‘ग्राउंड जीरो’ की हैरतअंगेज दास्तान

15 सितम्बर 2001

WTC_DogSearchल तक था दुनिया के सबसे महंगे और महत्वपूर्ण स्थानों में से एक, आज है सिर्फ ग्राउंड जीरो। कल तक जो जिप कोड 10048 एक शान थी, आज तो मानो वह एक श्मशान है।

यानी मैनहटन के निचले छोर का वह इलाका, जहां वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दोनों टावर और पूरे परिसर के अवशेष उठाने का काम चल रहा है और शब्द इस ‘हरक्युलिन टास्क‘ को बयां कर ही नहीं सकते। एक के बाद एक करके ध्वस्त हुए वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के दोनों टावर में सबसे पहले और सर्वोपरि थी तलाश किसी भी तरह किसी भी जगह जिन्दा लोगों की, जो शायद मलबे के 10 मंजिली पहाड़ के नीचे कहीं भी दबे हों, और इसके कई कारण भी थे। पूर्व में भी हादसों में लोगों के कई हफ्तों बाद बचकर जिंदा मिल जाने के अपवाद रहे हैं। इतने बड़े मलबे के ढेर में कहीं भी ‘एयर पॉकेट्‌स‘ होने की पूरी संभावना थी, जिसके रहते बिल्ली कई दिनों तक बिना भोजन-पानी के बच सकती है, अगर वह जिंदा हो तो। और इस सबसे बढ़कर एक आशा कि कहीं तो कुछ ‘मिसिंग‘ लोग जीवित मिल ही जाएंगे, इसीलिए हादसे के दो हफ्ते बाद तक इसे बचाव कार्य ही कहा और माना जा रहा था, जिसके रहते कोई भारी क्रेन आदि से मलबे को हटाने के बजाय हाथों से ही कार्य ज्यादा हो रहा था और राहतकर्मियों का दे रहे थे साथ ‘वफादार कुत्ते’ और इलेक्ट्रॉनिक रोबोट्‌स।

सबसे वफादार

अब तक के कुत्तों की सबसे बड़ी मुहिम के अंतर्गत लगभग 350 प्रशिक्षित कुत्ते वर्ल्ड ट्रेड सेंटर हादसे के शुरुआती दिनों में वहां जुटे थे, क्योंकि दबे हुए जिंदा लोगों और मानव अवशेषों को सूंघकर पहचानने में इनकी महारत है। रोजाना 12 घंटे की ड्‌यूटी पर लगे डच, टफ, सेली, मैक्स, काउबॉय और ऐसे ही नाम वाले कुत्तों को पूरा प्रशिक्षण था कि कैसे मलबे में घुसकर इंसान को सूंघकर ढूंढा जाए। और वे ऐसे छोटे स्थानों में भी घुस सकते थे, जहां राहतकर्मी नहीं पहुंच सकते। इन कुत्तों के पांवों में टेप बांधकर उन्हें जूते पहना दिए जाते थे। इन खोजी कुत्तों को भी अलग-अलग भांति की ट्रेनिंग दी गई थी। कुछ कुत्ते थे जो ज्वलनशील पदार्थों की गंध दूर से पहचान लेते हैं। पेट्रोल, अन्य रसायन आदि तक राहतकर्मी उस इलाके में घुसने के पहले सावधान रहे। कुछ कुत्तों की महारत जीवित इंसानों को सूंघकर ढूंढ निकालने में थी और कुछ सिर्फ मानव अवशेष ढूंढने में माहिर थे। इनमें से एक कुत्ता पॉर्कचॉप ने तो सिर्फ परिवारजनों द्वारा गुमशुदा व्यक्ति के फोटो, पर्स आदि की गंध लेकर आधा दर्जन व्यक्तियों के अवशेष ढूंढ निकाले थे।

आधुनिक टेक्नोलॉजी का फायदा लेकर पहली बार किसी बचाव और राहत अभियान में छोटे लेकिन अत्यंत कारगर इलेक्ट्रॉनिक रोबोट्‌स का भी उपयोग किया गया

मलबे की सफाई

लगभग एक हजार कर्मी रोज सुबह से जुट जाते हैं इस मलबे की सफाई और धुलाई में। काम बहुत ही दुर्दांत है। करीब 15 लाख टन मलबा वहां पर जमा है, जिसमें छोटे टुकड़ों के साथ स्टील के लंबे-चौड़े गर्डर भी हैं। इस कार्य में करीब 400 करोड़ रुपए (100 मिलियन डॉलर) प्रति हफ्ते का खर्च हो रहा है और शायद एक से डेढ़ साल तक इसके चलने की संभावना है। रोज एक विशेष वायुयान घटनास्थल के ऊपर से उड़ान भरता है, जिसमें लगे यंत्र उस पूरे मलबे से भरे इलाके के हर वर्ग का तापमान आकलन करते हैं। इससे मलबे उठाने वालों को गरम स्थानों का पता चल जाता है, जहां शायद कोई चिंगारी या ज्वलनशील पदार्थ अभी भी सुलग रहे हैं।

इलेक्ट्रॉनिक रोबोट

आधुनिक टेक्नोलॉजी का फायदा लेकर पहली बार किसी बचाव और राहत अभियान में छोटे लेकिन अत्यंत कारगर इलेक्ट्रॉनिक रोबोट्‌स का भी उपयोग किया गया। ये वे बचावकर्मी थे, जिन्हें धूल, मलबे, थकान और भावनाएं कुछ भी नहीं प्रभावित करते। इंसानों द्वारा दूर से चलित ये जूते के डिब्बे की साइज के रोबोट मलबे में अंदर तक घुस सकते थे और उनमें लगे लाइट, वीडियो कैमरा और सेंसर द्वारा इंसानों और अवशेषों की खोज की जा रही थी। इस रोबोट दस्ते के निदेशक कर्नल जॉन ब्लिच के अनुसार- जिन्होंने भी इन रोबोट्‌स को काम करते देखा, वे उन्हें देखकर दंग रह गए और फायर डिपार्टमेंट वाले तो इनके उपयोग से बहुत खुश थे। 12 सितंबर को माइक्रोटेक नामक रोबोट ने मलबे के नीचे दबे हुए कुछ कमरे ढूंढ निकाले, जहां बाद में राहतकर्मी पहुंचे और कई इंसानों को वहां से निकाला।

मलबे की अंत्येष्टि

एक ओर जहां मानव अवशेषों से जुड़े ये नैतिक और भावनात्मक सवाल हैं, वहीं दूसरी ओर इस मलबे में ही दबे हैं सबसे बड़े, सुराग 11 सितंबर के वाकये के। अभी तक प्लेन में सवार एक आतंकवादी का पासपोर्ट तो इस ढेर में से बरामद हुआ है, लेकिन इस पहाड़ में से वे सुराग के तिनके कैसे ढूंढेंगे? उसके जवाब हैं स्टेटन आइलैंड में 3000 एकड़ में फैले फ्रेश किल्स लैंडफिल में, जो दुनिया का सबसे बड़ा गारबेज डम्प (कचराघर) है, जहां रोज मैनहटन का 29000 टन कचरा फेंका जाता है। यहीं पर सेक्टर 1 और 9 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर से निकलने वाले सारे मलबे की बड़े मैदानों में छानबीन की जाएगी। यहां नहीं ले जाएंगे तो सिर्फ मानव अवशेष और स्टील की भारी गर्डर। इसके अलावा 24 घंटे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर की ग्राउंड जीरो से यहां ट्रक आकर मलबा डाल रहे हैं। एफबीआई और पुलिस के करीब 100 आदमी रोजाना इस मलबे की बारीकी से जांच-पड़ताल और ढुंढाई कर रहे हैं, जिससे उन्हें उस दिन के वाकये के कुछ भी सुराग मिल सकें। पूरा वर्ल्ड ट्रेड सेंटर कुछ माहों में फ्रेश किल्स में इकट्ठा हो जाएगा। वहां काम कर रहे एक जांच अधिकारी ने कहा- लेकिन छोटे-छोटे बारीक टुकड़ों में।

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