बजट बाद बीएसई इंडेक्स 3000 पार कर जाएगा?

27 फ़रवरी 1992

बजट बाद बीएसई इंडेक्स 3000 पार कर जाएगा?चौंकिए नहीं- क्या आप दो वर्ष पूर्व यह कल्पना भी कर सकते थे कि विश्व की महाशक्ति सोवियत संघ निकट भविष्य में अस्तित्वहीन हो जाएगी? या फिर बीसवीं शताब्दी के सबसे महत्वपूर्ण राजनयिक के रूप में पहचाने जाने वाले गोर्बाचेव विश्व पटल से पूर्णतः ओझल हो जाएंगे? इसी तर्ज में भारतीय मानस में सदा ही से ‘डर‘ और ‘खौफ’ की दृष्टि से देखे जाने वाले वार्षिक बजट से शेयर बाजार जैसे संवेदनशील व्यवसाय में और तेजी आएगी, इस कल्पना का प्रस्फुटित होना ही अपने आप में एक घटना है।

किंतु पूर्वाग्रहों से परे होकर अगर हम वर्तमान सरकार और उसके द्वारा निरंतर किए जा रहे आर्थिक परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए भविष्य का अंदाज लगाने का प्रयास करें, तो शेयर बाजार में तेजड़ियों की मजबूत गिरफ्त में कोई ढील अभी कहीं नजर नहीं आती है। लगता है कि इंडेक्स के 3000 पर पहुंचने की भूमिका तैयार है।

नरसिंहराव सरकार के सत्ता संभालने के बाद बीएसई इंडेक्स लगभग 1000 बिंदु ऊंचा हुआ है। जनवरी 92 में एक ही महीने में इंडेक्स में लगभग 400 बिंदुओं की तेजी आई है और वर्तमान 2500 का स्तर संभावित 3000 से सिर्फ 500 बिंदु ही दूर है। आज जब युवा वर्ग के ‘हीरो‘ गावसकर-कपिल देव या अनिल कपूर-सलमान खान से हटकर हर्षद मेहता-निमेष शाह हो गए हैं, तब तो लगता है कि इस वर्ष इंडेक्स चढ़ाई 3000 अंतिम लक्ष्य नहीं, वरन 3500 तक की यात्रा में एक उल्लेखनीय पड़ाव पर सिद्ध हो सकता है। पिछली 24 जुलाई को जब डॉ. मनमोहनसिंह का बजट आया था, तब बीएसई इंडेक्स 1500 के लगभग था। इस बजट के समय इंडेक्स 1000 पाइंट बढ़कर 2500 के इर्दगिर्द पहुंच गया है।

उस दिन हुई महत्वपूर्ण घटना/घोषणा; महत्वपूर्ण भावों सहित उस दिन का सेन्सेक्स उच्चांक; (विगत बंद सूचकांक से उच्चांक का फर्क)

बजट के बाद भी सरकार इंडेक्स को और सुदृढ़ देखना चाहेगी, इसका सीधा अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले बजट में इस बजट तक की अवधि में लगभग हर हफ्ते अर्थव्यवस्था के सुधार और उदारीकरण के हेतु सरकार कोई न कोई ऐसी घोषणा करती रही, जिससे कि बाजार का रुख अनुकूल बना रहा। इससे साफ जाहिर होता है कि वर्तमान सरकार केपिटल मार्केट को अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण स्थान देना चाहती है, जिसके लिए अत्यावश्यक है कि सेंसेक्स ठोस बना रहे।

यह तथ्य तीन आंकड़ों से और भी स्पष्ट हो जाता है। पहला, 1992 में अब तक सेंसेक्स में लगभग 500 पाइंट की वृद्धि हो चुकी है। दूसरा, पिछले बजट से इस बजट की समयावधि में ऐसा 12 बार हुआ है कि बी.एस.ई. इंडेक्स में विगत दिन में बंद सूचकांक से 5 प्रतिशत से भी अधिक की वृद्धि अगले दिन आई है। दूसरे शब्दों में जुलाई से अब तक ऐसा लगभग 20 बार हुआ है कि सेंसेक्स में किसी दिन के उच्चांक और पिछले बंद सूचकांक में 40 से अधिक पाइंट की उल्लेखनीय तेजी आई हो। ये बढ़त एक्सचेंज अधिकारियों द्वारा समय-समय पर लगाई गई कड़ी पाबंदियों और शर्तों, म्युचुअल फंड व वित्तीय संस्थाओं द्वारा भारी बेचान, ‘प्राफिट बुकिंग’ और ‘टेक्नीकल करेक्शन‘ के बाद भी अनवरत बनी रही है, यही इसकी सुदृढ़ता का सबसे बड़ा परिचायक है।

नीचे क्रमानुगत पिछले बजट से अभी तक सेन्सेक्स की चुनिंदा छलांगों का वर्णन दिया हुआ है, जो कि इस प्रकार है : दिनांक उस दिन हुई महत्वपूर्ण घटना/घोषणा; महत्वपूर्ण भावों सहित उस दिन का सेन्सेक्स उच्चांक; (विगत बंद सूचकांक से उच्चांक का फर्क)।

19 जुलाई 91 : अवमूल्यन का अंतिम दौर व बैंक ऑफ इंग्लैंड को गिरवी रखे सोने की चौथी और अंतिम खेप रवाना; एसीसी 2580, एल.एंडटी. 110, टिस्को 214, 1455.75 (+13.22)

24 जुलाई : 7719 करोड़ के घाटे का बजट पेश एवं नई औद्योगिक नीति के अंतर्गत लाइसेंस राज का अंत; 1561.08 ( 75.32)

26 जुलाई : सरकार द्वारा कंपनियों में निवेश हेतु विदेशी पूंजी की अंश सीमा ५१ प्रतिशत तक बढ़ा देने का विचार; 1630.27 ( 74.74)

29 जुलाई : बजट के बाद स्टॉक एक्सचेंज में भारी तेजी; एसीसी 3200, अपोलो टॉयर 105, 1679.95 ( 79.79)

2 अगस्त : नए सेटलमेंट की शुरुआत के साथ लगातार चौथे वर्ष अच्छे मानसून के आसार, 1703.15 ( 54.14)

13 अगस्त : निर्यात की 16 और आयात की 20 महत्वपूर्ण वस्तुओं को विशिष्ट सूची से हटाकर ओ.जी.एल. में रखा, 1705.78 ( 41.72)

22 अगस्त : उत्पाद एवं आयात शुल्क दरों में उदारीकरण एवं सोवियत संघ में क्रांति की असफलता के बाद गोर्बाचेव पुनः सत्ता में; 1777.91 ( 70.14)

23 अगस्त : विश्व बैंक ने भारत को 4 अरब डॉलर के कर्ज की स्वीकृति दी; 1810.35 ( 58.05)

12 सितम्बर : अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष ने सीसीएफएफ योजना के तहत भारत को 63.50 करोड़ डॉलर का कर्जा दिया; एसीसी 3800, सेंचुरी 6000, 1861.75 ( 51.03)

16 सितम्बर : वार्षिक बजट एवं वित्तीय विधेयक संसद द्वारा पारित; एसीसी 3900, आई.टी.सी. 347; 1992.34 ( 50.60)

27 सितम्बर : राष्ट्रपति द्वारा एम.आर.टी.पी. में संशोधन के साथ ही प्रवेश पूर्व प्रतिबंध, स्थापना, विस्तार, विलय के अधिकांश मामलों में कोई सरकारी स्वीकृति की आवश्यकता नहीं; 1870.04 ( 83.12)

16 अक्टूबर : डॉ. सिंह द्वारा बैंकाक में पत्रकार परिषद में बीमार सार्वजनिक इकाइयों को बंद करने की घोषणा; 1779.04 ( 55.04)

28 अक्टूबर : अप्रवासी भारतीयों को होटल, पर्यटन, जहाजरानी जैसे उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में शत-प्रतिशत पूंजी निवेश की अनुमति; 1993.16 (+87.64)

30 अक्टूबर : बैंक ऑफ इंग्लैंड में गिरवी रखा पूरा 29 टन सोना सरकार ने छुड़ा लिया है; 1893.77 ( 32.27)

1 नवंबर : आई.एम.एफ. द्वारा भारत को 2.262 अरब डॉलर का ऋण स्वीकृत; 1917.06 ( 27.42)

19 नवंबर : सरकार द्वारा घोषणा कि विदेशी कंपनियां भी म्युचुअल फंडों के जरिये भारतीय पूंजी बाजार में भाग ले सकती हैं; सेंचुरी 7000, जी.ई. शिपिंग 114; 1924.15 ( 53.15)

23 दिसंबर : स्टील के विनियंत्रीकरण की प्रबल अफवाह; 1915.58 ( 42.30)

1 जनवरी 92 : नववर्ष में बाजार का रुख अत्यंत प्रबल; अपोलो टॉयर 174, आई.टी.सी. 307; 1957.33 ( 48.48)

3 जनवरी 92 : बी.एस.ई. द्वारा 12 सक्रिय अंश जैसे जयप्रकाश, आई.सी.आई.सी.आई., वीडियोकोन अप्लाइंस आदि ‘स्पेसिफाइड’ श्रेणी में किए गए; 2007.22 ( 38.06)

17 जनवरी : स्टील का विनियंत्रीकरण घोषित; टिस्को 302, मुकुंद 257, 2118.15 ( 115.55)

29 जनवरी : भारत में कामकाज की दृष्टि से फेरा कंपनियों को भी भारतीय कंपनियों के समकक्ष प्रतिबंध ही लागू; 2214.22 ( 42.11)

30 जनवरी : बिजलीघरों के निर्माण में शत प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश की अनुमति; 2300.27 ( 86.05)

इस प्रकार सिर्फ जनवरी 92 में ही सेंसेक्स में 390.91 अंक की वृद्धि अंकित की गई।

6 फरवरी : बी.एस.ई. द्वारा कठोर मार्जिन और कामकाज संबंधी प्रतिबंधों के बावजूद तेजी बरकरार, एसीसी 4000, अपोलो टायर 252; 2314.22 ( 25.79)

12 फरवरी : कश्मीर सीमा पर युद्ध की आशंका के बादल छंटे, एसीसी 4800, ब्रुक बांड 222, 2337.75 ( 64.28)

17 फरवरी : म्युचुअल फंड व्यवसाय में नियमों के पालन के साथ निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी अनुमति; 2441.68 ( 118.89)

24 फरवरी : राष्ट्रपति के अभिभाषण में आर्थिक बदलावों के कार्यक्रमों को पूरी तरह जारी रखने का सरकार का दृढ़ संकल्प; 2491.27 ( 36.61)

सेंसेक्स 3000?

वर्ष 1992-93 का वार्षिक बजट अब सिर्फ चंद घंटों दूर है। रेल बजट में माल और यात्री भाड़े की वृद्धि का अनुमान सही निकला है। आम बजट और उसके अर्थव्यवस्था एवं शेयर बाजार पर प्रभाव के बारे में समग्र अटकलें लगाना तो मुश्किल कार्य है, लेकिन शेयर बाजार हेतु अनुकूल और प्रतिकूल संभावनाओं की एक सूची पर जरूर नजर डाली जा सकती है।

अनुकूल संभावनाएं :

  • राष्ट्रपति के अभिभाषण और सरकार की विभिन्न समयों पर घोषणा से साफ जाहिर है कि उदारीकरण और सरलीकरण की प्रक्रिया अपरिवर्तनीय रूप से जारी रहेगी।
  • सरकार शेयर बाजार को समूची अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अभिन्न अंग बनाना चाहती है।
  • भारतीय मुद्रा को निकट भविष्य में विदेशी विनिमय हेतु पूर्णतः परिवर्तनीय बनाया जाएगा।
  • बजट में अथवा उसके बाद कंपनी अधिनियम, फेरा एवं एमआरटीपी में मूलभूत बदलाव और सरलीकरण के आसार।
  • नई ड्रग नीति एवं खाद कीमतों में बदलाव की घोषणा निकटस्थ।
  • कस्टम दरों में कमी के बाद भारी सामान के आयात को बढ़ावा।
  • आयात कर की दरों में भारी कटौती की प्रबल संभावना।
  • सरकार ने दो बार में सार्वजनिक उपक्रमों के लगभग 2500 करोड़ के अंश म्युचुअल फंड और वित्तीय संस्थाओं को बेचे हैं। अब इनके अतिशीघ्र स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होने की खबर है। इससे एक और जहां अच्छी कंपनियों के अंश बाजार में जनता की शेयर मांग की आपूर्ति करेंगे, वहीं सरकार को बजट घाटे में कमी करने का अच्छा साधन मिल गया है। वर्तमान सरकारी विनिवेश की दर 20 प्रतिशत से बढ़ाकर भविष्य में 49 प्रतिशत तक करने का विचार।
  • बीमार उद्योगों हेतु निर्गम-नीति की निकट भविष्य में घोषणा संभावित।
  • बहुत शीघ्र रिलायंस, टिस्को और एस्सार समूह के अंश अंतरराष्ट्रीय स्टॉक एक्सचेंजों में सूचीबद्ध होने वाले हैं। इस हेतु इजाजत दी जा चुकी है।
  • वर्तमान में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 10,000 करोड़ रुपए से भी अधिक की संतोषजनक स्थिति में है।
  • वर्तमान वित्तीय वर्ष में भारत के निर्यात में डॉलर मूल्यों में 6 प्रतिशत वृद्धि हुई है।
  • आठवी योजना आगामी 1 अप्रैल से कार्यान्वयन में आ जाएगी।
  • पंजाब में चुनाव संपन्न होने के बाद अब लोकसभा में कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत सिर्फ 5 सीटों-दूर रह गया है। इस स्थिति में बजट प्रस्तावों को अत्यधिक राजनीतिक दबावों में आकर परिवर्तन करने की जरूरत शायद ही उपस्थित होगी।
  • सरकार द्वारा ‘सेबी’ को संवैधानिक मान्यता प्रदान करना कैपिटल मार्केट के लिए स्वागत योग्य कदम है।

प्रतिकूल संभावनाएं :

  • अधिकांश कंपनियों के वर्तमान वित्तीय वर्ष के द्वितीय अर्द्धवार्षिक परिणाम नरम रहने की आशंका।
  • विगत चार वर्षों से लगातार अच्छे मानसून के बाद इस वर्ष अच्छा मानसून संदिग्ध।
  • मुद्रास्फीति-महंगाई की मार लगातार जारी; वर्तमान दर 12 प्रतिशत।
  • समूचे विश्व में उद्योगों को भारी मंदी का सामना करना पड़ रहा है।
  • भारत में औद्योगिक प्रगति की वर्तमान दर तो ‘नेगेटिव’ में खिसक गई है।
  • उच्च ब्याज दरों और कर्ज पर कटौती का दौर जारी रहने की पूरी संभावनाएं हैं।
  • बजट घाटे को जीडीपी के वर्तमान 6.5 प्रतिशत से 5.0 प्रतिशत तक लाने की आईएमएफ की बाध्यता, ऐसा करने पर विकास कार्यों में अवरोध और भारी मंदी की आशंका।
  • बजट घाटे को कम करने हेतु व्यक्तिगत और कंपनीगत क्षेत्रों में नए कराधान प्रस्ताव अवश्यंभावी।
  • इन सब मुद्दों को मद्देनजर रखते हुए भी हर क्षेत्र में यह विचार दृढ़ता से व्यक्त किया जा रहा है कि शेयरों की वर्तमान तेजी का दौर बरकरार रहेगा और इस वर्षान्त तक सेंसेक्स 3500 की सीमा निश्चित पार कर लेगा।
  • विचार तो जानकार सोच समझकर ही प्रकट करते हैं, परंतु भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है, इसका निर्णय सिर्फ समय ही करेगा।
  • इंडेक्स क्या है?

    वैसे तो भारत में शेयर बाजारों का रुख बयान करने के लिए कई इंडेक्स (शेयर मूल्य सूचकांक) प्रचलन में हैं, परंतु अगर सर्वाधिक मान्य और लोकप्रिय मापदंड का जिक्र उठता हो तो वह निस्संदेह बंबई स्टाक एक्सचेंज संवेदनशील सूचकांक (बी.एस.ई. इंडेक्स अथवा सेन्सेक्स) ही है। ऐसा कदापि नहीं है कि सेन्सेक्स शेयर बाजारों में रुख का अत्यंत सटीक और समग्र मापक है, अपितु वह तो सिर्फ बंबई स्टाक एक्सचेंज के 30 सक्रिय शेयरों के भाव पर आधारित है। परंतु शेयरों की घट-बढ़ के ‘थर्मामीटर’ या ‘बेरोमीटर’ के रूप में पूरे देश में अधिकांश लोग सेन्सेक्स का ही उपयोग करते हैं। वर्तमान बीएसई इंडेक्स की संरचना वर्ष 1986 में की गई, जिसमें वर्ष 1978-79 के भावों को आधार सूचकांक 100 माना गया था। सेन्सेक्स की 30 स्क्रिपों का चुनाव भी उन शेयरों की तात्कालिक लोकप्रियता और सक्रियता के आधार पर किया गया, जिनमें से आज सिर्फ बलारपुर इंडस्ट्रीज और इंडियन होटल की बंबई में ‘नॉन स्पेसीफाइड’ श्रेणी के शेयरों में से हैं, बाकी 28 सभी ‘स्फेसीफाइड’ शेयर हैं।

    वर्तमान तेजी के शेयरों में जहां, एसीसी, गुजरात फर्टिलाइजर, आईटीसी आदि की घट-बढ़ सेन्सेक्स में बखूबी प्रतिबिंबित होती है, वहीं अपोलो टायर, टाटा टी और बजाज ऑटो जैसे शेयरों का सेन्सेक्स पर कोई सीधा प्रभाव नहीं पड़ता है। इसके अलावा सेन्सेक्स में हिंद मोटर, प्रीमियर ऑटो, फिलिप्स और जेनिथ जैसे शेयर भी सम्मिलित हैं जो कि वर्तमान में कम सक्रिय हैं। सेन्सेक्स की बनावट उसके 30 शेयरों के मार्केट केपिटलाइजेशन के कुल जोड़ पर आधारित है। इससे स्पष्ट विदित होता है कि सेन्सेक्स पर ऊंचे भाव और बड़ी पूंजी वाले शेयरों का प्रभाव बहुत अधिक पड़ता है। एक मोटे अनुमान के अनुसार सेन्सेक्स में लगभग 30 प्रतिशत योगदान रिलायंस और टिस्को का ही है और रिलायंस के शेयर के मूल्य में सिर्फ एक रुपए के फर्क से सेन्सेक्स में लगभग 0.9 का समानान्तर परिवर्तन हो जाता है। दूसरे शब्दों में रिलायंस में सिर्फ एक रुपए के फर्क को सेन्सेक्स में बेलेंस करने के लिए जेनिथ जैसे शेयर में लगभग 25 रुपए का विपरीत परिवर्तन होना चाहिए। बीएसई इंडेक्स के अलावा 100 शेयर राष्ट्रीय शेयर सूचकांक, 72 शेयर इकोनोमिक टाइम्स शेयर सूचकांक, दिल्ली स्टाक एक्सचेंज सूचकांक और मद्रास स्टाक एक्सचेंज सूचकांक भी शेयर भावों के रुख का पैमाना है किंतु इन सभी का प्रचलन और उपयोग अधिक शेयरों पर आधारित होने के बावजूद सेन्सेक्स से बहुत कम है।

    शेयरों का बढ़ता आकर्षण

    भारत में शेयर व्यवसाय का इतिहास बहुत समृद्ध है। वर्तमान में दलाल स्ट्रीट पर 27 मंजिला फीरोज जीजीभाई टावर्स में स्थित बंबई स्टाक एक्सचेंज का जन्म 1875 में बंबई के मीडोज स्ट्रीट के बरगद वृक्षों तले ‘नेटिव शेयर एंड स्टाक ब्रोकर्स एसोसिएशन’ के रूप में हुआ था। अहमदाबाद में यह शुरुआत 1894 में हुई और कलकत्ता में इसी शताब्दी के प्रारंभ 1908 में। वैसे इतने पुरातन होने के बावजूद भी शेयर व्यवसाय को सीमित दायरे से सार्वजनिक तौर पर फैलाने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह है धीरूभाई अंबानी को। रिलायंस के नित नए निर्गम और अंशों के द्वारा शेयर होल्डरों को दी गई शानदार कमाई ने ही इसी ‘शेयर बूम’ की वास्तविक शुरुआत की थी। राजीव गांधी, वि.प्र. सिंह जोड़ी के कार्यकाल के आरंभिक वर्षों में भी शेयरों में खासी तेजी रही, जिसकी पुनरावृत्ति वर्ष 1990 में कुवैत-इराक मसले के पूर्व तक रही, परंतु वर्तमान में चल रही तेजी तो हर मायने में ऐतिहासिक है।

    आकर्षण का कारण

    शेयरों में समाज के सभी आयु, वर्ग, लिंग और तबके के लोगों की रुचि के कई कारण हैं। शायद यही एक ऐसा व्यवसाय है, जिसमें सिर्फ 500 रुपए (एक निर्गम में लगाई जा सकने वाली न्यूनतम राशि) से लेकर 500 करोड़ रुपए (हर्षद मेहता-निमेष शाह की अनुमानित शेयर सम्पत्ति) तक पूंजी निवेश किया जा सकता है। शेयर नकद मुद्रा की ही तरह तरल और आसानी से हस्तांतरित तो है ही, साथ-साथ इनमें निवेशित पूंजी में कई गुना वृद्धि की भी संभावनाएँ रहती हैं। व्यवसाय के तौर तरीके की प्रारंभिक जानकारी तो चंद दिनों में ही पाई जा सकती है, हालांकि इस व्यवसाय की हर विधा में पारंगत हो पाने के लिए पूरा जीवन भी कम है। यहां यह उल्लेखनीय है कि अत्यंत सुगम और सरल पैसा कमाने के साधन के रूप में भी कई लोग इस व्यवसाय की ओर लालच और लोलुपता से आए हैं, परंतु लंबी दौड़ में क्षणिक तेजी-मंदी और पूंजीविहीन सट्‌टात्मक व्यवसाय के घातक सिद्ध होने की भी संभावनाएं अधिक हैं। हां, अध्ययन और विश्लेषण के पश्चात सुदृढ़ विकासशील कंपनियों में किया गया पूंजी निवेश पीढ़ियों तक धरोहर का रूप ले सकता है।

    सेंसेक्स 2500

    शेयर बाजार के दो प्रमुख अवयव है प्राइमरी मार्केट (नए सार्वजनिक/राइट निर्गमों में पूजी निवेश) एवं सेकंडरी मार्केट (बाजार में सूचीबद्ध शेयरों में खरीद-बेच) इन्हीं का विगत दिनों का लेखा-जोखा इस प्रकार है-

    सेकंडरी मार्केट- 1990 के उत्तरार्ध में जब पश्चिमी एशिया में कुवैत पर इराकी आक्रमण से विश्व में अस्थिरता छा गई और भारत में मंडल-मंदिर मुद्दों को लेकर राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बन गया, तब 9 अक्टूबर 1990 को 1602 के रिकार्ड स्तर से सेंसेक्स 25 जनवरी 1991 आते तक सिर्फ तीन महीनों में लगभग 600 पाइंट गिरकर 1000 से नीचे आ गया था। इसी समयावधि में भी सभी शेयरों का कुल ‘मार्केट केपिटलाइजेशन’ (कंपनी की प्रदत्त पूंजी और उसके अंश के बाजार मूल्य का गुणा) 1,00,000 करोड़ रुपए से गिरकर सिर्फ 60,000 करोड़ रुपए रह गया था। किंतु इस बिंदु के बाद सेकंडरी मार्केट लगातार चढ़ता ही रहा। फरवरी 91 में पूर्ण बजट के स्थगित होने पर इंडेक्स 1225 तक पहुंच गया, जो कि वर्तमान सरकार के 21 जून 91 को पदभार संभालने के दिन तक 1361 तक सुधर गया था। 1991 के वर्षांत तक सभी शेयरों का मार्केट केपिटलाइजेशन बढ़कर 1,25,000 करोड़ रुपए के शीर्ष तक पहुंच गया था। 1991 में शेयरों का राष्ट्रीय सकल वार्षिक कारोबार (कुल वार्षिक खरीदी-बेची) 70,000 करोड़ रुपए का था, जो कि विगत वर्ष के 50,000 करोड़ रुपए के व्यवसाय के मुकाबले 40 प्रतिशत बेहतर था। ज्ञातव्य रहे कि पूरे देश में शेयरों के कारोबार का 75 प्रतिशत कामकाज बीएसई में ही होता है। इन आंकड़ों से यह भी पता लगता है कि इतना अथाह पैसा लगभग 6000 अंशों के पीछे लगा है, तो मांग आपूर्ति-नियम के अनुसार भाव वृद्धि निश्चित है। गत वर्ष के आंकड़ें से एक मोटा अनुमान लगाया जा सकता है कि देशभर में शेयर दलालों ने शुद्ध दलाली से ही लगभग 700 करोड़ रुपए की आमदनी अर्जित की है, इसमें जॉबिंग से हुई कमाई शामिल नहीं है।

    प्राइमरी मार्केट- कहने को तो नए निर्गम और सूचीबद्ध शेयरों का व्यवसाय पूर्णतः अलग धाराएं हैं, किंतु शेयर बाजार में व्याप्त तेजी-मंदी से प्राइमरी मार्केट विलग नहीं रह सकता है। वर्ष 1989-90 में नए निर्गमों के द्वारा लगभग 4200 करोड़ रुपए एकत्रित किए गए थे, जो कि 1990-91 में घटकर आधे से भी कम रह गए। 1991-92 में यह राशि बढ़कर पुनः 4500 करोड़ रुपए तक पहुंच जाने की संभावना है।

    सूचीबद्ध शेयरों में तेजी का कितना असर नए निर्गमों पर पड़ता है, इसका सीधा उदाहरण यह है कि वर्ष 1992 में अभी तक (जबकि सेन्सेक्स में वर्ष 1992 की शुरुआत से अभी तक सिर्फ डेढ़ महीने में 500 पाइंट से अधिक की तेजी आई है) घोषित सार्वजनिक और राइट निर्गमों की कुल पूंजी वर्ष 1991 में अप्रैल से दिसंबर तक के 9 महीनों में घोषित निर्गमों की राशि से अधिक है। सिर्फ जनवरी-फरवरी 92 में सार्वजनिक इश्यू 974.34 करोड़ और राइट इश्यू 833.99 करोड़ रुपए, ऐसे कुल मिलाकर 1808.33 करोड़ रुपए के निर्गम बाजार में आए हैं। इसके मुकाबले अप्रैल-दिसंबर 91 में 673.44 करोड़ के सार्वजनिक और 1061.77 करोड़ के राइट कुल 1735.21 करोड़ रुपए के इश्यू बाजार में आए थे। यहां यह ध्यान रहे कि वर्तमान में हो रहे ‘ओवर सब्स्क्रिप्शन’ के चलन को देखते हुए इन निर्गमों से कुल संचित पूंजी की राशि 1808.33 करोड़ और 1735.21 करोड़ रुपए के जोड़ 3543.54 करोड़ से 15 प्रतिशत अधिक है और इसमें मार्च 92 के निर्गमों की राशि शामिल नहीं की गई है।

    विगत वर्ष में प्राइमरी मार्केट की प्रबलता के दो प्रमुख कारण थे। पहला तो यही की चूंकि सेकंडरी मार्केट बहुत तेज था, इसलिए प्राइमरी का तेज होना भी स्वाभाविक था। किंतु दूसरा कारण यह कि वित्तीय कठिनाइयों के कारण बैंकों और वित्तीय संस्थाओं ने ऋण बांटने पर सख्ती से पाबंदी लगा दी थी। इसके साथ-साथ बैंकों ने कर्जों पर लगने वाले ब्याज की दर भी बहुत बढ़ा दी थी। इसके फलस्वरूप सभी उद्योगों को जनता से पैसा एकत्रित करना ज्यादा सुगम माध्यम लगा, बजाय वित्तीय संस्थानों से कर्ज लेने के। उस पर अगर लोग टाटा टिमकेन जैसे निर्गम को 4071 गुना ओवर सब्स्क्राइब करवा सकते थे तो फिर उद्योगपतियों को और क्या चाहिए। सामान्य तौर पर मार्च के महीने में बजट के ‘खौफ’ से बहुत ही कम निर्गम बाजार में आते हैं। गत वर्ष मार्च में सिर्फ सात इश्यू थे जिनमें से भी पांच 21 मार्च के बाद खुले थे। किंतु इस बार बजट के शेयर व्यवसाय के प्रति अनुकूल होने की धारणा का इसी तथ्य से अंदाज लगाया जा सकता है कि मार्च 92 में बजट के तुरंत बाद 20 से अधिक इश्यू निर्धारित हैं, जिनमें से सात तो 10 मार्च के पहले ही खुलने वाले हैं जो तेजी के कारण सिद्ध हो सकते हैं।

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