मेरे शब्दकोष में तटस्थ अम्पायरिंग का नाम नहीं
प्रश्न- तो, फिर आप क्या सोचते हैं कि कपिल और गावस्कर में कोई मनमुटाव नहीं है?
उत्तर- मनमुटाव का तो प्रश्न ही नहीं उठता। क्रिकेट के नजरिये से दोनों एकदम अलग व्यक्तित्व हैं। एक अंतर्मुखी है, तो दूसरा बहिर्मुखी है। एक उत्तर भारत से आता है, तो दूसरा पश्चिम भाग से। उनकी आदतें अलग हैं, दोनों का लालन-पालन अलग-अलग तरीके से हुआ है। सुनील में ‘शहरी’ जीवन की झलक कपिल से कहीं ज्यादा है।
प्रश्न- फिर भी, कोई मतभेद तो होंगे?
उत्तर- अगर, एक पिता और पुत्र भी कप्तानी के लिए बारी बारी से चुने जाएं तो उनमें मतभेद होना अवश्यंभावी है। आखिरकार, उसमें व्यक्ति नहीं वरन पद की महिमा अधिक है।
प्रश्न- ‘कर्नल’ वेंगसरकर का नाम कप्तान के रूप में हमेशा छोड़ क्यों दिया जाता है?
उत्तर- हां, वे बहुत अच्छे क्रिकेटर हैं, इसमें कोई शक नहीं है। शायद एक व्यक्ति के रूप में उनसे कुछ और आशाएं हो सकती हैं। चूंकि चयन समिति या टीम के मैनेजर लगातार स्थायी नहीं रहते, इसलिए इस बात का पता लगाना मुश्किल है कि क्या एक व्यक्ति के रूप में वे बहुत जनप्रिय है या नहीं। कप्तानी एक ऐसी टोपी है कि आप सोचते हैं कि वह इस सिर पर फंसेगी, उस पर शायद नहीं।
प्रश्न- परंतु, इस तरह का कुछ चित्रण तो हुआ है कि वे बहुत मिलनसार नहीं हैं?
उत्तर- हां, शायद यह सही हो सकता है। अगर आप व्यक्तिगत तौर पर मुझसे यह सवाल पूछें, तो मुझे तो वे बहुत ही खुशमिजाज व्यक्ति लगते हैं और हम दोनों की बहुत पटती है। परंतु भारतीय टीम सिर्फ मेरे दृष्टिकोण से तो बन नहीं सकती। उन्हें किसी समय मौका तो जरूर दिया जाना चाहिए था। मौका तो अमरनाथ को भी दिया जाना चाहिए था। परंतु इन सब बातों का विश्लेषण करना बहुत मुश्किल होता है। रवि शास्त्री को चयन समिति ने युवा भारतीय टीम का कप्तान बनाया था और इन्होंने अपने आप को कप्तानी के भार से काफी अभ्यस्त कर लिया। उपकप्तान हमेशा उसी व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है जिसे 3-4 वर्षों के बाद टीम के कप्तान के रूप में देखा जा सके। सुनील गावस्कर को तो हमने 1974 में ही उपकप्तान बना दिया था। उस समय मैं चयन समिति का सदस्य था। तब भी हमने कई लोगों को नजरअंदाज कर दिया था और उस समय तो गावस्कर भी काफी नए थे।
प्रश्न- क्या आप कपिल और इमरान को कप्तानी के मामले में एक ही श्रेणी का मानते हैं?
उत्तर- उनमें सिर्फ एक मुख्य फर्क है। जहां कपिल पूर्णतः स्वदेशी क्रिकेट की उपज हैं, वहीं इमरान ने काउंटी क्रिकेट बहुत खेला है। उसी के फलस्वरूप उनका सोचने का तरीका कपिल से कहीं ज्यादा प्रोफेशनल है। वैसे मैं इमरान को बहुत उच्च श्रेणी का कप्तान नहीं मानता हूं। सुनील गावस्कर शायद उन्हें मानते हैं, परंतु मैं नहीं। वो एक बहुत अच्छे नेता हैं। इसका कारण यह है कि मैदान के अंदर और बाहर उनकी ऐसी विशालकाय छवि बन गई है कि वो टीम में लगभग पितृ सम आदर पाते हैं। पाकिस्तान में तो वे अकेले ‘वन मैन मिस्टर- क्रिकेट’ हैं।
प्रश्न- तो फिर आप वर्तमानव निकट भूतकाल के सर्वश्रेष्ठ कप्तानों की श्रेणी में किसे रखते हैं? इस युग की लक्ष्मण रेखा कहां है? (1970)
उत्तर- उस समय तक रे इलिंगवर्थ (इंग्लैंड) खेल रहे थे। और मेरे हिसाब से तो वे एक बहुत बढ़िया कप्तान थे। एक अच्छा कप्तान तो वह है कि जो कि साधारण खिलाड़ियों से बनी टीम का नेतृत्व कर भी सफलता अर्जित कर सके। इस हिसाब से अगर थोड़ा पीछे देखें तो रिची बेनो (ऑस्ट्रेलिया) का नाम मेरे दिमाग में सबसे पहले आता है। रिची के पास सिर्फ दो स्थापित गेंदबाज थे- स्वयं रिची व एलन डेविडसन। इसके बावजूद उन्होंने अपने सभी महत्वपूर्ण मुकाबलों में विजय प्राप्त की। और अगर 70 के दशक की बात की जाए तो इलिंगवर्थ बहुत ही चतुर थे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक साधारण खिलाड़ी होने के बावजूद वे बहुत ही बुद्धिमान व कुशल कप्तान थे जो कि पिच का रुख बखूबी भांप लेते थे। इयान चैपल (ऑस्ट्रेलिया) तो अपने खुद के दमखम पर नेतृत्व करते थे। वो एक बहुत ही आक्रामक बल्लेबाज थे व आक्रामक व्यक्तित्व। उनकी टीम बहुत ही सुदृढ़ थी। सितारों से सुसज्जित टीम का हानिकारक पक्ष यही है कि अगर कप्तान भी बहुत अच्छा खिलाड़ी न हो तो शायद उसे बागडोर संभालने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़े। और अच्छे कप्तानों की श्रेणी में सुनील गावस्कर का नाम भी आता है। वे क्रिकेट के सभी आयामों के बारे में लगभग सभी कुछ तो जानते हैं। वे एक बहुत ही चतुर कप्तान हैं पर शायद बहुत अधिक घुल-मिलकर नहीं रहते। इसलिए उनके टीम प्रबंध से उनके क्रिकेट के ज्ञान की सही समीक्षा नहीं होती है। माइक ब्रेयरली (इंग्लैंड) भी एक अच्छे कप्तान थे। परंतु वो ऐसे समय इंग्लैंड के कप्तान थे जब सभी सितारे ‘पैकर सर्कल’ में चले गए थे और फिर उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ तो इंग्लैंड का नेतृत्व किया ही नहीं और वही सच्ची अग्नि परीक्षा है।