जॉज

16 मार्च 1992

जॉजहोनहार बिरवान के होत चिकने पात’ यह कहावत राजनीति में इंदिरा गांधी और क्रिकेट में सचिन तेंडुलकर जैसे लोगों तक ही सीमित नहीं है। मनोरंजन और सिनेमा की दुनिया में भी कई जीवंत उदाहरण हैं उन फनकारों के जिन्होंने अपने सिनेमाई जीवन के शैशवकाल में ही कुछ ऐसा कर दिखाया जिससे उनके भविष्य का अंदजा लग गया था। अगर निर्देशकों की बात करें तो जहां भारतीय परिप्रेक्ष्य में शायद सबसे पहला नाम राजकपूर का आता है, वहीं अमेरिकी सिनेमा में स्टवीन स्पीलबर्ग ने भी कुछ ऐसा ही कर दिखाया था। 1974-75 में ‘ई.टी.’, ‘इंडियाना’, ‘जोन्स‘ व ‘शुगरलैंड एक्सप्रेस’ जैसी फिल्मों के निर्देशक स्पीलबर्ग ने सिर्फ 27 वर्ष की उम्र में अपनी पहली फिल्म निर्देशित की थी। इस पहली ही फिल्म ने उनका नाम फिल्म इतिहास में अंकित कर दिया। यह फिल्म थी- जॉज!

फिल्म की कहानी अमेरिका में समुद्र तट पर बसे एक छोटे से शहर अमेटी आईलैंड के इर्द-गिर्द घूमती है। इस शहर के निवासियों की आजीविका का प्रमुख साधन समुद्र तट और समुद्र को देखने-घूमने आए सैलानियों से जुड़ा है। इसलिए जब तट के निकट शार्क के आक्रमण से एक महिला मृत पाई जाती है और क्षेत्र का पुलिस चीफ सुरक्षा की दृष्टि से समुद्र में प्रवेश प्रतिबंधित करने का प्रयास करता है तब पूरा शहर उसके विरोध में खड़ा हो जाता है।

फिल्म का अधिकांश भाग शार्क के आक्रमण के प्रति पुलिस चीफ की ‘सीरियसनेस‘ और पूरे शहर की ‘केजुअलनेस‘ के द्वंद्व में ही गुजरा है। बार-बार शार्क आक्रमण से अंततः पूरा शहर भयभीत हो जाता है और फिर छिड़ती है मुहिम इस शार्क को पकड़ने की।

पूरी फिल्म में शार्क का विशालकाय खूंखार शरीर और मुंह तो तीन-चार बार ही दिखाया है, परंतु हर बार शार्क इतनी अनपेक्षित रूप से ‘स्क्रीन’ पर आ जाती है कि हर दर्शक के रोंगटे खड़े हो जाते हैं

फिल्म का ‘क्लाइमेक्स’ इसी समुद्री दानव व मानव की भिड़ंत की रोमांचक दास्तां है। एक नाव पर साजो सामान से लैस होकर शार्क से लड़ने जाते हैं इस क्षेत्र के पुलिस चीफ (राय स्कनेडर), एक दंभी किंतु अनुभवी शार्क पकड़ने वाला (रॉबर्ट शॉ) एवं एक समुद्री जीव वैज्ञानिक (रिचर्ड ड्रेफस)। पलड़ा कभी मानव की ओर झुक जाता है तो कभी दानव की ओर। एक समय तो ऐसा आता है जब नाव पानी में डूबने को होती है। तट से वायरलेस का संबंध कट जाता है। तीन आदमियों में से सिर्फ एक बचता है और सामने होती है भयावह शार्क।

पूरी फिल्म में शार्क का विशालकाय खूंखार शरीर और मुंह तो तीन-चार बार ही दिखाया है, परंतु हर बार शार्क इतनी अनपेक्षित रूप से ‘स्क्रीन‘ पर आ जाती है कि हर दर्शक के रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भूमिका बांधने के लिए पूरी फिल्म में शार्क के आगमन का पूर्वाभास कराने के लिए एक ही उत्तेजनात्मक धुन बजाई गई है, जिससे रोमांच द्विगुणित हो जाता है। यह तो दोहराना निरर्थक है कि इस समुद्र आधारित फिल्म में ‘वॉटर फोटोग्रॉफी‘ लाजवाब है। ‘जॉज’ बनने के बाद ‘जॉज-1‘ और ‘जॉज-2‘ भी बनी है, परंतु उनमें इतनी कसावट नहीं है। निःसंदेह ही इस फिल्म का असली मजा बड़े पर्दे पर ही है, परंतु वीडियो पर भी उस एहसास का आभास हो जाता है। फिल्म कमजोर हृदय तथा छोटे बच्चों के देखने योग्य नहीं है।

फिल्म : जॉज

समयावधि : 115 मिनट

निर्माता : रिचर्ड झानुक और डेविड ब्राउन

निर्देशक : स्टीवन स्पीलबर्ग

संपादक : वर्ना फील्डस

फोटोग्राफी : बिल बुलर

कलाकार : रॉय स्कनेडर, रॉबर्ट शॉ, लोरेन ग्रे

निर्माण संस्था : यूनिवर्सल प्रोडक्शंस

पार्श्व संगीत : जॉन विलियम्स

वर्ष : 1975

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