जीवन का चरमोत्कर्ष : मेरी पहली ‘सोलो’ उड़ान

29 जुलाई 1992

जे.आर.डी. और नेविल ने कई बार सरकार को अलग-अलग प्रस्ताव पेश किए, परंतु किसी को भी स्वीकृति नहीं मिली। जे.आर.डी.-नेविल सरकार से कुछ वित्तीय गारंटी की मांग कर रहे थे, और सरकार ऐसा कोई वायदा करने में झिझक रही थी। अंततः इन दोनों ने प्रस्ताव को एकदम नए रूप में पेश करते हुए सरकार से एक दस वर्षीय समझौता तय किया, जिसके अंतर्गत वित्तीय गारंटी का तो प्रावधान नहीं था, परंतु हवाई डाक लाने-ले जाने के लिए भुगतान की दर, डाक के वजन और उसको ले जाने की दूरी के आधार पर तय की गई थी। मुख्य बात तो यह थी कि यह भुगतान डाक सरचार्ज में से ही दिया जाना था, अतः सरकार को इस प्रक्रिया में एक पैसे का भी अतिरिक्त खर्च वहन नहीं करना था।

24 अप्रैल 1932 को इस कान्ट्रेक्ट पर हस्ताक्षर हुए और टाटा एअर लाइंस का जन्म हो गया। टाटा एअर लाइंस के प्रमुख पायलट और प्रबंधक थे नेविल विन्टसेन्ट और जे.आर.डी. के अलावा तीसरे पायलट के रूप में नियुक्त किया गया होमी भरूचा को। 15 अक्टूबर 1932 के ऐतिहासिक दिन 28 वर्षीय जे.आर.डी. अपनी परंपरागत सफेद पतलून और आधे बांह की सफेद कमीज पहने कराची की ड्रिग रोड हवाई पट्‌टी से अपने पस मोथ यान में ठीक सुबह ६ बजकर 35 मिनट पर अहमदाबाद होते हुए बंबई के लिए प्रस्थान कर गए। हवाई पट्‌टी पर उन्हें विदाई देने कराची नगर पालिका के प्रमुख, कराची के पोस्ट मास्टर सहित कुछ और लोग भी थे। प्लेन में जे.आर.डी. के अलावा थे 63 पौंड वजनी डाक के थेले- 55 पौंड वजनी बंबई के लिए और शेष अहमदाबाद।

‘जब मैं ‘पथ मोथ‘ में 100 मील प्रति घंटे की रफ्तार से अपने गंतव्य की ओर बढ़ रहा था, उस वक्त मैं हमारी योजना की सफलता और उससे जुड़े सभी लोगों की मंगल कामना के लिए मन ही मन में प्रार्थना कर रहा था। तब हमारा एक छोटा-सा समूह था। अपने सुख-दुःख, सफलता और कठिनाइयों को एक-दूसरे से बांटते हुए ही धीरे-धीरे हमने उस संस्था की नींव डाली थी जो बढ़ते-बढ़ते एक दिन एयर इंडिया बन गई।’

अहमदाबाद तक की दूरी विमान ने 4 घंटे 15 मिनट में तय की। वहां 4 गैलन की साधारण टंकी से प्लेन में बर्मा शैल कंपनी का मोटरकार में उपयोग आने वाला पेट्रोल डाला गया। पेट्रोल हवाई जहाज तक एक बैलगाड़ी में रखकर लाया गया था। यही था भारत के भविष्य और अतीत का एक अनूठा मिलन। अहमदाबाद से पुनः उड़ान भरके विमान ठीक दोपहर एक बजकर 45 मिनट पर बंबई के जुहू हवाई अड्‌डे पर लैंड किया। टाटा एयर लाइंस की पहली हवाई डाक सेवा उड़ान अपने निर्धारित समय से दस मिनट पहले ही गंतव्य पर पहुंच गई थी। बंबई व्यवसाय जगत की प्रमुख हस्तियों के अलावा वहां जे.आर.डी. के सकुशल आगमन का उनकी पत्नी थेली और मित्र भागीदार नेविल भी आतुरता से इंतजार कर रहे थे। पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार नेविल दूसरे ‘पस मोथ’ विमान के साथ तैयार थे, और जे.आर.डी. के उतरने के कुछ ही समय में वे डाक लेकर आगे बेलारी होते हुए मद्रास के लिए प्रस्थान कर गए।

उन उत्साह और उमंग से ओतप्रोत दिनों की याद करते हुए जे.आर.डी. कहते हैं, ‘वो भी क्या रोमांचक दिन थे। हमारे पास न तो जमीन पर न ही आसमान में कोई वायरलेस व्यवस्था थी जिससे कि विमान का धरती से संपर्क बना रह सके। विमानों में न तो ब्रेक थे, और न कोई विकसित दिशा-सूचक यंत्र। यहां तक कि बंबई में हवाई अड्‌डे कहलाने लायक भी जगह नहीं थी। एक बड़ी-सी झोपड़ी ही हमारा ‘हैंगर‘ (वायुयान का गैरेज) था। समुद्र तट पर ही हमारी हवाई पट्‌टी थी। मानसून में जब समुद्र में पानी उफान पर रहता था, हमारी वह हवाई पट्‌टी समुद्र तल में जलमग्न हो जाती थी। तब हमारा पूरा लवाजमा तीन पायलट, दो विमान, तीन मैकेनिक पूना कूच करते थे जहां यरवदा जेल के समीप एक खेत से उड़ान भरते थे।’

प्रकृति की तमाम विपदाओं और अविकसित तकनीक और विज्ञान की विवशताओं के बावजूद एक वर्ष के अंतराल में टाटा एयर लाइंस के विमानों ने 1,60,000 हवाई मीलों का सफर तय किया। समय की पाबंदी पर अत्यधिक जोर, जे.आर.डी. के संपूर्ण उड्‌डयन जीवन का एक विशिष्ट पहलू रहा है। एक बार भाषण देते हुए उन्होंने विनोदप्रिय लहजे में कहा था, ‘पैसेंजरस मे बी डीलेड बट मस्ट नेवर बी लोस्ट, मेल मे बी लोस्ट बट मस्ट नेवर बी डीलेड‘ (यानी उड़ान देर से पहुंच सकती है, परंतु उसकी सुरक्षा प्राथमिक है। लेकिन डाक उड़ान के लिए सुरक्षा से भी अधिक महत्वपूर्ण उसकी समय की पाबंदी है)। समय की पाबंदी पर अपने अत्यधिक महत्व को समझाते हुए कुछ दिनों पहले जे.आर.डी. ने कहा था- ‘अगर अन्य साधनों से अधिक पैसा खर्च करके भी यात्री समय पर अपने गंतव्य पर नहीं पहुंच सकते तो फिर वायुसेवा का क्या औचित्य रह जाता है? एयर इंडिया के अध्यक्ष पद पर अपने कार्यकाल में इस बात पर मैं बहुत जोर देता था कि कोई भी विमान, चाहे वह कितनी भी दूर से क्यों न आ रहा हो, अगर अपने निर्धारित समय से 15 मिनट भी देरी से पहुंचता था तो इस बात की जानकारी मुझे अवश्य मिलना चाहिए।’

पर अब तो भारत में नागरिक उड्‌डयन की स्थिति बहुत निराशाजनक है। आजकल तो भारत में कई बार विमान गंतव्य पहुंचने के उनके निर्धारित समय तक तो ‘टेक-ऑफ’ ही नहीं करते हैं। जब उड़ान ही नहीं भरी, तो फिर पहुंचने के समय का क्या ठिकाना?’ इतिहास साक्षी है कि जे.आर.डी. के कार्यकाल में एयर इंडिया विमानों की समय पाबंदी तो जैसे उनकी पहचान बन गई थी। 1939 के उत्तरार्ध में द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ जाने से सामान्य नागरिक उड्‌डयन सेवाओं पर गहरा प्रभाव पड़ा था। टाटा एयर लाइंस के विमान नागरिक विमानन के बजाय सरकार की सेवाओं में लग गए थे।

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