किंग’ हो कोई, ‘शहँशाह’ वही

15 अगस्त 2008

जिन दर्शकों को खड़ा करने के लिए बाकी सभी कलाकारों को पूरे जोर से नाच-गाना करना पड़ रहा था, उसी दर्शक समुदाय ने स्वतः खड़े होकर इन संवादों पर अमिताभ का करतल ध्वनि से अभिवादन किया। नम आँखों में अमिताभ नतमस्तक अभिवादन मुद्रा में खड़े हुए, मंच पर अकेले। पूरा स्टेडियम खड़ा होकर तालियाँ बजा रहा था। वह स्नेह, वह सम्मान, सिर्फ इस शाम और संवादों के लिए नहीं था, वह था उस शानदार ‘अविस्मरणीय यात्रा’ के लिए जिसका चंद शब्दों में बयान असंभव है। अविस्मरणीय था वह पल, नतमस्तक महानायक और भाव-विभोर प्रशंसक।

धक-धक, डोला रे डोला और कजरारे…

इसके बाद अमेरिका में ही बसी माधुरी दीक्षित ने अपने पुराने गीतों के साथ दर्शकों की दिलों की धक-धक बढ़ा दी। माधुरी की भावमुद्रा और मुस्कान में अभी भी वही बात है। हालाँकि उम्र का प्रभाव उनके नृत्य में झलकता है। भारत के विभिन्न प्रांत- पंजाब, महाराष्ट्र, गुजरात की पृष्ठभूमि पर आधारित अपने प्रसिद्ध गाने अमिताभ, रितेश, ऐश्वर्या ने पेश किए।

बंगाली को याद करते हुए डोला रे डोला… के जरिये अपनी नृत्य जुगलबंदी से माधुरी-ऐश्वर्या ने बॉलीवुड की अविस्मरणीय सुंदरता को स्टेज पर उतार दिया। आखिरी पेशकश के रूप में सारे कलाकार एक साथ स्टेज पर आए, उसके ठीक पहले अमिताभ, ऐश्वर्या और अभिषेक ने कजरारे-कजरारे… से पूरे हॉल में धूम मचा दी। कार्यक्रम के मध्य में जया बच्चन ने स्टेज पर आकर ‘ग्लोबल वार्मिंग‘ के दुष्प्रभाव और एक अरब सौर लालटेन लगाने के ‘बच्चन अभियान‘ का संदेश दिया।

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