबित होती है, वहीं अपोलो टायर, टाटा टी और बजाज ऑटो जैसे शेयरों का सेन्सेक्स पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके अलावा सेन्सेक्स में हिंद मोटर, प्रीमियर ऑटो, फिलिप्स और जेनिथ जैसे शेयर भी सम्मिलित हैं जो कि वर्तमान में कम सक्रिय हैं। सेन्सेक्स की बनावट उसके 30 शेयरों के मार्केट केपिटलाइजेशन के कुल जोड़ पर आधारित है। इससे स्पष्ट विदित होता है कि सेन्सेक्स पर ऊंचे भाव और बड़ी पूंजी वाले शेयरों का प्रभाव बहुत अधिक पड़ता है। एक मोटे अनुमान के अनुसार सेन्सेक्स में लगभग 30 प्रतिशत योगदान रिलायंस और टिस्को का ही है और रिलायंस के शेयर के मूल्य में सिर्फ एक रुपए के फर्क से सेन्सेक्स में लगभग 0.9 का समानान्तर परिवर्तन हो जाता है। दूसरे शब्दों में रिलायंस में सिर्फ एक रुपए के फर्क को सेन्सेक्स में बेलेंस करने के लिए जेनिथ जैसे शेयर में लगभग 25 रुपए का विपरीत परिवर्तन होना चाहिए। बीएसई इंडेक्स के अलावा 100 शेयर राष्ट्रीय शेयर सूचकांक, 72 शेयर इकोनोमिक टाइम्स शेयर सूचकांक, दिल्ली स्टाक एक्सचेंज सूचकांक और मद्रास स्टाक एक्सचेंज सूचकांक भी शेयर भावों के रुख का पैमाना है किंतु इन सभी का प्रचलन और उपयोग अधिक शेयरों पर आधारित होने के बावजूद सेन्सेक्स से बहुत कम है।

शेयरों का बढ़ता आकर्षण

भारत में शेयर व्यवसाय का इतिहास बहुत समृद्ध है। वर्तमान में दलाल स्ट्रीट पर 27 मंजिला फीरोज जीजीभाई टावर्स में स्थित बंबई स्टाक एक्सचेंज का जन्म 1875 में बंबई के मीडोज स्ट्रीट के बरगद वृक्षों तले ‘नेटिव शेयर एंड स्टाक ब्रोकर्स एसोसिएशन’ के रूप में हुआ था। अहमदाबाद में यह शुरुआत 1894 में हुई और कलकत्ता में इसी शताब्दी के प्रारंभ 1908 में। वैसे इतने पुरातन होने के बावजूद भी शेयर व्यवसाय को सीमित दायरे से सार्वजनिक तौर पर फैलाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह है धीरूभाई अंबानी को। रिलायंस के नित नए निर्गम और अंशों के द्वारा शेयर होल्डरों को दी गई शानदार कमाई ने ही इसी ‘शेयर बूम’ की वास्तविक शुरुआत की थी। राजीव गांधी, वि.प्र. सिंह जोड़ी के कार्यकाल के आरंभिक वर्षों में भी शेयरों में खासी तेजी रही, जिसकी पुनरावृत्ति वर्ष 1990 में कुवैत-इराक मसले के पूर्व तक रही, परंतु वर्तमान में चल रही तेजी तो हर मायने में ऐतिहासिक है।

आकर्षण का कारण

शेयरों में समाज के सभी आयु, वर्ग, लिंग और तबके के लोगों की रुचि के कई कारण हैं। शायद यही एक ऐसा व्यवसाय है, जिसमें सिर्फ 500 रुपए (एक निर्गम में लगाई जा सकने वाली न्यूनतम राशि) से लेकर 500 करोड़ रुपए (हर्षद मेहता-निमेष शाह की अनुमानित शेयर सम्पत्ति) तक पूंजी निवेश किया जा सकता है। शेयर नकद मुद्रा की ही तरह तरल और आसानी से हस्तांतरित तो है ही, साथ-साथ इनमें निवेशित पूंजी में कई गुना वृद्धि की भी संभावनाएँ रहती हैं। व्यवसाय के तौर तरीके की प्रारंभिक जानकारी तो चंद दिनों में ही पाई जा सकती है, हालांकि इस व्यवसाय की हर विधा में पारंगत हो पाने के लिए पूरा जीवन भी कम है। यहां यह उल्लेखनीय है कि अत्यंत सुगम और सरल पैसा कमाने के साधन के रूप में भी कई लोग इस व्यवसाय की ओर लालच और लोलुपता से आए हैं, परंतु लंबी दौड़ में क्षणिक तेजी-मंदी और पूंजीविहीन सट्‌टात्मक व्यवसाय के घातक सिद्ध होने की भी संभावनाएं अधिक हैं। हां, अध्ययन और विश्लेषण के पश्चात सुदृढ़ विकासशील कंपनियों में किया गया पूंजी निवेश पीढ़ियों तक धरोहर का रूप ले सकता है।

सेंसेक्स 2500

शेयर बाजार के दो प्रमुख अवयव है प्राइमरी मार्केट (नए सार्वजनिक/राइट निर्गमों में पूजी निवेश) एवं सेकंडरी मार्केट (बाजार में सूचीबद्ध शेयरों में खरीद-बेच) इन्हीं का विगत दिनों का लेखा-जोखा इस प्रकार है-

सेकंडरी मार्केट- 1990 के उत्तरार्ध में जब पश्चिमी एशिया में कुवैत पर इराकी आक्रमण से विश्व में अस्थिरता छा गई और भारत में मंडल-मंदिर मुद्दों को लेकर राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बन गया, तब 9 अक्टूबर 1990 को 1602 के रिकार्ड स्तर से सेंसेक्स 25 जनवरी 1991 आते तक सिर्फ तीन महीनों में लगभग 600 पाइंट गिरकर 1000 से नीचे आ गया था। इसी समयावधि में भी सभी शेयरों का कुल ‘मार्केट केपिटलाइजेशन’ (कंपनी की प्रदत्त पूंजी और उसके अंश के बाजार मूल्य का गुणा) 1,00,000 करोड़ रुपए से गिरकर सिर्फ 60,000 करोड़ रुपए रह गया था। किंतु इस बिंदु के बाद सेकंडरी मार्केट लगातार चढ़ता ही रहा। फरवरी 91 में पूर्ण बजट के स्थगित होने पर इंडेक्स 1225 तक पहुंच गया, जो कि वर्तमान सरकार के 21 जून 91 को पदभार संभालने के दिन तक 1361 तक सुधर गया था। 1991 के वर्षांत तक सभी शेयरों का मार्केट केपिटलाइजेशन बढ़कर 1,25,000 करोड़ रुपए के शीर्ष तक पहुंच गया था। 1991 में शेयरों का राष्ट्रीय सकल वार्षिक कारोबार (कुल वार्षिक खरीदी-बेची) 70,000 करोड़ रुपए का था, जो कि विगत वर्ष के 50,000 करोड़ रुपए के व्यवसाय के मुकाबले 40 प्रतिशत बेहतर था। ज्ञातव्य रहे कि पूरे देश में शेयरों के कारोबार का 75 प्रतिशत कामकाज बीएसई में ही होता है। इन आंकड़ों से यह भी पता लगता है कि इतना अथाह पैसा लगभग 6000 अंशों के पीछे लगा है, तो मांग आपूर्ति-नियम के अनुसार भाव वृद्धि निश्चित है। गत वर्ष के आंकड़ें से एक मोटा अनुमान लगाया जा सकता है कि देशभर में शेयर दलालों ने शुद्ध दलाली से ही लगभग 700 करोड़ रुपए की आमदनी अर्जित की है, इसमें जॉबिंग से हुई कमाई शामिल नहीं है।

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