हर्षद मेहता : बी.एस.ई. के दलालों में सरताज

4 फ़रवरी 1992

हर्षद मेहता : बी.एस.ई. के दलालों में सरताजर्ष 1991-92 के लिए 26 करोड़ का एडवांस इन्कम टैक्स जमा करवाने वाले हर्षद मेहता का आखिर इतिहास क्या है? इतनी कम समयावधि में यह व्यक्ति शीर्ष तक कैसे पहुंचा, यह सवाल सभी के मन में कौंध रहा है? दिनांक 10 फरवरी की सुबह राष्ट्र के प्रमुख वित्तीय अखबारों में आधे पृष्ठ का एक ध्यानाकर्षक विज्ञापन प्रकाशित हुआ था। विज्ञापन का शीर्षक था, ‘हर्षद मेहता झूठ बोलता है।’ हर्षद मेहता की ही कंपनी ग्रोमोर रिसर्च एंड एसेट्‌स मैनेजमेंट लि. द्वारा जारी इस विज्ञापन में विगत कुछ महीनों से चर्चित शेयर दलाल, हर्षद मेहता के कार्यकलापों का विस्तृत बयान दिया गया। इसी के साथ अब तक सिर्फ ‘लीडिंग बुल‘ या ‘बिग बुल‘ के नाम से पहचाने जाने वाले व्यक्ति से सभी परिचित हो गए। और वह व्यक्ति है- हर्षद मेहता। शेयर बाजार के प्रति बढ़ते आकर्षण और इसमें छुपी द्रुतगामी कमाई ने असंख्य लोगों को इस ओर आकृष्ट किया है। इस बढ़ती हुई रुचि का सबसे अधिक फायदा स्टॉक एक्सचेंज के सदस्य, शेयर दलालों को मिला।

इसकी सीधा-सा उदाहरण यह है कि आज एक मोटे अनुमान से सिर्फ बंबई स्टॉक एक्सचेंज में प्रतिदिन औसतन 500 करोड़ रुपए का कामकाज होता है। एक प्रतिशत की दलाली के हिसाब से रोजाना सिर्फ बीएसई के दलाल 5 करोड़ रुपए की कमाई कर लेते हैं। परंतु सभी दलालों की दिलचस्पी महज दलाली से नहीं होती। कुछेक ऐसे भी हैं, जो दूसरों का नाम भर लेकर वास्तव में खुद ही के लिए व्यवसाय करने लगते हैं। विगत वर्ष में तेजी में आया एक ऐसा नाम उभरा था 29 वर्षीय निमेष शाह का, जिसने सेंचुरी और हेक्स्ट के शेयरों की करोड़ों की खरीद की थी और उसका नाम भारत के सर्वोच्च व्यक्तिगत आयकरदाता के रूप में प्रसिद्ध हो गया था।

दलालों में सरताज…

एक प्रतिशत की दलाली के हिसाब से रोजाना सिर्फ बीएसई के दलाल 5 करोड़ रुपए की कमाई कर लेते हैं

गत वर्ष के प्रमुख तेजड़िए अगर निमेष शाह थे, तो इस साल वह निस्संदेह हर्षद मेहता हैं। इनकी नजरें जा टिकीं एसीसी और अपोलो टायर के शेयरों पर और फिर जो राष्ट्रव्यापी खरीद शुरू हुई कि 12 दिसंबर 91 से 2 जनवरी 92 तक की सेटलमेंट अवधि में एसीसी के भाव 2955 से 3300 और अपोलो टायर के भाव 111 से 174 तक पहुंच गए। यह लेख लिखे जाने के दिन एसीसी 4110 और अपोलो टायर 212 के शीर्ष पर पहुंच चुका है और अभी भी तेजी सभी प्रतिबंधों के बावजूद अविरल जारी है। तेज भाव वृद्धि को देखते हुए हर स्टॉक एक्सचेंज में दलालों ने जमकर एसीसी-अपोलो टायरों को ‘माथे मार दिया’। (शार्ट सेल किया-बिना डिलीवरी का माल बेचना इस आशा से कि भाव घटने पर खरीद कर लेंगे)। परंतु उन दलालों को शायद यह ज्ञात नहीं था कि यह तेजड़िया वाकई ‘तेज’ है। 3 जनवरी को ‘पटावत‘ (सेटलमेंट) के दिन हर्षद मेहता ने जब दोनों शेयरों की डिलीवरी मांगी, तो सभी स्तंभित रह गए। सभी को आशा थी कि भारी खरीदी का भुगतान न कर पाने की स्थिति में हर्षद मेहता सौदों का ‘बदला‘ देकर उन्हें अगले सेटलमेंट पर ‘केरी-ओवर‘ कर देगा। परंतु हुआ इसका ठीक विपरीत। हर्षद मेहता ने दलालों और बीएसई अधिकारियों के ‘सट्‌टात्मक खरीद‘ के आरोप को गलत सिद्ध करते हुए अपनी पूरी खरीद का एक चेक से भुगतान कर एसीसी और अपोलो टायर के लाखों शेयरों की डिलीवरी मांग ली। इस पर दोनों ही शेयरों में बेचवाल दलालों को ‘ऊंधा बदला’ या ‘बेकवर्डेशन चार्ज‘ जमा करना पड़ा, जिसकी नौबत स्टॉक एक्सचेंज में बहुत कम आती है।

सट्‌टे‘ के आरोप के अलावा मेहता पर यह भी आरोप लगाया गया कि एक ओर तो उन्होंने लाखों शेयरों की डिलीवरी मांगी, दूसरी ओर ‘शॉर्ट सेल‘ वाले दलालों को ‘ऊंधा बदला‘ भरने के लिए रुपए भी उन्होंने ने ही दिए। इसके अलावा एसीसी में ग्रोमोर की ‘होल्डिंग‘ 5.4 प्रतिशत और अपोलो टायर में 5 प्र.श. के लगभग हो गई, जिससे इन कंपनियों के टेक ओवर की आशंका व्यक्त की जाने लगी है। इन्हीं विवादों का स्पष्टीकरण करने के लिए ग्रोमोर ने 10 जनवरी के अपने विज्ञापन में लिखा कि ‘हर्षद मेहता और ग्रोमोर की एसीसी और अपोलो टायर में रुचि सिर्फ आकर्षक वित्तीय निवेश हेतु है, न कि कंपनी हथियाने के लिए। ग्रोमोर के सभी निवेश गहन अध्ययन और विश्लेषण पर आधारित रहते हैं और 90 प्र.श. खरीद का डिलीवरी लेकर भुगतान किया जाता है। ग्रोमोर की एसीसी पर नजर अगस्त 89 में 300 के भाव से और अपोलो टायर पर सितंबर 89 में 62 के भाव से है। ग्रोमोर का अगर कंपनी टेक ओवर का इरादा हो, तो वह संबंधित मैनेजमेंट की पूर्ण जानकारी में रहता है, जैसा कि मजदा इंडस्ट्री और मजदा पैकेजिंग के मामले में हुआ है। इन दोनों कंपनियों का ग्रोमोर ने अधिग्रहण कर लिया है।

कुछ और विवाद …

विवादों को कम करने हेतु दिए गए इस विज्ञापन ने तो एक और विवाद को जन्म दे दिया। बंबई स्टॉक एक्सचेंज की आचार संहिता की धारा 358 (11) के अनुसार किसी भी दलाल को विज्ञापन देना वर्जित है और इस नियम का उल्लंघन करने पर दलाल की सदस्यता सीमित अथवा असीमित अवधि के लिए निरस्त की जा सकती है। इसी के अंतर्गत ग्रोमोर के इस विज्ञापन पर बीएसई ने हर्षद मेहता को एक ‘शो-कॉज नोटिस’ जारी कर दिया। नोटिस के जवाब में मेहता ने कहा है कि विज्ञापन उन्होंने नहीं, बल्कि ग्रोमोर ने जारी किया था। विज्ञापन के द्वारा कहीं भी व्यवसाय अर्जित करने का विचार नहीं था और कुछ वर्षों पहले भी एक प्रमुख दलाल ने एक वित्तीय अखबार में अपने विज्ञापन जारी किए थे, तब उस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई?

यह तो निश्चित है कि स्टॉक एक्सचेंज अधिकारी इस जवाब से संतुष्ट नहीं है और मामला अनुशासन समिति के सामने रखा जाने वाला है, परंतु इससे दलालों द्वारा प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से अपना विज्ञापन करने के जटिल सवाल पर स्टॉक एक्सचेंज को अपने नियम अत्यंत स्पष्ट व साफ रूप से घोषित करने के मुद्दे की महत्ता पुनः उजागर हुई है। वर्ष 1991-92 के लिए 26 करोड़ का एडवांस इन्कम टैक्स जमा करवाने वाले हर्षद मेहता का आखिर इतिहास क्या है? इतनी कम समयावधि में यह व्यक्ति शीर्ष तक कैसे पहुंचा, यह सवाल सभी के मन में कौंध रहा है?

प्राप्त जानकारी के अनुसार युवा हर्षद मेहता ने अपना जीवन सत्तर के दशक में न्यू इंडिया इंश्योरेंस कंपनी के वित्त निवेश विभाग से शुरू किया। वहां अनुभव प्राप्त कर 1979 से 1982 तक वे दलाल स्ट्रीट में सबब्रोकर की तरह कार्यरत रहे। 1982 में उन्होंने ग्रोमोर कंसलटेंट की शुरुआत की (जो कि आज ग्रोमोर रिसर्च एंड एसेट्‌स मैनेजमेंट लि. बन चुका है) और उसकी आय का 40 प्र.श. वृहद जानकारी कोष एकत्रित करने में ही लगा दिया, ताकि कंपनियों के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध हो सके। 1984 में उन्हें बीएसई की सदस्यता मिल गई, परंतु 1986 में स्टॉक एक्सचेंज के ‘क्रेश’ के बाद ग्रोमोर का ध्यान शेयर बाजार की बजाए ‘कॉल मनी’ व्यवसाय में भी लगा और फिर इस बीच तेजी में तो ग्रोमोर के करतब अब जन-जन को ज्ञात हैं।

माहौल यहां तक बन चुका है कि ग्रोमोर द्वारा निर्लोन के अधिग्रहण की ‘अफवाह’ से ही निर्लोन के भाव कई गुना बढ़ गए। हालांकि बाद में हर्षद मेहता ने अधिग्रहण के अपने विचार को प्रारंभिक रूप से स्पष्ट करते हुए कहा कि वित्तीय संस्थानों से बातचीत विफल हो जाने पर उन्होंने यह विचार त्याग दिया। इसी तर्ज पर बाजार में ग्रोमोर द्वारा इंड्रोल, अमर डाई केम, मेहर फार्मा, भारती टेलीकॉम और स्टील स्ट्रीप्स के शेयर भारी मात्रा में खरीदने की खबर है। एसीसी और अपोलो टायर के बारे में तो हर्षद मेहता कहते हैं कि एसीसी के दरबारी सेठ और अपोलो टायर के रौनकसिंह उनके अच्छे मित्र हैं, इसलिए कंपनी अधिग्रहण का तो प्रश्न ही नहीं उठता। वैसे एक समय में चर्चित मजदा इंडस्ट्री और मजदा पैकेजिंग का ग्रोमोर ने गत वर्ष पूर्णतः अधिग्रहण कर लिया है। प्रसिद्ध कर सलाहकार एच.पी. रानिना द्वारा संचालित ये कंपनियां पिछले दिनों पैसों की तंगी के कारण अत्याधिक तकलीफ में थीं। ग्रोमोर ने इन कंपनियों में काफी पैसा लगाकर पुरानी देनदारियां चुकता की हैं।

कॉल मनी व्यवसाय…

आज मेहता के पास बंबई स्टॉक एक्सचेंज के तीन कार्ड हैं, जो कि खुद के, उनकी पत्नी ज्योति मेहता और भाई अश्विन मेहता के नाम पर हैं। तीन अन्य घनिष्ठ परिचितों के कार्ड मिलाकर मेहता कुल छह कार्ड के जरिये अपना व्यवसाय करते हैं। इस वर्ष ग्रोमोर का अनुमानित मुनाफा 85-90 करोड़ का होगा, जो कि अगले वर्ष 200-250 करोड़ तक पहुंच जाने पर मेहता आश्वस्त हैं। आखिर इस स्तर के व्यवसाय के लिए मेहता के पास अथाह धन आया कहां से? कुछेक जानकार इसे विदेशी कोष तक पहुंच बताते हैं, जो अप्रवासी भारतीयों द्वारा मेहता को दोनों हाथ दिया जा रहा है। कुछ अन्य इसे गुनाह की दुनिया के बादशाह दाऊद इब्राहीम का ‘फायनेंस’ बताते हैं, परंतु मेहता के अनुसार उनकी सारी पूंजी ‘कॉल मनी व्यवसाय‘ और शेयर बाजार की ही कमाई हुई है।

भविष्य में अपने कार्यक्रम को और ‘प्रोफेशनल‘ बनाने के लिए मेहता ने कैनरा बैंक के पूर्व चेयरमेन एन.डी. प्रभु और पंजाब नेशनल बैंक के जे.एस. वार्ष्णेय को अपनी संस्था में शामिल कर लिया है। यह पूरी कहानी आज तक तो बहुत स्वर्णिम लगती है, परंतु महज दो वर्षों में इतनी गगनचुंबी प्रगति कभी-कभी डर का आभास भी पैदा करती है कि इतनी ऊंची इमारत की नींव न जाने इतनी मजबूत है या नहीं? आज तो शेयर बाजार की अंधाधुंध तेजी में सब कमा रहे हैं, परंतु क्या प्रतिकूल परिस्थितियों में भी यहां समां बना रहेगा? जवाब समय ही देगा?

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