कौन बनेगा अमेरिका का राष्ट्रपति

19 सितम्बर 2000

कौन बनेगा अमेरिका का राष्ट्रपति2000 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में जॉर्ज बुश और अल गोर के बीच कांटे की टक्कर थी। चुनाव प्रचार के अंतिम दिनों तक यह कह पाना मुश्किल था कि आगे कौन था-रिपब्लिकन जार्ज बुश-जो अपने पिता के बाद पुनः एक बुश को व्हाइट हाउस में पहुंचाना चाहते थे- या फिर उपराष्ट्रपति अल गोर, जो अब ‘उप‘ से पूरे राष्ट्रपति बनने के दावेदार हैं।

अब, जबकि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के मतदान की घड़ी (7 नवंबर) करीब आ रही है, दोनों उम्मीदवारों ने सभी मायनों में अपना तन-मन-धन दांव पर लगा दिया है। रिपब्लिकन पार्टी के अधिवेशन के बाद जॉर्ज बुश का पलड़ा काफी भारी था। डिक चैनी के रूप में अपने उपराष्ट्रपति पद के साथी को चुनकर बुश ने उन खबरों को दरकिनार कर दिया, जिसमें बुश को ‘कम अनुभवी‘ और ‘विदेश नीति में उतने निपुण नहीं‘ करार दिया जाता था। डिक चैनी अमेरिकी प्रशासन में काफी महत्वपूर्ण पद पहले ही संभाल चुके हैं, जिनमें तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के राष्ट्रपति काल का समय भी शामिल है। डेमोक्रेटिक पार्टी के लॉस एंजिल्स अधिवेशन के पहले तक अल गोर की दुविधा बरकरार थी कि वे 8 वर्षों तक क्लिंटन प्रशासन की सफलता का लाभ लेते हुए श्री बिल क्लिंटन की व्यक्तिगत खामियों से अपने को अलग रहना चाहते थे।

कुछ थी उम्मीदें :

भारत की दृष्टि से दोनों ही प्रशासन में रुख मित्रवत होने की आशा है

अधिवेशन तक यह भी उम्मीद थी कि क्लिंटन प्रशासन के आखिरी दिनों और श्रीमती हिलेरी क्लिंटन द्वारा प्रचार की उम्मीद से पूरा अधिवेशन कहीं बिल-हिलेरी क्लिंटन का यश-गान होकर न रह जाए। श्री अल गोर को भारी कूटनीतिक फायदा मिला, वयस्क सीनेटर और कट्‌टर ‘परंपरावादी‘ श्री लिबेरमन को अपना साथी उम्मीदवार चुनकर।
लिबेरमन की छवि एकदम ‘धार्मिक‘ और ‘मूल्यों की मर्यादा‘ मानने वाले व्यक्ति की है और डेमोक्रेट होते हुए भी मोनिका कांड के समय उन्होंने बिल क्लिंटन के चरित्र की सार्वजनिक निंदा की थी। डेमोक्रेट अधिवेशन की अंतिम शाम पार्टी की अपनी उम्मीदवारी को औपचारिक रूप से स्वीकारते हुए अल गोर ने काफी जोर देकर कहा, ‘आई एम माई ऑन मैन‘। श्री क्लिंटन से गहरी मित्रता के बावजूद वे श्री क्लिंटन की महज परछाई नहीं हैं।

हर बार होता है कि अधिवेशन के बाद संबंधित पार्टी के उम्मीदवार का पलड़ा भारी हो जाता है और इस बार भी ऐसा ही हुआ। लेकिन, पिछले कुछ दिनों से सारे मीडिया और जनता में लगने लगा है जैसे श्री अल गोर की बढ़त उन्हें विजयश्री तक पहुंचा देगी। बुश पर भी अपने पिता और पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज बुश का ‘अत्यधिक प्रभाव‘ होने की कहानियां प्रेस में लगातार छपती रहती हैं। हालांकि कहते हैं कि सहस्राब्दी सम्मेलन के दौरान जॉर्ज बुश ने विशेष रूप से अटलजी और जसवंतसिंह को फोन लगाकर उनसे बात की और भारत के प्रति अपना समर्थन जताया। भारत की दृष्टि से दोनों ही प्रशासन में रुख मित्रवत होने की आशा है, शायद अल गोर में अधिक। अटलजी की वॉशिंगटन यात्रा के दौरान उनके सम्मान में अल गोर ने दोपहर के भोजन का आयोजन किया। बुश और अल गोर में अमेरिका के आंतरिक विषयों पर भी काफी बहस छिड़ी हुई है, जिसमें मेडिकल इंश्योरेंस की बढ़ती दरें, टैक्स कम करने से लेकर प्रारंभिक शिक्षा जैसे मुद्दे शामिल हैं।

कुछ मतभेद :

पिछले दिनों एक नया मतभेद उभरकर आया है, जिसके रहते श्री बुश की छवि को थोड़ा धक्का लगा है। अमेरिका में प्रथा है कि राष्ट्रपति पद के दोनों उम्मीदवार टी.वी. पर आमने-सामने 90 मिनट का वाद-विवाद करते हैं, जिससे पूरी जनता को उन्हें करीब से और दोनों को आमने-सामने देखने-सुनने व परखने का अवसर मिल जाता है। इसे स्वतंत्र परिषद आयोजित करती है और अमेरिका से सभी प्रमुख टी.वी. नेटवर्क इसे प्रसारित करते हैं।

आंकड़ों के अनुसार पिछले चुनाव के दौरान एक ऐसी ‘परिचर्चा‘ को अमेरिका की 25 करोड़ की आबादी में से लगभग 10 करोड़ लोगों ने ‘लाइव‘ देखा था। इस बार भी हर बार की तरह तीन अलग-अलग शहरों में इस ‘बहस‘ का आयोजन तय किया गया था, जिन्हें अल गोर चुनाव प्रचार समिति ने स्वीकार कर लिया। लेकिन, श्री बुश ने श्री गोर को ललकारते हुए कहा कि ऐसी तीन डिबेट्‌स (बहस) के बजाय वे श्री गोर से ‘टोरी किंग लाइव‘ जैसे टॉक शो में भी बात करना चाहेंगे।

इसमें समस्या यह है कि ‘टोरी किंग लाइव‘ जैसे शो किसी एक चैनल के स्वामित्व में हैं और दूसरे चैनल उनका प्रसारण नहीं करते, जिससे देखने वाली जनता की गिनती काफी घट जाती है। अल गोर समर्थकों ने श्री बुश पर ‘आमने-सामने‘ 90 मिनट के वाद-विवाद से ‘डरने-घबराने‘ का आरोप लगाया और कहा कि तीन निर्धारित बहसों के अलावा श्री बुश, श्री गोर को जहां भी ललकारेंगे, वे हाजिर हो जाएंगे। उम्मीद है कि यह बखेड़ा सुलझ जाएगा, लेकिन इससे श्री बुश को थोड़ा धक्का लगा है।

लिबेरमन पर कहीं न कहीं ‘कट्‌टरपंथी‘ होने का ‘लेबल‘ लग रहा है

श्री बुश के पक्ष में डिक चैनी का चुनाव काफी लाभदायक रहा है, क्योंकि वे राजनीति के अनुभवी खिलाड़ी हैं। वहीं श्री लिबेरमन पर कहीं न कहीं ‘कट्‌टरपंथी‘ होने का ‘लेबल‘ लग रहा है, क्योंकि वे हर भाषण में धर्म, आत्मा, भगवान, मूल्य आदि विषय जरूर खींच लाते हैं। पिछले दिनों अल गोर ने सतत 28 घंटों तक 5 राज्यों में चुनाव प्रचार किया और जनता में अपनी ऊर्जा, स्फूर्ति का परिचय दिया। उसे देखकर राजीव गांधी के प्रचार के दिनों की यादें ताजा हो गईं और वर्तमान प्रधानमंत्री के शारीरिक कष्ट का राष्ट्र-संचालन में अवरोध साफ नजर आने लगा।

अमेरिका में भी उम्मीदवार जनता के एकदम करीब और बीचोंबीच जाकर घुल-मिलकर अपनी बात रखते हैं और उनके विचार सुनते हैं, जिससे एक व्यक्तिगत संवाद स्थापित होता है। इस मायने में भी श्री गोर श्री बुश के थोड़े आगे हैं। अभी भी अटकलें ही लगाई जा सकती हैं और श्रीमती हिलेरी क्लिंटन, रिक लेजियो में जहां अब श्रीमती हिलेरी को काफी बढ़त मिल गई है, राष्ट्रपति पद के चुनाव में इस ‘होम रन स्ट्रेच’ अंतिम क्षणों तक कोई भी बाजी मार सकता है। लेकिन, आज के हालात में श्री गोर कुछ कदम श्री बुश से आगे हैं। ज्ञातव्य रहे कि अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव में पार्टी के नाम पर मतदान होता है। इसलिए या तो श्री बुश- श्री चैनी आएंगे या फिर श्री अल गोर-श्री लिबेरमन। इंतजार है नवंबर के पहले मंगलवार का, जिस दिन अमेरिका में प्रायः हर चुनाव में मतदान होता है।

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