‘एनरॉन’ के दिवाले से लाखों की जमा पूंजी नष्ट

25 नवम्बर 2001

'एनरॉन' के दिवाले से लाखों की जमा पूंजी नष्ट एशिया में ही अमेरिका की 7वीं सबसे बड़ी कंपनी एनरॉन कॉर्पोरेशन चंद महीनों में ही ‘बहुत अच्छी कमाई‘ से सीधे दिवाला घोषित करने पर मजबूर हो गई। पिछले साल 80 डॉलर तक हुआ एनरॉन का शेयर न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज से असूचीबद्ध कर दिया गया।

एनरॉन कंपनी राष्ट्रपति श्री बुश और रिपब्लिकन पार्टी की बहुत बड़ी समर्थक रही है और ‘पार्टी फंड‘ में उसने लाखों डॉलर दिए हैं। एनरॉन के साथ-साथ उसके ऑडिटर्स ऑर्थर एंडरसन भी कांग्रेस की जांच के घेरे में आ गए हैं, क्योंकि उन पर ऑडिटर के रूप में अपने ‘कर्तव्यों‘ का पालन तो दूर, उनको ताक पर रख देने के आरोप है…। आज पूरे अमेरिका में ओसामा से ज्यादा एनरॉन छाया हुआ है।

भारतवासियों को एनरॉन नाम से काफी परिचय है, क्योंकि एनरॉन कंपनी ने महाराष्ट्र में दाभोल परियोजना के नाम से एक विशाल पॉवर प्लांट लगाया, जो कि भारत में एक प्रोजेक्ट में सर्वाधिक विदेशी निवेश की मिसाल रहा। प्लांट लगाने के पहले से कानून और राजनीतिक विवादों में लिप्त रही एनरॉन की रिबेका मार्क भारत में विदेशी निवेशकों की पहचान बन गईं और प्लांट लगाने के बाद उसकी बिजली की दर और भुगतान का बखेड़ा खड़ा है, लेकिन पिछले महीनों में अमेरिका में जिस तरह एनरॉन जैसी ‘ठोस‘ कंपनी भी ताश के ढेर के समान ढह गई, उससे तो भारत के हर्षद काल के दिन याद आ गए…।

क्या थी एनरॉन?

पिछले साल ‘एनरॉन’ फॉर्च्यून पत्रिका द्वारा अमेरिका की सबसे बड़ी कंपनियों की सूची फॉर्च्यून-500 में 7वें नंबर पर थी। एनरॉन का वार्षिक कारोबार 100 बिलियन डॉलर का था और उसका मार्केट कॉम्पीटिशन भी 50 बिलियन डॉलर था। टेक्सॉस में ह्यूस्टन शहर में बसी एनरॉन मुख्य एनर्जी (ऊर्जा) से संबंधित कारोबारों में संलग्न थी जिसमें प्राकृतिक गैस, तेल और बिजली का जनरेशन और डिस्ट्रीब्यूशन मुख्य था। एनरॉन के चेयरमैन केनेथ ले काफी पहुंच वाले व्यक्ति थे। 1992 में पहले बुश के चुनाव के समय भी उन्होंने और एनरॉन ने मुक्तहस्त से डोनेशन दिए थे। वैसे भी टेक्सास और एनर्जी व्यवस्था सदा से ही रिपब्लिकन पार्टी के ‘करीब’ रहा है।

पिछले महीनों में अमेरिका में जिस तरह एनरॉन जैसी ‘ठोस‘ कंपनी भी ताश के ढेर के समान ढह गई, उससे तो भारत के हर्षद काल के दिन याद आ गए…।

लेकिन कुछ समय से एनरॉन इनके आगे निकल गई थी। उसने ऊर्जा में फ्यूचर्स कॉन्ट्रेक्ट्‌स के बिचौलिए के रूप में भी जोर-शोर से काम करना शुरू कर दिया था। यहां तक कि सन्‌ 2000 में तो अमेरिका की ऊर्जा के सारे वायदे सौदे में से 25 प्रतिशत एनरॉन के जरिये ही थे। इंटरनेट का एनरॉन ने जमकर इस्तेमाल किया और वह दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी कहलाने लगी। अब तो ऊर्जा से आगे बढ़कर एनरॉन ने हर तरह के वायदे सौदे शुरू कर दिए, फिर वह चाहे पानी, इस्पात, कागज यहां तक कि मीडिया में एडवरटाइजिंग, स्पेस और इंटरनेट की बैंड-विड्‌थ के भी वह वायदे सौदे करवा रही थी। धंधा जोरों पर था और एनरॉन ह्यूस्टन शहर के मुकुट का ताज था। एनरॉन के 20 हजार से भी अधिक कर्मचारी खुश थे। उनके रिटायरमेंट फंड में भी सर्वाधिक एनरॉन के ही शेयर थे। एनरॉन की ऑडिटर कंपनी थी-आर्थर एंडरसन, जो कि अकाउंटिंग पेशे में ‘बिग फाइव’ में से एक है। 85 देशों में उनके 9 बिलियन डॉलर से सालाना बिलिंग में एनरॉन विश्व में उनका दूसरा सबसे बड़ा क्लाइंट था, जो कि ऑडिटिंग के अलावा ‘बिजनेस कंसल्टिंग’ के लिए भी एंडरसन के लिए ‘सोने के अंडे वाली मुर्गी’ थी।

कैसे फूटा भांडा

सन्‌ 2001 के उत्तरार्ध में एनरॉन की गाड़ी गड़बड़ाने लगी। एनरॉन ने हजारों की संख्या में पार्टनरशिप फर्म बना रखी थी और अपने कई डेब्ट और लोन उन कंपनियों में ट्रांसफर कर रखे थे, जिनका वैसे कोई वजूद नहीं था। ऐसा करने से एनरॉन को अपनी किताबों में ये लोन नहीं दिखाने पड़े और उसका मुनाफा बरकरार रहा। लेकिन फिर कहीं किसी को इस बात की भनक पड़ी। हवा कुछ गर्म हुई। एनरॉन ने सारा दोष अपने वित्त अधिकारियों के माथे मढ़कर उन्हें निकाल दिया और कहा- ‘बाकी सब ठीक है।‘ लेकिन अक्टूबर में एनरॉन ने अपने तिमाही परिणामों में अचानक 500 मिलियन का घाटा दिखाया तो सब सकपका गए। जांच होना शुरू हुई। शेयरों के भाव औंधे मुंह लुढ़क गए और कंपनी ने अपनी बैंकरप्टसी घोषित कर दी और 4 हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया। यह सब इतनी जल्दी हुआ कि बेचारे लाखों शेयर होल्डर, जिसमें सारे एम्प्लाई भी शामिल थे, कुछ कर ही नहीं पाए। एक बार डायनर्जी कंपनी द्वारा एनरॉन को खरीदने की बात भी हुई, लेकिन ऐसे पचड़े में कौन हाथ डाले…।

कौन नहीं था इनके एहसान तले

सीधे-सीधे निष्कर्ष निकालना गलत होगा, लेकिन एनरॉन और केनेथ ले के संबंध को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी चढ़ी हुई है। एनरॉन और केनेथ ले राष्ट्रपति बुश के चुनाव अभियानों के सबसे बड़े दानदाता थे। देश की नई ऊर्जा नीति में डिक चेनी को राय देने चेयरमैन ले बराबर व्हाइट हाउस आते थे। यह भी जाहिर हो गया कि उन्होंने अक्टूबर में अमेरिका के वित्तमंत्री और वाणिज्य मंत्री को भी फोन लगाकर एनरॉन की बिगड़ती परिस्थिति से अवगत कराया था, लेकिन नहीं यह बात श्री बुश को बतलाई गई और इन दोनों ने कुछ भी नहीं किया। बुश प्रशासन ने एनरॉन मामले में अपने किसी भी लिंकेज न होने का दावा किया है और एनरॉन के गिरावट को मार्केट फोर्सेस का ही परिणाम बताया है। वैसे एनरॉन ने तो डेमोक्रेटिक पार्टी के भी कई सदस्यों को डोनेशन दिए। यहां तक कि जस्टिस डिपार्टमेंट के प्रमुख एटॉर्नी जनरल एशक्रॉफ्ट ने एनरॉन जांच से अपने को अलग कर लिया है, क्योंकि उनके चुनाव पर भी एनरॉन ने डोनेशन दिया था।

आगे क्या होगा?

एनरॉन-एंडरसन से भी ज्यादा बड़ा और महत्वपूर्ण मुद्दा ऑडिटर्स के सत्यापन और उसके सच और निष्पक्ष का है। क्या सारी ऑडिटेड बैलेंस शीट्‌स सच का बयान करती हैं। क्या एक ही कंपनियों के ऑडिटर और कंसल्टेंट के रूप में कार्य करना उचित है। कैसे करे। एक साधारण कंपनी के वित्तीय परिणामों पर भरोसा और एक कंपनी के कर्मचारियों को उसी कंपनी के ही शेयर में कितने पैसे लगने चाहिए और वही पुराना कंपनियों और सरकार के संबंधों की सीमा रेखा। क्या सबका हल निकलेगा। और अभी भी कुछ गर्दनें और लुढ़केंगी। ये सब कयास ही हैं, लेकिन जब तक मीडिया कोई दूसरा बड़ा मुद्दा नहीं उठाता, एनरॉन प्रकरण अमेरिका और बुश प्रशासन और अमेरिका की मंदी अर्थव्यवस्था में छाया रहेगा।

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