कमाल के महानायक कमल हासन – नायक-महानायक विशेषांक
यही जुनून है जिसने ‘सागर संगमम्’ के पारंगत शास्त्रीय नर्तक, ‘राजा परवई’ के अंधे वायलिन वादक, ‘कल्याण रामन‘ में प्रेतात्मा, ‘सिगप्पु राजक्कल‘ के विक्षिप्त हत्यारे और ‘मेयर साहब‘ के कुटिल अय्याश नेता जैसे अनेक पात्रों ने हर बार दर्शकों को वशीभूत कर दिया है। ‘पुष्पक‘, ‘नायकन’, ‘अप्पू राजा‘ और ‘मेयर साहब‘ के बाद अब तो यह हाल है कि दर्शक कमल हासन के नाम से ही कुछ ‘अलग’ की चाह करने लगे हैं। लेकिन दूसरी ओर यह कलाकार है कि पात्र को ‘जीवंत‘ करने की खातिर कोई भी कीमत अदा करने को तैयार है। ‘सागर संगमम्‘ में बूढ़े व्यक्ति की आवाज में खराश का प्रभाव देने के लिए मैं घंटों बंद कमरे में चीखने का अभ्यास करता था। उससे आवाज में खराश तो आ गई, परंतु उससे हमेशा के लिए मेरे गले में आवाज की नली में स्वर-विकार रह गया है।’
ऐसे समर्पित कलाकार का जन्म तमिलनाडु के छोटे से शहर परमकुडी में एक आयंगार परिवार में हुआ। पेशे से वकील पिता डी.एस. श्रीनिवासन और माता राज्यलक्ष्मी के तीन पुत्र और एक पुत्री में कमल सबसे छोटे हैं। इसलिए सबसे दुलारे भी थे। अत्यंत जोखिम भरा और अहम निर्णय लेते हुए कमल के पिता ने उन्हें प्राथमिक शाला के बजाय प्रसिद्ध गुरु टी.के. षणमुखम् के यहां गायन/वादन/नृत्य/अभिनय सीखने भेज दिया। ‘पिताजी के दोनों बड़े बेटे पढ़े-लिखे थे और उनकी बेटी गणित में बी.एससी. कर रही थी। वे चाहते थे कि परिवार में कोई कलाकार हो, इसलिए एक तरह से जबरदस्ती मुझे इस प्रोफेशन में धकेल दिया।‘ अपने गुरु के यहां कमल ने शास्त्रीय नृत्य की गहन साधना की। नृत्य, साइकल चलाने या टाइपिंग करने जैसा आसान नहीं है। उसमें पूरे शरीर पर नियंत्रण करना आना चाहिए। नृत्य और शरीर संचालन की यही कड़ी साधना कमल के भावी फिल्मी जीवन का एक प्रमुख सहायक बन गई।
टी. षणमुखम् से शिक्षा प्राप्ति के बाद कमल हासन ने खुद अपना एक ‘डांस ट्रुप‘ तैयार किया, और विभिन्न शहरों में कार्यक्रम भी दिए। परंतु पेट और रोजगार की खातिर उन्हें यह छोड़कर प्रसिद्ध नृत्य प्रशिक्षक थनगप्पन का सहायक बनना पड़ा। यहीं पर प्रसिद्ध तमिल निर्देशक के. बालचंदर की उन पर नजर पड़ी, जिन्होंने उन्हें 18 वर्ष की उम्र में ही अरंगेत्रम फिर सोलथ्थन नीनाकरण, मन्मथ लीलई और मनो चरित्र में कमल हासन को लेकर निरंतर निखरते अभिनय का एक ऐसा सिलसिला शुरू कर दिया, जो आज तक अनवरत जारी है। वैसे कमल हासन ने अपनी जीवन की पहली फिल्म में अभिनय महज पांच वर्ष की उम्र में तमिल फिल्म कलाट्टू कन्नान्ना में किया था, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। तमिल के बाद मलयालम, तेलुगु, कन्नड़ आदि फिल्मों में अपनी अभिनय की पूरी धाक जमाने के बाद कमल की निगाहें फिल्मों के स्वर्ग, बंबई और हिंदी फिल्म जगत की ओर मुड़ी। ‘दक्षिण में बेहतरीन फिल्मों में काम करने के बावजूद मुझ पर क्षेत्रीय कलाकार का ठप्पा लगा रहा। परंतु मैं तो सारे विश्व का होना चाहता था, दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फिल्मकारों के साथ कार्य करना चाहता था। उसका एक ही माध्यम था- हिंदी सिनेमा में। मैं जानता था कि हिंदी सिनेमा की ‘रीच‘ सबसे गहरी और पैनी है।’
कमल हासन का हिंदी सिनेमा में पर्दापण अत्यंत धमाकेदार रहा। वर्ष 1981 में रति अग्निहोत्री के साथ एक दूजे के लिए ने चारों ओर इस कलाकार की चर्चा फैला दी। एक ऐसी प्रेम कथा पर आधारित फिल्म, जिसमें प्रेमी युगल भाषा, धर्म, प्रांत और वर्ग की सीमा से परे सिर्फ वो मानवों के बीच आस्था और विश्वास के बंधन को लिए साथ-साथ जीते हैं और अंत में, साथ-साथ मर जाते हैं, ने सारे देश में तहलका मचा दिया था। इस आशातीत सफलता के बावजूद कमल हिंदी सिनेमा में अपना विशिष्ट स्थान अर्जित नहीं कर पाए। पीछे मुड़कर देखें तो बंबइया सिनेमा के दुष्चक्रों ने कमल हासन को यहां स्वीकार न कर खुद ही नुकसान किया, कमल हासन का नहीं। कमल हासन ने एक दूजे के लिए के पश्चात लगभग डेढ़ दर्जन हिंदी फिल्मों में काम किया। जिनमें सागर के अलावा अधिकांश कमल ही की दक्षिण भारतीय फिल्मों का पुनर्निर्माण था (मसलन ‘सदमा, ‘ये तो कमाल हो गया‘, ‘अप्पू राजा‘, ‘मेयर साहब‘ आदि)।
वैसे यह एक उल्लेखनीय तथ्य है कि कमल हासन की कई सफल दक्षिण भारतीय फिल्मों का हिंदी में उनके या अन्य कलाकारों के साथ पुनर्निर्माण किया गया, किंतु उनमें से सफलता बहुत कम ही के हाथ लगी। इन फिल्मों की श्रेणी में ‘जरा सी जिंदगी‘, ‘कोशिश‘, ‘ईश्वर‘, ‘गजब‘ और ‘सोलहवां सावन‘ शामिल हैं। काफी चर्चित फिल्म ‘सागर‘ में वैसे तो पूरे तौर पर कमल हासन का अभिनय बेजोड़ था, परंतु एक दृश्य रह-रहकर आंखों के आगे घूम जाता है। हिंदी फिल्मों में दोस्त की खातिर प्यार की कुर्बानी की कहानी बीसियों ‘फिल्मों‘ में दोहराई गई है, किंतु एक पानी के ड्रम में से अपने मुंह पर पानी छपाककर दिल के दर्द और चेहरे के आंसुओं को उसी अंदाज में मुस्कराहट में बदलते हुए कमल का चेहरा भारतीय सिनेमा का सीमा-चिह्न दृश्य है।
वैसे तो कमल हासन की हर फिल्म ही अपने आप में विवेचनीय है, परंतु सीमाओं को ध्यान में रखते हुए अगर सिर्फ उनकी पिछली चार बहुचर्चित फिल्मों का ही जिक्र करें तो उनकी अप्रतिम अदाकारी का अंदाजा लगाया जा सकता है। सबसे पहले जिक्र उठता है फिल्म ‘नायकन‘ (तमिल) का जिसमें कमल हासन ने बंबई के तत्कालीन ‘अंडरवर्ल्ड बादशाह‘ वरदराजन मुदलियार के किरदार से मिलते-जुलते पात्र का अभिनय किया था। ‘दलितों का मसीहा’ और ‘पैसे वालों का हैवान‘ बनकर कमल हासन ने वरदा दादा के जीवन की शुरुआत से अंत तक जो विलक्षण अभिनय किया, वह भारतीय सिनेमा की धरोहर है। उसके बाद बनी फिल्म ‘पुष्पक विमान‘ जो कि किसी भी कलाकार के लिए एक टेढ़ी खीर थी। कारण था- फिल्म में ‘डायलॉग‘ की अनुपस्थिति, यानी संवाद प्रधान इस युग में मूक फिल्म- कोई भी सुनकर विचार को हंसी में उड़ा देता।