हर्षद मेहता-हरिदास मूंदड़ा : पंछी एक डाल के?

13 जून 1992

टी.टी.के. और एल.आई.सी.

तो आइए, आपको ए.सी.सी.- बी.एस.ई.- सी.बी.आई.- के माहौल से टी.टी.के.- एल.आई.सी. के युग में लिए चलते हैं। एक बात अवश्य कहना पड़ेगी, दोनों ही में ‘हीरो’ का नाम वहीं है- जी हां, ‘एच.एम.।’

स्वतंत्र भारत के इतिहास में जीवन बीमा निगम (एल.आई.सी.) पहला वह वित्तीय संस्थान था, जिसे सीधे बाजार से शेयर खरीदने-बेचने का अधिकार प्राप्त हुआ था। केंद्रीय वित्तमंत्री सी.डी. देशमुख के कार्यकाल के दौरान 19 जनवरी 1956 को सरकार ने अध्यादेश जारी कर जीवन बीमा निगम का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। इस वक्त तक न तो यूनिट ट्रस्ट और न आई.डी.बी., आई.सी.आई.सी.आई. जैसे वित्तीय संस्थानों का उदय हुआ था, न ही शेयर बाजार के कामकाज की पेचीदगियों से सामान्य जनता परिचित थी। इस मायने से एलआईसी का महत्व तब अत्याधिक था। एलआईसी के राष्ट्रीयकरण के साथ ही उनके कार्यक्षेत्र और प्रणाली का विस्तृत रेखांकन कर दिया गया था। निगम को उसकी कार्यकारी परिषद के नियंत्रण में पूर्णतः स्वायत्त संस्था के रूप में कार्य करने की छूट थी और अपने साधनों का सरकार की मुलभूत नीतियों को मद्देनजर रखते हुए निवेश करने का अधिकार था। हालांकि निवेश का यह अधिकार अंततः कार्यकारी परिषद को ही था, परंतु वह निर्णय एक पृथक निवेश समिति की सिफारिशों के आधार पर ही लिया जा सकता था। छः सदस्यीय निवेश समिति में निगम के अध्यक्ष, प्रबंध निदेशक के अलावा बंबई-कोलकाता स्टॉक एक्सचेंजों के अध्यक्ष भी सदस्य थे।

कानपुर से कोलकाता तक

मूलतः कानपुर के निवासी हरिदास मूंदड़ा कोलकाता स्टॉक एक्सचेंज के बड़े सटोरिए थे, किंतु उनके अरमान सदैव एक विख्यात उद्योगपति बनने के थे। इस ख्वाब के नैपथ्य में कुछ योगदान हरिदास मूंदड़ा के बिड़ला घराने से पारिवारिक रिश्तेदारी का भी रहा होगा।

माधोप्रसाद बिड़ला, हरिदास मूंदड़ा के एकमात्र दामाद, काशीनाथ तापड़िया के सगे बहनोई थे। हरिदास मूंदड़ा के व्यक्तित्व का वर्णन करते हुए न्यायमूर्ति चागला ने कहा था, मूंदड़ा एक प्रभावी व्यक्तित्व के स्वामी थे जिनकी एकमात्र इच्छा, ‘साम-दाम-दंड-भेद का बेहिचक उपयोग करते हुए उद्योगों के समूह पर आधिपत्य जमाना था। अत्यंत साधारण परिस्थितियों से उठकर, बगैर शिक्षा और साधनों के उन्होंने कई बड़ी इकाइयों पर कब्जा जमाने में सफलता प्राप्त कर ली थी। किंतु उनका ध्येय इन इकाइयों और उनके जरिये, राष्ट्र की औद्योगिक प्रगति में कोई योगदान देने का कदापि नहीं है। सही मायने में तो वे एक उद्योगपति हैं ही नहीं- उनका लक्ष्य तो सिर्फ अपनी ‘वित्तीय चपलताओं’ से कंपनी के बाद कंपनी को अपने झंडे तले इकट्‌ठे करना है, उन्हें चलाना-बढ़ाना नहीं।

मुलाकात कैसे हुई

न्यायमूर्ति चागला की समीक्षा को देखते हुए आज के गोयनका- छाबरिया की कंपनी अधिग्रहण प्रवृत्तियों को देखते हुए उनके लिए उपयुक्त शब्द (कॉर्पोरेट-रेंडर हरिदास मूंदड़ा) का सही विवरण हो सकता है। 18 जून 1975 के दिन यही हरिदास मूंदड़ा कोलकाता में व्यापार-व्यवसाय से जुड़े लोगों की सभा में श्रोता के रूप में तत्कालीन केंद्रीय वित्तमंत्री टी.टी. कृष्णामाचारी का भाषण सुनने आए थे। उस सभा में तत्कालीन केंद्रीय वित्त सचिव एच.एम. पटेल भी मोजूद थे, जो कि दो दिन बाद बंबई के लिए प्रस्थान कर गए।

तो आइए, आपको ए.सी.सी.- बी.एस.ई.- सी.बी.आई.- के माहौल से टी.टी.के.- एल.आई.सी. के युग में लिए चलते हैं। एक बात अवश्य कहना पड़ेगी, दोनों ही में ‘हीरो’ का नाम वहीं है- जी हां, ‘एच.एम.।’

21 जून 57 को बंबई में हरिदास मूंदड़ा ने एच.एम. पटेल से मुलाकात का समय मांगा, जिनकी उन्हें तुरंत उसी दिन के लिए स्वीकृति (?) मिल गई। उस ‘ऐतिहासिक‘ मुलाकात में हरिदास मूंदड़ा ने पटेल को अपनी वित्तीय कठिनाइयों का ब्योरा देते हुए कहा कि वैसे तो उनकी मुक्त संपत्ति 1.55 करोड़ रुपए की थी, लेकिन शेयर दलालों और बैंकों को उनकी देनदारियां 5.24 करोड़ रुपए तक पहुंच गई थी। ऐसी हालत में अगर कर्ज अदायगी हेतु दलालों ने उन पर जोर दिया तो उन्हें भारी मात्रा में शेयर बाजार में बेचने पड़ेंगे, जिससे स्वयं उन पर और शेयर बाजार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इस विषम परिस्थिति से उबरने के लिए मूंदड़ा ने पटेल से मौखिक आग्रह किया कि जीवन बीमा निगम मूंदड़ा से छः लिमिटेड कंपनियों (एंजेलो ब्रदर्स, ब्रिटिश इंडिया कॉर्पोरेशन, स्मिथ स्टैन स्ट्रीट एंड कंपनी, जैसप एंड कंपनी, रिचर्ड्‌सन एंड क्रूडास एवं ओसलर लैम्प मैन्युफैक्चरिंग कंपनी) के 80 लाख रुपए मूल्य के शेयर खरीदे और 30-40 लाख रुपए के शेयर सीधे बाजार से खरीदे। जीवन बीमा निगम मूंदड़ा को एक करोड़ रुपए का ऋण स्वीकृत कर दे जिसके बदले में मूंदड़ा निगम को एक करोड़ रुपए का व्यवसाय दिलाएंगे। निगम ब्रिटिश इंडिया कार्पोरेशन और जैसप एंड कंपनी के नवीन निर्गमों में ‘प्रिफरेंस कोटा‘ के 1.25 करोड़ रुपए के शेयर खरीदे, जिसके बदले मूंदड़ा निगम को 1.25 करोड़ रुपए का अग्नि बीमा व्यवसाय दिलवाएंगे।

एच.एम. पटेल ने उस वक्त कोई वायदा न करते हुए सिर्फ मूंदड़ा को अपना पूरा प्रस्ताव लिखित में देने को कहा, जो कि हरिदास मूंदड़ा ने उसी दिन (21 जून 1957) को उन्हें बंबई में ही दे दिया। 22 जून को पटेल ने इन प्रस्तावों की चर्चा जीवन बीमा निगम के अध्यक्ष जी.आर. कामत से की। कामत विभिन्न कंपनियों के शेयर खरीदने के अलावा और किसी प्रस्ताव पर विचार करने को तैयार नहीं थे।

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