जीडी-जे.आर.डी.: इस ‘जहान’ में ऐसे ‘बिरले’ ही आते हैं!

29 जुलाई 1992

जीडी-जे.आर.डी.: इस 'जहान' में ऐसे 'बिरले' ही आते हैं! अंग्रेजी के एक सुप्रसिद्ध उपन्यासकार इरविंग वालेस ने एक बेहतरीन काल्पनिक उपन्यास लिखा है ‘केन एंड एबल।’ संक्षिप्त में उपन्यास का कथानक कुछ इस प्रकार है कि अमेरिका में दो युवक एक ही समय में बड़े हो रहे हैं- इसके अलावा उनके बीच हर मायने में असमानता है; शिक्षा, परिवेश, परिवार, माहौल आदि। फिर भी, एक दिन दोनों देश के सबसे बड़े व्यवसायी बन जाते हैं।

अत्यंत विलग परिस्थितियों से समान ऊंचाइयों पर पहुंचने की इस कहानी के लेखक को वैसे कल्पना की भी ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती। उसे सिर्फ भारत आकर जी.डी. बिड़ला-जे.आर.डी. से मिल लेना था। परिस्थितियों में पूरी असमानता के बावजूद प्रगति और प्रसिद्धि की समान ऊंचाइयों को छूने वाले ये दो शख्स आज उस मुहावरे के पीछे का पूरा अर्थ है, जहां भारत में संपदा, समृद्धि और उद्योगों का पर्याप्त शब्द ‘टाटा-बिड़ला‘ बन गया है।

जिस समय तक जी.डी. बिड़ला (घनश्यामदास बिड़ला) के दादा शिवनारायण बिड़ला 10 रुपए माहवार में मुनीम की नौकरी कर रहे थे, उस समय एक तो जमशेदजी टाटा नागपुर में एम्प्रेस मिल्स की शुरुआत कर चुके थे। अगर सीधे जी.डी. और जे.आर.डी. पर आएं, तो दोनों की भिन्नताएं देखिए।

जी.डी. का जीवन

परिस्थितियों में पूरी असमानता के बावजूद प्रगति और प्रसिद्धि की समान ऊंचाइयों को छूने वाले ये दो शख्स आज उस मुहावरे के पीछे का पूरा अर्थ है, जहां भारत में संपदा, समृद्धि और उद्योगों का पर्याप्त शब्द ‘टाटा-बिड़ला’ बन गया है

जी.डी. का जन्म राजस्थान के पिलानी गांव में हुआ और जे.आर.डी. का सभ्यता की नगरी पेरिस में। जी.डी. की प्राथमिक शिक्षा सिर्फ ग्यारह वर्ष की उम्र तक ही ग्रामीण पाठशाला में सीमित रही, वहीं जे.आर.डी. भी पढ़े तो स्कूल ही में परंतु फ्रांस, भारत, जापान और इंग्लैंड में। दोनों ही प्रारंभिक दिनों से ही व्यवसाय में कूद पड़े। बिड़ला घराने की व्यावसायिक शुरुआत तो टाटा घराने के बहुत बाद हुई, लेकिन कुछ ही वर्षों में उन्होंने उद्योगों की संख्या में टाटा घराने को पछाड़ दिया।

यहां यह उल्लेखनीय है कि आजादी के तुरंत बाद और वर्तमान में भारत के अग्रगण्य औद्योगिक समूहों की सूची बनाई जाए, तो शायद टाटा-बिड़ला के अलावा और कोई भी नाम दोनों ही सूचियों में नहीं मिलेगा। आजादी के समय उद्योगपतियों में बांगड़, सोमानी, श्रीराम, लालभाई, डालमिया आदि प्रमुख थे, तो आज ये स्थान थापर, सिंघानिया, अंबानी ने ले लिए हैं। स्थायी हैं तो सिर्फ दो- ‘टाटा-बिड़ला।‘ जी.डी. जे.आर.डी. की बनिस्बत महात्मा गांधी और कांग्रेस के काफी करीब थे, गांधीजी उन्हें अपना छोटा भाई-सा ही मानते थे। जे.आर.डी. भी महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे, लेकिन कभी भी वे गांधीजी के बहुत करीब नहीं आए। 1944 में सम्राज्ञी मेरी द्वारा दोनों में किसी एक के साथ भोजन करने की चाह व्यक्त करने पर तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड वेवल ने एक खत में लिखा था, ‘जी.डी. जे.आर.डी. के बजाय भोजन के लिए ज्यादा रुचिकर मेहमान होंगे। टाटा हैं तो सभ्य युवक, लेकिन बोलते बहुत कम हैं। वहीं जी.डी. दुनियाभर की बातें कर सकते हैं।’

भारत की भावी योजना का प्रारूप

इसी वर्ष 1944 में जे.आर.डी. व जी.डी. ने एक साथ बैठकर भारत की भावी योजना का प्रारूप तैयार किया (देखें आलेख बॉम्बे प्लॉन)। वर्ष 1946 में दोनों के बीच नागरिक उड्‌डयन को लेकर कुछ विवाद छिड़ गया, जिस पर दोनों ने एक-दूसरे को कई पत्र लिखे। जे.आर.डी. की सोच यह थी कि भारत में नागरिक विमानन की सीमित संभावनाएं हैं, उसमें अगर कई विमान सेवाएं घुस गईं तो सभी को नुकसान होगा। वहीं दूसरी ओर जी.डी. बिड़ला को भारत एयरवेज के जरिये मुनाफे का एक अच्छा स्रोत और उड्‌डयन में टाटा के आधिपत्य को समाप्त करने का अवसर दिखाई दिया। अंततः हुआ वही, जिसकी जे.आर.डी. को आशंका थी; सभी विमान सेवाओं का राष्ट्रीयकरण हो गया।

औद्योगिक क्षेत्र में दोनों ही की इकाइयों ने भारतीय व्यवसाय-वाणिज्य में नए पन्ने जोड़े हैं। वैसे जहां जे.आर.डी. की कार्यप्रणाली अत्यंत ‘जनतांत्रिक‘ और खुली थी, वहीं जी.डी. अत्यंत पैनी नजर से हर इकाई पर नजर रखते थे। एक बड़ा महत्वपूर्ण फर्क था दोनों की शैलियों में- जहां बिड़ला उद्योगों के प्रबंधकों में सर्वोच्च प्राथमिकता कंपनी से भी ऊपर मालिक के प्रति वफादारी की थी, वहीं टाटा घराने में सिर्फ व्यक्ति की काबिलियत और अपनी कंपनी के प्रति निष्ठा महत्वपूर्ण रही है।

इसलिए जहां टाटा घराने में कई प्रबंधक तो कंपनी के पर्याय ही बन गए हैं (उदाहरणतः रूसी मोदी-टिस्को, दरबारी सेठ-टाटा केमिकल्स), वहीं बिड़ला समूह में कंपनियों के साथ उतना ही समय व्यतीत करने के बावजूद इंदू पारेख के साथ ग्रेसिम और आर.पी. पोद्दार के साथ सेंचुरी का नाम क्रमशः आदित्य व बी.के. बिड़ला से अधिक नहीं जुड़ पाया है। बिड़ला औद्योगिक समूह का सारा केंद्र काफी समय तक बिड़ला ब्रदर्स कंपनी रही, जबकि टाटा में यह स्थान टाटा सन्स को था। वैसे निजी तौर पर जी.डी. के परिवार में तीन पुत्र, तीन पुत्रियां, तीन भाई सहित ढेरों नाती-पोते रहे; वहीं जे.आर.डी. के पास रिश्तेदार कहने को सिर्फ पत्नी-बहन रहीं।

पचास वर्षों से भी अधिक समय तक श्री बिड़ला को जानने के बावजूद हमारी मुलाकात अत्यंत सीमित ही रही। हालांकि वे अत्यंत परंपरागत माहौल में पले-बढ़े थे, फिर भी जी.डी. के विचारों और विवेचना में गजब का पैनापन था। यह मेरा दुर्भाग्य रहा कि हम आपस में और अधिक साथ नहीं रह सके

धर्म के प्रति दोनों के विचारों में भी गहरा फर्क रहा। जहां जी.डी. सदैव पूजा-पाठ, तीर्थयात्रा में शरीक रहते थे, जे.आर.डी. को किसी भी तरह के ‘कर्मकांड‘ से जुड़ा धर्म शास्त्र ही नहीं आता, और उनके अनुसार सिर्फ अपना कर्तव्य वहन करते रहना ही धर्म है। जहां जी.डी. ने 32 वर्ष की उम्र में दूसरी पत्नी के देहावसान के बाद कभी भी महिला पक्ष की ओर ‘उस‘ दृष्टि से सोचा ही नहीं, वहीं जे.आर.डी. की आंखों में आज भी किसी ‘खूबसूरत’ चेहरे को देखकर चमक आ जाती है।

विषमताएं तो एक ढूंढें, हजार मिलेंगी। लेकिन जो निर्विवाद रूप से समानता रही कि दोनों ही भारत को प्रगतिशील, खुशहाल, संपन्न राष्ट्र देखना चाहते थे, दोनों ही के विचार विज्ञान, प्रौद्योगिकी और उद्योगों के प्रति सदैव जागरूक रहे, और दोनों ही के उद्योगों के माध्यम से देश और जनता को लाभ मिलता रहा। जी.डी. बिड़ला के निधन पर अपने शोक संदेश में जी.आर.डी. ने उन दोनों की जीवनगाथा में ‘संगम’ का अच्छा वर्णन कर दिया था। ‘पचास वर्षों से भी अधिक समय तक श्री बिड़ला को जानने के बावजूद हमारी मुलाकात अत्यंत सीमित ही रही। हालांकि वे अत्यंत परंपरागत माहौल में पले-बढ़े थे, फिर भी जी.डी. के विचारों और विवेचना में गजब का पैनापन था। यह मेरा दुर्भाग्य रहा कि हम आपस में और अधिक साथ नहीं रह सके।’

जिस उपन्यास का मैंने लेख के प्रारंभ में जिक्र किया था, उसी उपन्यास में जीवन-पर्यंत प्रतिद्वंद्वी रहे केन और एबल अंत में एक-दूसरे के समधी बन जाते हैं। टाटा-बिड़ला में अभी तक वैसी पारिवारिक रिश्तेदारी तो नहीं हुई है, लेकिन व्यवसाय के क्षेत्र में संभवतः पहली बार टाटा-बिड़ला ने कुछ वर्षों पहले हाथ मिलया है। पेप्सीफूड्‌स लिमिटेड (जिसमें टाटा समूह की वोल्टास कंपनी की 24 प्रतिशत हिस्सेदारी है) के शीतल पेय की बॉटलिंग का कार्य पूर्वी भारत के लिए वी.एक्स.एल. को दिया गया है, जो कि सुदर्शन बिड़ला समूह की कंपनी है।

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