एस्केप टू विक्टरी

12 अगस्त 1992

एस्केप टू विक्टरी अंग्रेजी में ‘एस्केप‘ शीर्षक से एक दर्जन से भी अधिक फिल्में अलग-अलग समय पर बनी हैं। इन फिल्मों में बेहतरीन फिल्में कुछ ही हैं, बाकी तो साधारण श्रेणी में ही रखी जा सकती हैं। उन चुनिंदा बेहतरीन फिल्मों में से एक है ‘एस्केप टू विक्टरी।’ इस काल्पनिक फिल्म की कथा में दो बहुत ही वृहद विषयों की जुगलबंदी दिखाई गई है। युद्ध और खेलकूद। फिल्म में दर्शित काल द्वितीय विश्व युद्ध का है, परंतु उसका एक कथन बहुत ही दूरगामी है।

जर्मनी के एक युद्धबंदी शिविर में इत्तफाकन जर्मनी और इंग्लैंड के दो पूर्व अंतरराष्ट्रीय फुटबॉल खिलाड़ियों की मुलाकात होती है। बातों-बातों में जर्मनी और युद्धबंदियों की संयुक्त टीम के बीच एक फुटबॉल मैच आयोजित करने का प्रस्ताव उभरता है। कुछ प्रारंभिक अड़चनों के बाद दोनों ही पक्ष इस मैच के लिए राजी हो जाते हैं। वैसे नाम के लिए तो फुटबॉल मैच ही था, परंतु पार्श्व में दोनों ही के अपने-अपने निहित उद्देश्य छिपे थे। उस वक्त पूरे योरप में छाए जर्मन इस मैच के द्वारा ‘थर्ड रैख‘ और नाजी साम्राज्य की प्रभुता को खेल के मैदान पर भी साबित करना चाहते थे, वहीं अंग्रेज, फ्रैंच, डच आदि खिलाड़ी पहले तो इस मैच को एक ‘चैलेंज‘ के रूप में स्वीकारते हैं, परंतु बाद में उन्हें इस मैच के द्वारा अपने फरार होने का रास्ता नजर आता है।

‘एलाइड’ युद्धबंदियों की संयुक्त टीम के मैनेजर कप्तान हैं मेजर जॉन कल्बी (माइकल कैन) और फुटबॉल की ‘अ ब स‘ भी नहीं समझने वाला अत्यंत बातूनी मेर्विन हैच (सिलवेस्टर स्टैलोन) बनता है टीम का प्रशिक्षक और गोलकीपर। पेरिस के विख्यात कोलोन स्टेडियम पर होने वाले इस मैच का जर्मनी बहुत प्रचार-प्रसार करती है। संयुक्त टीम में वैसे तो कई नामी खिलाड़ी शामिल होते हैं, परंतु वर्षों से खेल के मैदान से दूर उन सबके शरीर को जंग लग गया था। पुनः अपने ‘फॉर्म’ में आने के लिए उनके अभ्यास एवं प्रयास को फिल्म में अच्छे ढंग से दर्शाया गया है।

अगर राष्ट्र अपने मतभेदों का निर्णय युद्ध के मैदान के बजाय खेल के मैदान पर करेंगे तो दुनिया बहुत बदल जाएगी

मैच के दिन पेरिस का स्टेडियम स्थानीय दर्शकों से खचाखच भरा होता है, जो अपने चहेते खिलाड़ियों को खेलना और जीतना देखना चाहते हैं। वहीं पर जर्मनी के सभी उच्च सैनिक अधिकारी ग्यारह खिलाड़ी और एक अंपायर की मदद से अपनी विजय के प्रति आश्वस्त होते हैं। मैच के पूर्वार्द्ध में आशानुरूप अत्यंत पक्षपातपूर्ण अंपायरिंग और ‘रफ-प्ले‘ से जर्मन खिलाड़ी न सिर्फ महती बढ़त ले लेते हैं, बल्कि आधे विपक्षी खिलाड़ियों को घायल भी कर देते हैं। फिल्म का सबसे रोचक पक्ष मैच के मध्यांतर से शुरू होता है, जब संयुक्त टीम के सदस्यों के अंतःकरण का खिलाड़ी उनके अंदर मौजूद सैनिक पर हावी हो जाता है, और वे मैच से पीठ दिखाकर फरार हो जाने का सुरक्षित मार्ग छोड़कर खिलाड़ी भावना से पुनः मैदान पर खेलने लौट आते हैं। पेले के निर्देशन में फिल्माया गया फुटबॉल मैच उत्तरार्द्ध में हर दर्शक का मन मोह लेगा और फुटबॉल प्रेमी तो निश्चित उस पर फिदा हो जाएंगे। विश्व विख्यात खिलाड़ी पेले और बॉब मूर सहित पूरी टीम ने जो ‘मेसमराइजिंग‘ फुटबॉल का प्रदर्शन किया है, वह बहुत समय तक दर्शकों को याद रहेगा।

फिल्म : ‘एस्केप टू विक्टरी’

समय : 1 घंटा 50 मिनट

निर्माण वर्ष : 1981

निर्माता : के.डी. फील्ड्‌स

निर्देशक : जॉन हस्टन

पार्श्व संगीत : बिल कॉन्टी

स्क्रीन प्ले : इवान जेम्स

कलाकार : माइकल कैन/सिलवेस्टर/स्टेलौन/पेले/ मैक्स वॉन सिजेह

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