क्या कुछ थम रहा है अमेरिका का आर्थिक अश्वमेध

7 जनवरी 2001

सामान्यतः खरीदी पसंद लोगों ने भी मंदी की आशंका वाली खबरों को पढ़कर इस साल हाथ खींच लिए कि अभी जरा रुक जाओ, जबकि अमेरिका की अर्थव्यवस्था तो सेविंग नहीं, बल्कि स्पेंडिग और लोन पर आधारित है। जनरल मोटर्स, सिअर्स, जिलेट, एटना, जेरॉक्स जैसी नामी-गिरामी कंपनियों ने हजारों की संख्या में लोगों की विदाई शुरू कर दी है और अब डॉट कॉम कंपनियों के बंद होने की खबर, खबर ही नहीं रही। 1971 में शुरू होने के बाद नास्दाक सूचकांक के लिए 2000 सबसे खराब साल था, जब वह साल के शुरू से 39 प्रतिशत कम पर बंद हुआ और डू सूचकांक भी नीचे ही रहा। आंकड़ों के अनुसार करीब 3 ट्रिलियन डॉलर पैसा मार्केट कैपिटलाइजेशन से पिछले साल साफ हो गया है (जो कि फ्रांस और जर्मनी की पूरी सालाना अर्थव्यवस्था के बराबर है, और मानो 150 बार कोई सुरसा पूरे बीएसई को निगल गई हो)। हालांकि यह भी सही है कि पिछले साल तेजी में यह कैपिटलाइजेशन बढ़ा था, यानी वी आर बैक टू बेसिक्स।

बुश के टैक्स कट या ग्रीनस्पान के इंटरेस्ट कट?

बुश ने राष्ट्रपति चुने जाते ही मंदी के संकट की बात को वजन देना शुरू कर दिया, जिसके चलते वो अपने टैक्स कट प्रोग्राम के बिल को पास करना चाहते हैं। हालांकि क्लिंटन प्रशासन अभी भी आर्थिक उन्नति और स्थिरता बरकरार रहने की बात कर रहा है। वर्तमान क्लिटंन प्रशासन और ग्रीनस्पान टैक्स कट से सदैव खिलाफ रहे हैं और इंटरेस्ट रेट की फेरबदल को ज्यादा महत्व दिया है। इतिहास तो इस बात का भी गवाह है कि बुश के पिता ने अपने दोबारा न चुने जाने का जिम्मा ग्रीनस्पान को भी दिया था कि उन्होंने तत्कालीन समय में ब्याज जल्दी कम नहीं किया था, जिससे अर्थव्यवस्था मंदी से उबर नहीं पाई थी। ग्रीनस्पान की बेचैनी देखिए कि 19 दिसंबर 2000 को फेडरल बैंक की रेगुलर मीटिंग में उन्होंने ब्याज दर बरकरार रखने का फैसला किया, लेकिन मीटिंग के सिर्फ 10 दिनों में 3 जनवरी को उन्होंने आश्चर्यजनक रूप से ब्याज दर को 0.50 प्रतिशत कम करके 6.0 प्रतिशत कर दिया। कुछ समय के लिए तो मार्केट दीवाने हो गए और सिर्फ 150 मिनट में नास्दाक 324 अंक बढ़कर इतिहास का सर्वाधिक एक दिन में 14 प्रतिशत बढ़ गया। लेकिन अगले तीन दिन में फिर मार्केट गिर ही रहा है, क्योंकि वह खुशी क्षणभंगुर थी। लेकिन रोज आ रहे कंपनियों के चौथे तिमाही के वित्तीय परिणाम आशा से कम हैं और कहें तो बहुत निराशाजनक हैं, जिनमें माइक्रोसॉफ्ट और सिस्को जैसे महारथी भी शामिल हैं, जिन्होंने कि कई वर्षों में कोई बुरी खबर नहीं सुनाई।

इंटरेस्ट रेट का इतना प्रभाव क्यों?

आखिर आप कहेंगे कि इस इंटरेस्ट रेट के फेरबदल से इतना प्रभाव क्यों? दरअसल यह इंटरेस्ट रेट बैंकों द्वारा उपभोक्ताओं से उनके क्रेडिट कार्ड्‌स, मकानों की गिरवी और व्यवसायों को दिए उधार पर ब्याज की दर तय करवाता है, जिसमें छूट से कंपनियां और व्यक्ति खुल कर खर्च कर पाते हैं। इसी 12 महीने के दौरान तेल की कीमतों ने भी अपनी मार लगाई और 12 डॉलर बैरल से बढ़कर तेल 36 डॉलर प्रति बैरल तक हो गया था और सर्दी के मौसम में अमेरिका में तेल सिर्फ आवागमन के लिए ही नहीं, बल्कि सभी घरों के तापमान को बरकरार रखने में भी काम आता है।

अब क्या?

अभी भी बेरोजगारी की दर अपने 4 प्रतिशत की न्यूनतम से बढ़ी नहीं है और मुद्रास्फीति भी काबू में है। अभी तो लोगों को नौकरी से निकाले जाने पर दूसरी नौकरी मिल ही रही है, लेकिन यह शायद 2001 में कितना बरकरार रह पाएगा, वक्त ही बताएगा। तो क्या अमेरिकन अर्थव्यवस्था वाकई धीमी हो रही है। अभी तो सारे आसार ऐसा ही बताते हैं। हालांकि ग्रोथ अभी भी है, रेट ऑफ ग्रोथ ही काफी कम हो गई है। इस सब के पीछे निष्कर्ष के कुछ बिंदु जो मुझे समझते हैं, वे इस प्रकार हैं-

निष्कर्ष

  • अमेरिका के शेयर मार्केट, विशेषकर टेक्नोलॉजी स्टॉक्स तो अभी आने वाले कुछ महीनों तक ऐसे ही झूलते रहेंगे। मार्केट कभी घट और कभी बढ़ के झूले पर झूलता रहेगा, जब तक कि आशंका के सारे बादल छंट नहीं जाते। इसका साफ मतलब है कि भारत में भी स्टॉक मार्केट में आने वाले दिनों में कोई विशेष संभावना नजर नहीं आती। विशेषकर टेक्नोलॉजी स्टॉक में कदापि लांग टर्म इनवेस्टिंग के लिए शायद यह सही समय है। लेकिन अमेरिका में कोई भी विशेषज्ञ अभी खरीदने के बजाय वेट एंड वॉच की सलाह ज्यादा दे रहे हैं।
  • ग्रीनस्पान तो आर्थिक गाड़ी को वापस पटरी पर लाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, लेकिन उनके ब्याज दर कटौती का असर और बुश प्रशासन से तारतम्य दोनों ही अभी भविष्य में छिपे हैं। अगले तीन महीनों की हवाओं का रुख आने वाले साल के लिए काफी महत्वपूर्ण है।
  • अमेरिका से जुड़ा भारत का सॉफ्टवेयर निर्यात क्षेत्र तो थोड़ी सी टर्बुलेंस (कठिनाई) के बाद बढ़ना चाहिए, क्योंकि अपनी कीमत कम रख कर सॉफ्टवेयर का काम करवाने का यह सबसे कारगर माध्यम है। लेकिन इसमें भी वही भारतीय कंपनियां टिक पाएंगी जो गुणवत्ता पर कारगर होंगी। अन्यथा आने वाले समय का अमेरिका काफी रूथलेस (सख्त) भी हो सकता है और अमेरिका में बसे लाखों भारतीयों को, जो अपने काम में निपुण हैं, कोई परेशानी नहीं रहेगी। लेकिन सिर्फ एक लहर के रहते अमेरिका तक पहुंचे वो चंद लोग जो अपने काम में पारंगत नहीं हैं, उनकी उल्टी गिनती अब शुरू हो गई है।
  • जिस मीडिया की बदौलत इंटरनेट इतनी तेजी से फैला, उसी मीडिया की खबरों से मंदी के डर के बादल भी तुरंत चारों ओर छा गए। फिर इसी मीडिया को हालात सुधरने पर जनता में प्रशासन और अर्थव्यवस्था पर विश्वास जगाना होगा।
  • संचार, प्रचार और कार्यकुशलता के माध्यम के रूप में इंटरनेट पूरे विश्व में अब और बढ़ना ही है। शायद इतनी कंपनियों में से कई तो चलेंगी भी और ऐसा शायद हर आर्थिक क्रांति के युग में होता है, चाहे वह तेल की हो, टेलीफोन कि या मोटर गाड़ियों की। हां, सिर्फ इंटरनेट के नाम पर बिना कमाई की कोई ठोस योजना के पूरी कंपनी खड़ी करने वालों के दिन कुछ दिनों के लिए तो लद गए और अब सपने हो गए सपने डॉट कॉम।
  • खुलकर सपने बेचने का प्लान बनाकर करोड़पति बनाने के दिन यहां हैं। 30 साल बाद जब अमेरिका में पिछले तीन सालों में रह रहा कोई व्यक्ति अपने पोते- पोतियों को डॉट कॉम एरा और हॉटमेल के सबीर भाटिया और राजेश जैन की कहानी सुनाएगा तो ठंडी आह भरे बगैर नहीं रह पाएगा।
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