‘एनरॉन’ के दिवाले से लाखों की जमा पूंजी नष्ट
कैसे फूटा भांडा
सन् 2001 के उत्तरार्ध में एनरॉन की गाड़ी गड़बड़ाने लगी। एनरॉन ने हजारों की संख्या में पार्टनरशिप फर्म बना रखी थी और अपने कई डेब्ट और लोन उन कंपनियों में ट्रांसफर कर रखे थे, जिनका वैसे कोई वजूद नहीं था। ऐसा करने से एनरॉन को अपनी किताबों में ये लोन नहीं दिखाने पड़े और उसका मुनाफा बरकरार रहा। लेकिन फिर कहीं किसी को इस बात की भनक पड़ी। हवा कुछ गर्म हुई। एनरॉन ने सारा दोष अपने वित्त अधिकारियों के माथे मढ़कर उन्हें निकाल दिया और कहा- ‘बाकी सब ठीक है।‘ लेकिन अक्टूबर में एनरॉन ने अपने तिमाही परिणामों में अचानक 500 मिलियन का घाटा दिखाया तो सब सकपका गए। जांच होना शुरू हुई। शेयरों के भाव औंधे मुंह लुढ़क गए और कंपनी ने अपनी बैंकरप्टसी घोषित कर दी और 4 हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। यह सब इतनी जल्दी हुआ कि बेचारे लाखों शेयर होल्डर, जिसमें सारे एम्प्लाई भी शामिल थे, कुछ कर ही नहीं पाए। एक बार डायनर्जी कंपनी द्वारा एनरॉन को खरीदने की बात भी हुई, लेकिन ऐसे पचड़े में कौन हाथ डाले…।
कौन नहीं था इनके एहसान तले
सीधे-सीधे निष्कर्ष निकालना गलत होगा, लेकिन एनरॉन और केनेथ ले के संबंध को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी चढ़ी हुई है। एनरॉन और केनेथ ले राष्ट्रपति बुश के चुनाव अभियानों के सबसे बड़े दानदाता थे। देश की नई ऊर्जा नीति में डिक चेनी को राय देने चेयरमैन ले बराबर व्हाइट हाउस आते थे। यह भी जाहिर हो गया कि उन्होंने अक्टूबर में अमेरिका के वित्तमंत्री और वाणिज्य मंत्री को भी फोन लगाकर एनरॉन की बिगड़ती परिस्थिति से अवगत कराया था, लेकिन नहीं यह बात श्री बुश को बतलाई गई और इन दोनों ने कुछ भी नहीं किया। बुश प्रशासन ने एनरॉन मामले में अपने किसी भी लिंकेज न होने का दावा किया है और एनरॉन के गिरावट को मार्केट फोर्सेस का ही परिणाम बताया है। वैसे एनरॉन ने तो डेमोक्रेटिक पार्टी के भी कई सदस्यों को डोनेशन दिए। यहां तक कि जस्टिस डिपार्टमेंट के प्रमुख एटॉर्नी जनरल एशक्रॉफ्ट ने एनरॉन जांच से अपने को अलग कर लिया है, क्योंकि उनके चुनाव पर भी एनरॉन ने डोनेशन दिया था।
आगे क्या होगा?
एनरॉन-एंडरसन से भी ज्यादा बड़ा और महत्वपूर्ण मुद्दा ऑडिटर्स के सत्यापन और उसके सच और निष्पक्ष का है। क्या सारी ऑडिटेड बैलेंस शीट्स सच का बयान करती हैं। क्या एक ही कंपनियों के ऑडिटर और कंसल्टेंट के रूप में कार्य करना उचित है। कैसे करे। एक साधारण कंपनी के वित्तीय परिणामों पर भरोसा और एक कंपनी के कर्मचारियों को उसी कंपनी के ही शेयर में कितने पैसे लगने चाहिए और वही पुराना कंपनियों और सरकार के संबंधों की सीमा रेखा। क्या सबका हल निकलेगा। और अभी भी कुछ गर्दनें और लुढ़केंगी। ये सब कयास ही हैं, लेकिन जब तक मीडिया कोई दूसरा बड़ा मुद्दा नहीं उठाता, एनरॉन प्रकरण अमेरिका और बुश प्रशासन और अमेरिका की मंदी अर्थव्यवस्था में छाया रहेगा।