हर्षद मेहता : बी.एस.ई. के दलालों में सरताज
कुछ और विवाद …
विवादों को कम करने हेतु दिए गए इस विज्ञापन ने तो एक और विवाद को जन्म दे दिया। बंबई स्टॉक एक्सचेंज की आचार संहिता की धारा 358 (11) के अनुसार किसी भी दलाल को विज्ञापन देना वर्जित है और इस नियम का उल्लंघन करने पर दलाल की सदस्यता सीमित अथवा असीमित अवधि के लिए निरस्त की जा सकती है। इसी के अंतर्गत ग्रोमोर के इस विज्ञापन पर बीएसई ने हर्षद मेहता को एक ‘शो-कॉज नोटिस’ जारी कर दिया। नोटिस के जवाब में मेहता ने कहा है कि विज्ञापन उन्होंने नहीं, बल्कि ग्रोमोर ने जारी किया था। विज्ञापन के द्वारा कहीं भी व्यवसाय अर्जित करने का विचार नहीं था और कुछ वर्षों पहले भी एक प्रमुख दलाल ने एक वित्तीय अखबार में अपने विज्ञापन जारी किए थे, तब उस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई?
यह तो निश्चित है कि स्टॉक एक्सचेंज अधिकारी इस जवाब से संतुष्ट नहीं है और मामला अनुशासन समिति के सामने रखा जाने वाला है, परंतु इससे दलालों द्वारा प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से अपना विज्ञापन करने के जटिल सवाल पर स्टॉक एक्सचेंज को अपने नियम अत्यंत स्पष्ट व साफ रूप से घोषित करने के मुद्दे की महत्ता पुनः उजागर हुई है। वर्ष 1991-92 के लिए 26 करोड़ का एडवांस इन्कम टैक्स जमा करवाने वाले हर्षद मेहता का आखिर इतिहास क्या है? इतनी कम समयावधि में यह व्यक्ति शीर्ष तक कैसे पहुंचा, यह सवाल सभी के मन में कौंध रहा है?
प्राप्त जानकारी के अनुसार युवा हर्षद मेहता ने अपना जीवन सत्तर के दशक में न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के वित्त निवेश विभाग से शुरू किया। वहां अनुभव प्राप्त कर 1979 से 1982 तक वे दलाल स्ट्रीट में सबब्रोकर की तरह कार्यरत रहे। 1982 में उन्होंने ग्रोमोर कंसलटेंट की शुरुआत की (जो कि आज ग्रोमोर रिसर्च एंड एसेट्स मैनेजमेंट लि. बन चुका है) और उसकी आय का 40 प्र.श. वृहद जानकारी कोष एकत्रित करने में ही लगा दिया, ताकि कंपनियों के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध हो सके। 1984 में उन्हें बीएसई की सदस्यता मिल गई, परंतु 1986 में स्टॉक एक्सचेंज के ‘क्रेश’ के बाद ग्रोमोर का ध्यान शेयर बाजार की बजाए ‘कॉल मनी’ व्यवसाय में भी लगा और फिर इस बीच तेजी में तो ग्रोमोर के करतब अब जन-जन को ज्ञात हैं।
माहौल यहां तक बन चुका है कि ग्रोमोर द्वारा निर्लोन के अधिग्रहण की ‘अफवाह’ से ही निर्लोन के भाव कई गुना बढ़ गए। हालांकि बाद में हर्षद मेहता ने अधिग्रहण के अपने विचार को प्रारंभिक रूप से स्पष्ट करते हुए कहा कि वित्तीय संस्थानों से बातचीत विफल हो जाने पर उन्होंने यह विचार त्याग दिया। इसी तर्ज पर बाजार में ग्रोमोर द्वारा इंड्रोल, अमर डाई केम, मेहर फार्मा, भारती टेलीकॉम और स्टील स्ट्रीप्स के शेयर भारी मात्रा में खरीदने की खबर है। एसीसी और अपोलो टायर के बारे में तो हर्षद मेहता कहते हैं कि एसीसी के दरबारी सेठ और अपोलो टायर के रौनकसिंह उनके अच्छे मित्र हैं, इसलिए कंपनी अधिग्रहण का तो प्रश्न ही नहीं उठता। वैसे एक समय में चर्चित मजदा इंडस्ट्री और मजदा पैकेजिंग का ग्रोमोर ने गत वर्ष पूर्णतः अधिग्रहण कर लिया है। प्रसिद्ध कर सलाहकार एच.पी. रानिना द्वारा संचालित ये कंपनियां पिछले दिनों पैसों की तंगी के कारण अत्याधिक तकलीफ में थीं। ग्रोमोर ने इन कंपनियों में काफी पैसा लगाकर पुरानी देनदारियां चुकता की हैं।
कॉल मनी व्यवसाय…
आज मेहता के पास बंबई स्टॉक एक्सचेंज के तीन कार्ड हैं, जो कि खुद के, उनकी पत्नी ज्योति मेहता और भाई अश्विन मेहता के नाम पर हैं। तीन अन्य घनिष्ठ परिचितों के कार्ड मिलाकर मेहता कुल छह कार्ड के जरिये अपना व्यवसाय करते हैं। इस वर्ष ग्रोमोर का अनुमानित मुनाफा 85-90 करोड़ का होगा, जो कि अगले वर्ष 200-250 करोड़ तक पहुंच जाने पर मेहता आश्वस्त हैं। आखिर इस स्तर के व्यवसाय के लिए मेहता के पास अथाह धन आया कहां से? कुछेक जानकार इसे विदेशी कोष तक पहुंच बताते हैं, जो अप्रवासी भारतीयों द्वारा मेहता को दोनों हाथ दिया जा रहा है। कुछ अन्य इसे गुनाह की दुनिया के बादशाह दाऊद इब्राहीम का ‘फायनेंस’ बताते हैं, परंतु मेहता के अनुसार उनकी सारी पूंजी ‘कॉल मनी व्यवसाय‘ और शेयर बाजार की ही कमाई हुई है।
भविष्य में अपने कार्यक्रम को और ‘प्रोफेशनल‘ बनाने के लिए मेहता ने कैनरा बैंक के पूर्व चेयरमेन एन.डी. प्रभु और पंजाब नेशनल बैंक के जे.एस. वार्ष्णेय को अपनी संस्था में शामिल कर लिया है। यह पूरी कहानी आज तक तो बहुत स्वर्णिम लगती है, परंतु महज दो वर्षों में इतनी गगनचुंबी प्रगति कभी-कभी डर का आभास भी पैदा करती है कि इतनी ऊंची इमारत की नींव न जाने इतनी मजबूत है या नहीं? आज तो शेयर बाजार की अंधाधुंध तेजी में सब कमा रहे हैं, परंतु क्या प्रतिकूल परिस्थितियों में भी यहां समां बना रहेगा? जवाब समय ही देगा?