क्या खतरा मात्र आर्थिक शक्ति बढ़ने से है?

29 जुलाई 1992

निजी संपदा

‘मेरे पास कभी भी ज्यादा पैसा नहीं रहा। मेरे पिताजी जरूर अमीर बन सकते थे, परंतु पांच बच्चों और खर्चीली तबीयत ने उन्हें ऐसा नहीं होने दिया। यहां तक कि मरते समय तो वे कर्ज में ही गए। मेरे पास सिर्फ निदेशक की फीस के रूप में जो पैसा आता था, वही थोड़ा-बहुत जमा है। वैसे वर्षों पहले मेरी पत्नी और मैंने एक फ्लैट खरीदा था, अपने बुढ़ापे का जीवन चैन से बसर करने के लिए। पर हम अपने वर्तमान मकान में ही खुश हैं, इसलिए हमने उस फ्लैट को बेचने का निर्णय ले लिया। अब, हमने जो फ्लैट 5-10 लाख रुपयों में खरीदा था, उसकी कीमत मुझे और मेरी पत्नी को 4 करोड़ मिली। वह मेरी जिंदगी का पहला अवसर था, जब मेरे पास करोड़ रुपए अथवा कई लाख रुपए निजी संपदा के रूप में आए थे।

संपत्ति कर चुकाने के बाद भी हमारे पास साढ़े तीन करोड़ रुपए बच गए। मेरे और मेरी पत्नी के विचार इस विषय में मिलते हैं। अब हमें ज्यादा वर्ष तो जीना नहीं है, फिर इतने पैसे का क्या उपयोग? और फिर, जिस चीज के हमने सिर्फ कुछ लाख रुपए दिए हों, उसके बदले में हमें करोड़ों रुपए मिल जाएं, यह तो उचित नहीं है। इसलिए मैंने और मेरी पत्नी ने वह पैसा एक ट्रस्ट के जरिये परमार्थ में महिलाओं और बच्चों के हित में लगाने का निर्णय किया है।’

आबादी

‘मैं तो इस ओर सन्‌ 1951 से सबका ध्यान खींच रहा हूं। उसी साल मैंने एक बार पंडित नेहरू का ध्यान इस समस्या की ओर चाहा था, ‘क्या बात करते हो! हमारी जनसंख्या ही तो हमारे राष्ट्र की सबसे बड़ी शक्ति है।‘ 1951 में ही मैंने एक सभा में सब उपस्थित श्रोताओं को चेतावनी दी थी कि अगर समय रहते कारगर कदम नहीं उठाए गए तो 1951 की हमारी 35 करोड़ की आबादी में 35 वर्षों में 20 करोड़ की वृद्धि हो जाएगी। (जे.आर.डी. ने अपने साथी नागरिकों की ‘उत्पादकता‘ को कम आंका था। 35 वर्षों में आबादी में लगभग 34 करोड़ की वृद्धि हो गई)।

मैं तो भारत की पूरी युवा पीढ़ी का ध्यान इस ओर खींचना चाहता हूं। हम लोग इस समस्या की जटिलता का शायद अनुमान ही नहीं लगा पा रहे हैं। मेरा ऐसा दृढ़ विचार है कि हर समस्या का हल खोजा जा सकता है, बशर्ते हम उस समस्या को मानें और उसकी गंभीरता को पहचानें। शिक्षा, महिला रोजगार, जन्म दर पर नियंत्रण, संचार माध्यमों और अन्य प्रोत्साहन साधनों का प्रभावी उपयोग, अगर यह सभी एक साथ युद्ध स्तर पर किया जाए तो जनसंख्या वृद्धि पर अवश्य नियंत्रण पाया जा सकता है। मैंने तो सन्‌ 1970 में ही परिवार नियोजन निधि की स्थापना कर दी थी। शिक्षा और साक्षरता का तो जनसंख्या नियंत्रण से सीधा रिश्ता है। हमारे सामने केरल और राजस्थान के ज्वलंत उदाहरण हैं। केरल में साक्षरता अधिकतम और जनसंख्या वृद्धि दर पूरे देश में न्यूनतम है। वहीं, राजस्थान में स्थिति बिलकुल विपरीत है। अगर हमने आबादी की बढ़ती रफ्तार पर काबू पा लिया तो हमारी अधिकांश समस्याएं खुद ही हल हो जाएंगी।’

रतन टाटा

समस्याओं को समझने और उन पर सभी कोणों से विचार करने की उसकी क्षमता बहुत अच्छी है। उसे मुझसे कहीं बेहतर शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला है। रतन का एक टाटा होना उसके अध्यक्ष पद तक पहुंचने में कदापि सहायक नहीं था। उसकी खूबी है- उसकी प्रबंधकीय क्षमता और प्रबंधन के सभी आधुनिक तरीकों का समझने की बुद्धि। मैं तो समूह को सिर्फ मूल्यों के आधार पर रख पाया, परंतु उसके पास तो मूल्य भी है और बुद्धि भी।’

टिप्पणी करें

CAPTCHA Image
Enable Google Transliteration.(To type in English, press Ctrl+g)