कमाल के महानायक कमल हासन – नायक-महानायक विशेषांक

31 दिसम्बर 1992

कमाल के महानायक कमल हासन! कोई भी कलाकार अभिनय-विधा के विशाल क्षितिज के चरमोत्कर्ष को उस वक्त छू लेता है, जब उसके अभिनय का रसास्वादन करता हुआ दर्शक यह भूल जाता है कि जो कुछ उसके सामने चल रहा है, वह महज ‘फंतासी‘ है, वास्तविक नहीं।

अभिनय की यही नैसर्गिक अभिव्यक्ति उसकी सोलह कलाओं का उत्कृष्टतम स्वरूप है। यही वह शिखर है जिस पर अपने किरदार को निभाते हुए कलाकार उसमें इतना विलीन और तल्लीन हो जाता है कि किरदार और कलाकार एक हो जाते हैं। यही वह सपना है, जो हर कलाकार अपने दिल में संजोए रखता है। यही वह स्तर है, जहां ‘जीरो‘ ‘हीरो‘ बन जाता है और ‘नायक’महानायक।’ अपने विस्तृत एवं संपूर्ण अभिनय जीवन में अगर कोई कलाकार ऐसे कुछ चुनिंदा दृश्य भी निभा पाए तो वह अपने-आपको धन्य-धन्य समझता है। तो फिर अगर कोई ऐसे कलाकार का जिक्र आ जाए, जिसके पूरे फिल्मी जीवन में कुछेक दृश्य ही ऐसे हों जो इस कसौटी पर खरे न उतरें तो फिर उसे क्या कहा जाए? जवाब है कमल हासन। पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय में फिल्मों में अभिनयरत कमल हासन को अगर भारत का ‘सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ अभिनेता’ कहा जाए तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी। अपनी उम्र के चालीसवें बसंत को पार करने तक कमल हासन सौ से अधिक तमिल फिल्मों को मिलाकर दो सौ से अधिक फिल्मों में अभिनय कर चुके हैं, जिनमें हिंदी, मलयालम, तेलुगु व कन्नड़ भाषाओं की फिल्में शामिल हैं।

यही वह सपना है, जो हर कलाकार अपने दिल में संजोए रखता है। यही वह स्तर है, जहां ‘जीरो’ ‘हीरो’ बन जाता है और ‘नायक’ ‘महानायक

इसी क्षण मन में विचार कौंधता है कि क्या सिर्फ फिल्मों की संख्या के आधार पर कमल हासन के अभिनय को इतना महिमामंडित किया जा रहा है। अगर सिर्फ ऐसा है तो अनेक कलाकार गिनाए जा सकते हैं, जिन्होंने विभिन्न भारतीय भाषाओं में कमल हासन से कहीं अधिक फिल्मों में कार्य किया है। अगर महज संख्या नहीं तो फिर श्रेष्ठता का परिमाण क्या? वह है कमल हासन के अभिनय की नैसर्गिकता। अपने पात्र में पूरी तरह डूब जाने की क्षमता। नित नए मुखौटे बल की निर्भीकता। अपने-आप को किसी भी ‘इमेज’ में कैद न होने देने की स्वच्छंदता और हर बार एक नए रोल को चुनौती के रूप में स्वीकार करने की उत्कंठा।

कमल हासन के अभिनय को अगर सिर्फ एक शब्द में बयान करना हो, तो सबसे उपयुक्त शब्द है ‘वर्सेटाइल’। भारतीय फिल्मों के विशेषकर हिंदी फिल्मों के अधिकांश महानायकों में एक सामान्य कमजोरी कमोबेश सदैव रही है। इसे कमजोरी कहें अथवा ‘लिमिटेशन’ यह एक अलग चर्चा का विषय है, लेकिन थोड़े-से फिल्मी सफर के बाद ही लगभग हर नायक-महानायक एक विशिष्ट ‘टाइपकास्ट इमेज’ की गिरफ्त में चाहते या न चाहते हुए बंध जाता है।

इसका एक सीधा-सा उदाहरण है। अमिताभ बच्चन, दिलीप कुमार, राजेश खन्ना ने अपने दैदीप्यमान फिल्मी जीवन में अनेक पात्रों का रूप लिया है और बखूबी निभाया है। फिर भी अगर कोई कहे कि तुरंत अपने मस्तिष्क के दृश्य पटल पर अमिताभ की जो सबसे स्पष्ट छवि उभरती है, उसका उल्लेख करें तो जवाब ‘एग्री यंगमैन‘ ही रहेगा। ठीक उसी तरह दिलीप कुमार अभिनय के बेताज बादशाह होने के बावजूद ‘ट्रेजेडी किंग‘ और राजेश खन्ना ‘रोमांटिक’ की ‘इमेज’ में कैद हो गए। अब यही सवाल कमल हासन के बारे में पूछिए, जितने जवाब देने वाले, उतने जवाब हाजिर हो जाएंगे। कोई ‘नायकन‘ के वरदा दादा का जिक्र करेगा तो कोई अप्पू राजा के बौने का और कोई एक दूजे के लिए के प्रेमी का। यही है इस कलाकार की वर्सेटाइलिटी कि इसने अपने हर रोल को इतना जीवंत कर दिया कि उसका हर रोल उसकी अलग पहचान हो गई।

‘मैं हर बार एक नया चेहरा पेश करने की कोशिश करता हूं। हालांकि मेरे हर परिवर्तन पर लोग डरकर पूछते हैं कि अब दर्शक कमल हासन को कैसे पहचानेंगे? तब मैं जवाब देता हूं कि ‘दर्शक एक किरदार को देखने आए हैं, कमल हासन को नहीं।’ खुद कमल के ये उद्‌गार उनकी अभिनय शैली की विवेचना कर देते हैं। परंतु क्या सिर्फ कहने भर से पात्र जीवंत हो उठता है? अपने अभिनय को वास्तविकता के करीब लाने के लिए कमल ने तैयारी में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी है। पात्र की मांग के अनुसार उन्होंने अपना वजन घटाया है, बढ़ाया है, बाल मुंडवाए हैं, शास्त्रीय गायन, वादन और नृत्य में निपुणता हासिल की है, विभिन्न भाषाएं सीखी हैं, ‘वेन्ट्रोलोरिजम’ (दूर तक ध्वनि संप्रेषण की कला) में महारत हासिल की है, और न जाने क्या-क्या! अपने इस फितूर के बारे में कमल के विचार बिलकुल स्पष्ट हैं, ‘मैं किसी फिल्म के लिए भूमिका के हिसाब से अपने चरित्र का कैसा भी मेकअप करवा सकता हूं। अपने शरीर का डील-डौल कैसा भी बदल सकता हूं और कोई भी कला-विद्या सीखने को तैयार हूं। बस ख्वाहिश सिर्फ यही है कि वह पात्र दर्शकों को पूर्णतः वास्तविक लगना चाहिए।

यही जुनून है जिसने ‘सागर संगमम्‌’ के पारंगत शास्त्रीय नर्तक, ‘राजा परवई’ के अंधे वायलिन वादक, ‘कल्याण रामन‘ में प्रेतात्मा, ‘सिगप्पु राजक्कल‘ के विक्षिप्त हत्यारे और ‘मेयर साहब‘ के कुटिल अय्याश नेता जैसे अनेक पात्रों ने हर बार दर्शकों को वशीभूत कर दिया है। ‘पुष्पक‘, ‘नायकन’, ‘अप्पू राजा‘ और ‘मेयर साहब‘ के बाद अब तो यह हाल है कि दर्शक कमल हासन के नाम से ही कुछ ‘अलग’ की चाह करने लगे हैं। लेकिन दूसरी ओर यह कलाकार है कि पात्र को ‘जीवंत‘ करने की खातिर कोई भी कीमत अदा करने को तैयार है। ‘सागर संगमम्‌‘ में बूढ़े व्यक्ति की आवाज में खराश का प्रभाव देने के लिए मैं घंटों बंद कमरे में चीखने का अभ्यास करता था। उससे आवाज में खराश तो आ गई, परंतु उससे हमेशा के लिए मेरे गले में आवाज की नली में स्वर-विकार रह गया है।’

ऐसे समर्पित कलाकार का जन्म तमिलनाडु के छोटे से शहर परमकुडी में एक आयंगार परिवार में हुआ। पेशे से वकील पिता डी.एस. श्रीनिवासन और माता राज्यलक्ष्मी के तीन पुत्र और एक पुत्री में कमल सबसे छोटे हैं। इसलिए सबसे दुलारे भी थे। अत्यंत जोखिम भरा और अहम निर्णय लेते हुए कमल के पिता ने उन्हें प्राथमिक शाला के बजाय प्रसिद्ध गुरु टी.के. षणमुखम्‌ के यहां गायन/वादन/नृत्य/अभिनय सीखने भेज दिया। ‘पिताजी के दोनों बड़े बेटे पढ़े-लिखे थे और उनकी बेटी गणित में बी.एससी. कर रही थी। वे चाहते थे कि परिवार में कोई कलाकार हो, इसलिए एक तरह से जबरदस्ती मुझे इस प्रोफेशन में धकेल दिया।‘ अपने गुरु के यहां कमल ने शास्त्रीय नृत्य की गहन साधना की। नृत्य, साइकल चलाने या टाइपिंग करने जैसा आसान नहीं है। उसमें पूरे शरीर पर नियंत्रण करना आना चाहिए। नृत्य और शरीर संचालन की यही कड़ी साधना कमल के भावी फिल्मी जीवन का एक प्रमुख सहायक बन गई।

टी. षणमुखम्‌ से शिक्षा प्राप्ति के बाद कमल हासन ने खुद अपना एक ‘डांस ट्रुप‘ तैयार किया, और विभिन्न शहरों में कार्यक्रम भी दिए। परंतु पेट और रोजगार की खातिर उन्हें यह छोड़कर प्रसिद्ध नृत्य प्रशिक्षक थनगप्पन का सहायक बनना पड़ा। यहीं पर प्रसिद्ध तमिल निर्देशक के. बालचंदर की उन पर नजर पड़ी, जिन्होंने उन्हें 18 वर्ष की उम्र में ही अरंगेत्रम फिर सोलथ्थन नीनाकरण, मन्मथ लीलई और मनो चरित्र में कमल हासन को लेकर निरंतर निखरते अभिनय का एक ऐसा सिलसिला शुरू कर दिया, जो आज तक अनवरत जारी है। वैसे कमल हासन ने अपनी जीवन की पहली फिल्म में अभिनय महज पांच वर्ष की उम्र में तमिल फिल्म कलाट्‌टू कन्नान्ना में किया था, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। तमिल के बाद मलयालम, तेलुगु, कन्नड़ आदि फिल्मों में अपनी अभिनय की पूरी धाक जमाने के बाद कमल की निगाहें फिल्मों के स्वर्ग, बंबई और हिंदी फिल्म जगत की ओर मुड़ी। ‘दक्षिण में बेहतरीन फिल्मों में काम करने के बावजूद मुझ पर क्षेत्रीय कलाकार का ठप्पा लगा रहा। परंतु मैं तो सारे विश्व का होना चाहता था, दुनिया के सर्वश्रेष्ठ फिल्मकारों के साथ कार्य करना चाहता था। उसका एक ही माध्यम था- हिंदी सिनेमा में। मैं जानता था कि हिंदी सिनेमा की ‘रीच‘ सबसे गहरी और पैनी है।’

कमल हासन के अभिनय को अगर सिर्फ एक शब्द में बयान करना हो, तो सबसे उपयुक्त शब्द है

कमल हासन का हिंदी सिनेमा में पर्दापण अत्यंत धमाकेदार रहा। वर्ष 1981 में रति अग्निहोत्री के साथ एक दूजे के लिए ने चारों ओर इस कलाकार की चर्चा फैला दी। एक ऐसी प्रेम कथा पर आधारित फिल्म, जिसमें प्रेमी युगल भाषा, धर्म, प्रांत और वर्ग की सीमा से परे सिर्फ वो मानवों के बीच आस्था और विश्वास के बंधन को लिए साथ-साथ जीते हैं और अंत में, साथ-साथ मर जाते हैं, ने सारे देश में तहलका मचा दिया था। इस आशातीत सफलता के बावजूद कमल हिंदी सिनेमा में अपना विशिष्ट स्थान अर्जित नहीं कर पाए। पीछे मुड़कर देखें तो बंबइया सिनेमा के दुष्चक्रों ने कमल हासन को यहां स्वीकार न कर खुद ही नुकसान किया, कमल हासन का नहीं। कमल हासन ने एक दूजे के लिए के पश्चात लगभग डेढ़ दर्जन हिंदी फिल्मों में काम किया। जिनमें सागर के अलावा अधिकांश कमल ही की दक्षिण भारतीय फिल्मों का पुनर्निर्माण था (मसलन ‘सदमा, ‘ये तो कमाल हो गया‘, ‘अप्पू राजा‘, ‘मेयर साहब‘ आदि)।

वैसे यह एक उल्लेखनीय तथ्य है कि कमल हासन की कई सफल दक्षिण भारतीय फिल्मों का हिंदी में उनके या अन्य कलाकारों के साथ पुनर्निर्माण किया गया, किंतु उनमें से सफलता बहुत कम ही के हाथ लगी। इन फिल्मों की श्रेणी में ‘जरा सी जिंदगी‘, ‘कोशिश‘, ‘ईश्वर‘, ‘गजब‘ और ‘सोलहवां सावन‘ शामिल हैं। काफी चर्चित फिल्म ‘सागर‘ में वैसे तो पूरे तौर पर कमल हासन का अभिनय बेजोड़ था, परंतु एक दृश्य रह-रहकर आंखों के आगे घूम जाता है। हिंदी फिल्मों में दोस्त की खातिर प्यार की कुर्बानी की कहानी बीसियों ‘फिल्मों‘ में दोहराई गई है, किंतु एक पानी के ड्रम में से अपने मुंह पर पानी छपाककर दिल के दर्द और चेहरे के आंसुओं को उसी अंदाज में मुस्कराहट में बदलते हुए कमल का चेहरा भारतीय सिनेमा का सीमा-चिह्न दृश्य है।

वैसे तो कमल हासन की हर फिल्म ही अपने आप में विवेचनीय है, परंतु सीमाओं को ध्यान में रखते हुए अगर सिर्फ उनकी पिछली चार बहुचर्चित फिल्मों का ही जिक्र करें तो उनकी अप्रतिम अदाकारी का अंदाजा लगाया जा सकता है। सबसे पहले जिक्र उठता है फिल्म ‘नायकन‘ (तमिल) का जिसमें कमल हासन ने बंबई के तत्कालीन ‘अंडरवर्ल्ड बादशाह‘ वरदराजन मुदलियार के किरदार से मिलते-जुलते पात्र का अभिनय किया था। ‘दलितों का मसीहा’ और ‘पैसे वालों का हैवान‘ बनकर कमल हासन ने वरदा दादा के जीवन की शुरुआत से अंत तक जो विलक्षण अभिनय किया, वह भारतीय सिनेमा की धरोहर है। उसके बाद बनी फिल्म ‘पुष्पक विमान‘ जो कि किसी भी कलाकार के लिए एक टेढ़ी खीर थी। कारण था- फिल्म में ‘डायलॉग‘ की अनुपस्थिति, यानी संवाद प्रधान इस युग में मूक फिल्म- कोई भी सुनकर विचार को हंसी में उड़ा देता।

परंतु कमल हासन ‘कोई‘ नहीं था। अमला के साथ इस मूक फिल्म में कमल हासन ने अपने शारीरिक हाव-भाव के संचालन में ऐसा समां बांधा कि फिल्म के विभिन्न भाषाओं में पुनर्निर्माण बेहद सफल रहे। इसके बाद आई अपूर्व सहोदरगल (तमिल) जिसमें कमल हासन ने तीन कलाकारों का पात्र निभाया। खास बात तो यह थी कि उसमें से एक बौना था। अब 5 फीट आठ इंच का मनुष्य पूरी फिल्म में बौना कैसे बन सकता है और फिर हर सामान्य गतिविधि में कैसे शरीक हो सकता है, यह आज तक राज ही बना हुआ है। ‘अप्पू राजा‘ (अपूर्व का हिंदी अनुवाद) का मेरा बौना ‘रोल‘ बहुत ही सरल तकनीक का कमाल था। पर मैं इसे बताऊंगा नहीं, क्या कोई जादूगर अपनी जादू की चालाकी बताता है।’

और गत वर्ष आई कमल की फिल्म ‘मेयर साहब’ जिसमें एक कुटिल अय्याश नेता पर व्यंग्य कसते हुए उन्होंने सामाजिक व्यवस्था पर करारा तमाचा मारा है। हर एक फिल्म में कुछ ‘नया‘ कमल हासन की यह शैली अब उनका परिचय चिह्न बन गई है। इतने विविध पात्रों को सजीव करने वाले कलाकार को पुरस्कार भी ढेरों प्राप्त हुए हैं। पद्‌मश्री से अलंकृत कमल हासन भारत के एकमात्र ऐसे अभिनेता हैं, जिन्हें सर्वाधिक 13 बार फिल्म फेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इनमें सबसे पहला मलयालयम फिल्म ‘कन्या कुमारी‘ के लिए वर्ष 1974 में मिला था और हिंदी में एकमात्र ‘सागर’ फिल्म में अभिनय के लिए। वैसे उन्हें एक हिंदी, दो मलयालम, छह तमिल, तीन तेलुगु, एक कन्नड़ ऐसे तेरह बार फिल्म फेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। इस ऊंचाई का अंदाज इस तथ्य से और बेहतर लगता है कि दिलीप कुमार को सात बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला है। इसके अलावा कमल को दो बार सर्वश्रेष्ठ अभिनय का राष्ट्रीय पुरस्कार ‘मूंदरम पिरवई’ (तमिल) और ‘नायकन‘ (तमिल) भी मिल चुका है। राष्ट्रीय पुरस्कारों में हासन परिवार का अनूठा ही कीर्तिमान है। कमल के सबसे बड़े भाई चारू हासन को तबरन कथे (कन्नड़) के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता और चारू की पुत्री (कमल की भतीजी) सुहासिनी को सिंधु भैरवी के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिल चुका है। वैसे कमल के मझौले भाई चंद्र हासन भी प्रतिष्ठित कलाकार हैं।

अभिनय के अलावा कमल हासन ने अपनी स्वयं की फिल्म निर्माण संस्था राजकमल इंटरनेशनल भी शुरू की है, जिसका शुभारंभ कमल की सौवीं तमिल फिल्म राजा पीरवई से हुआ था। उनकी बाद की स्वनिर्मित फिल्मों में ‘विक्रम‘, ‘संध्या‘, ‘अपूर्व सहोदरगल‘ उल्लेखनीय हैं। कमल हासन के स्वयं के पारिवारिक जीवन का प्रारंभ सुप्रसिद्ध नृत्यांगना वाणी से उनके विवाह से हुआ था। सात वर्षों के प्रेम संबंधों के बाद हुए इस विवाह के बाद वाणी ने अपने निजी नृत्य कैरियर पर बिलकुल ध्यान नहीं दिया और अपनी पूरी जिंदगी कमल हासन के व्यक्तिगत और व्यावसायिक जीवन हेतु होम कर दी। किंतु कमल हासन का ध्यान आकर्षित हुआ हिंदी सिने तारिका सारिका की ओर। पहले-पहले तो उनके संबंध गुप्त ही रहे, किंतु जब सारिका गर्भवती हुई और कमल उन्हें अपने साथ मद्रास ले आए तो बात ने बहुत तूल पकड़ लिया। सारिका को पुत्री प्राप्ति पर (कमल-वाणी की कोई संतान नहीं थी) कमल के पिता ने उसका नाम कमल की दिवंगत माता के नाम ‘श्रुति‘ ही रखकर एक प्रकार से कमल-सारिका के संबंधों को स्वीकृति दे दी। उस समय तो कमल ने वाणी मेरी पत्नी और सारिका मेरी प्रेमिका कहकर संबंधों का स्पष्टीकरण किया था, किंतु दुहरी जिंदगी ज्यादा दिन नहीं चल सकी। अंततः कमल को वाणी से तलाक लेना पड़ा और विगत वर्ष एक अत्यंत सादे समारोह में उन्होंने सारिका से विधिवत विवाह कर लिया। इस विवाह की विशेषता यह थी कि कमल-सारिका के परिणय में बंधने की साक्षी उनकी दो पुत्रियां भी थीं। माता-पिता के विवाह में संतानों की उपस्थिति की अनूठी मिसाल।

पर कमल हासन जैसे अनूठे व्यक्तित्व के लिए तो कुछ भी असंभव नहीं है, यहां तक कि उनके पिता और अभिनेता की भूमिका का समागम भी। ‘मैं पिता के रूप में अपने हर कदम का ध्यान रखता हूं। उसका मैं अभिनय करते समय उपयोग करना चाहूंगा ताकि पिता के मेरे पात्र में और वास्तविकता आ सके।’ ऐसे अदाकार को, जिसके जीवन का हर पल ‘अभिनय’ के इर्द-गिर्द घूमता हो, दक्षिण भारत के एक और ‘सुपर स्टार’ रजनीकांत ने सही वर्णित किया है ‘फिल्में मेरे जीवन का एक अंग हैं, किंतु फिल्में कमल हासन का जीवन हैं।‘ कमल हासन ही के लिए अमिताभ ने कहा है ‘मैं तो फिल्मों में भूमिका भर अदा करता हूं। कमल फिल्मों से दीवानगी की हद तक प्यार करते हैं। ऐसे अभिनेता के लिए खुद उनके पिता ने जो भविष्यवाणी की है, वह शायद सच ही निकलेगी। कमल हासन को एक दिन सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का ऑस्कर अवश्य मिलेगा।’

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