आईआईटी ने भारत की एक अलग पहचान बनाई है

22 मई 2005

आईआईटी ने भारत की एक अलग पहचान बनाई हैआईआईटी के स्नातकों ने अमेरिका में भारत को एक नई पहचान दी है। पिछले 50 सालों में भारत के सभी आईआईटी से लगभग 150,000 विद्यार्थी निकले हैं, उसमें से कोई 40,000 अमेरिका में कार्यरत हैं। अमेरिका में इनके द्वारा शुरू किए गए कारोबार में 200,000 से अधिक लोगों को रोजगार मिलता है।

20 से 22 मई तक वॉशिंगटन के समीप मैरीलैंड में पीएएन-आईआईटी के ध्वज तले भारत के सातों आईआईटी के भूतपूर्व छात्रों, आईआईटी के वर्तमान निदेशकगण और गणमान्य उद्यमियों का वृहद सम्मेलन आयोजित किया गया था। दुनिया के सभी कोनों से आए आईआईटी से 1600 से अधिक पूर्व छात्रों के इन सम्मेलनों का प्रारंभ 2 साल पहले सिलिकॉन वैली में हुआ था।

हाल ही में अमेरिकी संसद ने एक विशेष बिल पारित करते हुए अमेरिका की आर्थिक और तकनीकी प्रगति में भारत के आईआईटी और उसके स्नातकों के विशेष योगदान का उल्लेख और आभार व्यक्त किया। विगत इतिहास में अमेरिकी संसद द्वारा किसी विदेशी शिक्षण संस्थान और उसके योगदान के उल्लेख की यह एक अनूठी मिसाल है।

किसी विदेशी शिक्षण संस्थान और उसके योगदान के उल्लेख की यह एक अनूठी मिसाल है

एक और जहां पुराने छात्र अपने बीते हुए साथियों से बरसों बाद मिलकर आईआईटी में साथ गुजारे बीते दिनों को याद कर रहे थे, वहीं सम्मेलन को संबोधित करने आए नामी-गिरामी वक्ताओं  की सूची से ही अमेरिका और भारत में आईआईटी के प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है।

प्रमुख वक्ताओं में जीई कंपनी के भूतपूर्व चेयरमैन जैक वेल्च और पूर्व कैबिनेट मंत्री अरूण शौरी ने आईआईटी के स्नातकों की महती तारीफ की। अरुण शौरी ने कहा कि ना सिर्फ आईआईटी के स्नातकों ने विदेशों और स्वदेश, दोनों में ही अपने योगदान से भारत की छवि बढ़ाने में चार चांद लगाए हैं। नेतृत्व के गुणों का उल्लेख करते हुए जैक वेल्च ने लीडर को नितांत स्पष्टवादी होना जरूरी बताया।

न्यूयॉर्क टाइम्स के संवाददाता और कई किताबों के लेखक टॉम फ्राइडमैन ने अपनी नई किताब ‘द वर्ल्ड इज फ्लैट’ की चर्चा करते हुए जोर देकर कहा कि आने वाले कल की दुनिया में आर्थिक संभावनाओं के दौर का मैदान समतल होने वाला है। विकसित और विकासशील देशों के बीच की दूरी अब खत्म होती जा रही है। भारत और चीन देशों ने लोगों के लिए असीम संभावनाएं हैं। अमेरिका और पश्चिम के देशों के आर्थिक प्रभुत्व और ‘मोनोपॉली’ अब ज्यादा नहीं चलने वाली। और इस पर भी अमेरिका का ध्यान आर्थिक और तकनीकी प्रति से हटकर आतंकवाद और इराक में फंस गए हैं। आईसीआईसीआई के चेयरमैन श्री कामथ, हावर्ड विश्वविद्यालय के निदेशक लैरी समर्स, सिटीबैंक के विक्टर मैंनेजेंस, मैक्किंजे के रजत गुप्ता, प्रोफेसर प्रहलाद, सैम पित्रोदा, फिल्मकार सुभाष घई और सूचना प्रौद्योगिकी की कई कंपनियों के निदेशक और प्रमुख इस सम्मेलन में शरीक थे। मैरीलैंड के इस शहर ने 20 मई की तारीख को आईआईटी दिवस घोषित किया।

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