मेरे शब्दकोष में तटस्थ अम्पायरिंग का नाम नहीं

28 दिसम्बर 1987

मेरे शब्दकोष में तटस्थ अम्पायरिंग का नाम नहींराजसिंह डूंगरपुर क्रिकेट का एक ऐसा व्यक्तित्व है, जिन्हें हम क्रिकेट का ‘इनसायक्लोपीडिया’ कहें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। रिलायंस कप बिलकुल पास है और ऐसी परिस्थितियों में उनसे खुलकर भारतीय क्रिकेट पर चर्चा करना सुखद पहलू है।

जितेंद्र मुछाल की राजसिंह डूंगरपुर से बातचीत

पिछले दिनों राजभाई इंदौर आए थे, जितेन्द्र मुछाल ने उनसे क्रिकेट पर लंबी बातचीत की। क्या वास्तव में सुनील-कपिल में मतभेद हैं? राजभाई का कहना है कि दोनों में कोई मतभेद नहीं है, हां दोनों की शैली बिलकुल भिन्न है। एक अंतर्मुखी है तो दूसरा बहिर्मुखी। एक पश्चिम भारत से आया है और दूसरा उत्तर भारत से। दोनों की आदतें अलग हैं, दोनों का लालन-पालन अलग-अलग ढंग से हुआ है। प्रस्तुत है उनसे लंबी बातचीत के अंश-

प्रश्न - राजसिंहजी, अभिवादन शब्द के रूप में आपने सिर्फ ‘नमस्कार’ का उपयोग कब से शुरू किया?

उत्तर- ये बात 1979 की है। 1978 में जब बिशनसिंह बेदी के नेतृत्व में भारतीय टीम पाकिस्तान के दौरे पर गई थी, तब पाकिस्तानी टेलीजिन पर हम लोग ‘गुड मार्निंग’ या ‘असलामालिकुम’ कहा करते थे। ‘गुड मार्निंग’ तो हमने किसी दूसरे मुल्क से उधार लिया है, और फिर हमारा मौलिक अभिवादन तो ‘नमस्कार’ ही है।

प्रश्न- अब सीधे क्रिकेट पर आ जाते हैं। हाल ही में संपन्न भारत-पाक श्रृंखला के बाद क्या आप यह सोचते हैं कि कप्तान के रूप में कपिल का चयन सही है?

उत्तर - निस्संदेह। मैं अत्यधिक बारीकियों में तो नहीं जाना चाहूंगा परंतु बार-बार कप्तानी में परिवर्तन टीम के लिए उत्साहवर्द्धक नहीं सिद्ध होता है। एक व्यक्ति, जो कि जुलाई में किसी कार्य के लिए सक्षम है, वह एकदम मार्च में इतना खराब तो नहीं हो सकता। मेरे ख्याल से तो भारतीय टीम स्तरहीन क्रिकेट खेली है। कपिल एक ऐसे कप्तान तो निश्चित तौर पर नहीं हैं, जो कि बहुत नीति व दूरदर्शिता से खेलते हैं। वह तो अपनी स्वाभाविक प्रकृति पर अधिक निर्भर करते हैं। और, ऐसे बहुत से कप्तान हुए हैं, जो कि नीतियों के मामले में निपुण थे, परंतु टीम ग्यारह खिलाड़ियों के सामूहिक प्रदर्शन से बनती है, किसी एक से नहीं।

वे बातचीत में निपुण हैं और वे एक बहुत अच्छे नेता हैं। आखिर, नेतृत्व भी तो कप्तानी के आयामों में से एक है। एक अच्छे कप्तान को अच्छा नेता होना बहुत जरूरी है

प्रश्न- क्या आपको यह नहीं लगता कि उनमें दिमाग के बजाय दमखम ज्यादा है?

उत्तर- वे निःसंदेह रूप से एक बुद्धिजीवी या क्रिकेट के महान दृष्टा तो नहीं हैं, परंतु वे खेल के मौलिक तत्वों से भलीभांति परिचित हैं।

प्रश्न- तो क्या आपके अनुसार वे मैदान पर पूरा अपना जी-जान लगाते हैं?

उत्तर- बेशक। और उनके साथ सबसे बड़ी खूबी यह है कि वे बातचीत में निपुण हैं और वे एक बहुत अच्छे नेता हैं। आखिर, नेतृत्व भी तो कप्तानी के आयामों में से एक है। एक अच्छे कप्तान को अच्छा नेता होना बहुत जरूरी है।

प्रश्न- परंतु, मोहिंदर अमरनाथ द्वारा बेहतरीन प्रदर्शन के बावजूद गेंदबाज के रूप में कपिल उनका प्रयोग इतना कम क्यों करते हैं?

उत्तर- मोहिंदर एक ऐसे गेंदबाज हैं, जिन्हें सफल होने के लिए वातावरण या गेंद की चमक की सहायता चाहिए। परंतु जब कपिल के पास अन्य प्रारंभिक गेंदबाज टीम में होते हैं तो फिर वही नई गेंद मोहिंदर को नहीं दे पाते हैं और फिर कपिल कोई बहुत ज्यादा ‘परीक्षण’ करने वाले कप्तानों में नहीं हैं।

प्रश्न- लेकिन, श्रीकांत, अजहर या राजपूत को तो वे गेंद सौंप देते हैं?

उत्तर- श्रीकांत को तो वे सिर्फ एक-दो ओवर के लिए गेंद देते हैं। वह भी इसलिए कि जिसने श्रीकांत की गेंदें पहले नहीं खेली हों, उन बल्लेबाजों को श्रीकांत कुछ कठिनाई में डाल देते हैं। वे एक ऑफ स्पिनर माने जाते हैं, परंतु उनकी गेंदें तो दूसरी ओर घूमती हैं। परंतु एक बार खेलने के बाद तो उनकी गेंदबाजी काफी सरल नजर आती है। उनका उपयोग वे चंद ओवर से ज्यादा नहीं करते।

प्रश्न- अगर गावस्कर को रिलायंस कप के लिए कप्तान चुना गया तो क्या आप समझते हैं कि वे स्वीकार कर लेंगे?

उत्तर- ये तो खुद सुनील ही बता सकते हैं। परंतु जैसा मैं उन्हें जानता हूं, वे नहीं करेंगे। एक बार वे किसी चीज का परित्याग कर देते हैं तो फिर उसे वापस बहुत कम ही स्वीकार करते हैं। और अगर वे ऐसा करते हैं तो यह उनके विचारों का अच्छा प्रतिबिंब नहीं होगा। और क्या भारतीय टीम इतनी जर्जर स्थिति में है कि हम सिर्फ सुनील को कप्तान बना सकते हैं, यह जानते हुए भी कि वे खुद अपनी मर्जी से इसका त्याग कर चुके हैं।

प्रश्न- तो, फिर आप क्या सोचते हैं कि कपिल और गावस्कर में कोई मनमुटाव नहीं है?

उत्तर- मनमुटाव का तो प्रश्न ही नहीं उठता। क्रिकेट के नजरिये से दोनों एकदम अलग व्यक्तित्व हैं। एक अंतर्मुखी है, तो दूसरा बहिर्मुखी है। एक उत्तर भारत से आता है, तो दूसरा पश्चिम भाग से। उनकी आदतें अलग हैं, दोनों का लालन-पालन अलग-अलग तरीके से हुआ है। सुनील में ‘शहरी’ जीवन की झलक कपिल से कहीं ज्यादा है।

प्रश्न- फिर भी, कोई मतभेद तो होंगे?

उत्तर- अगर, एक पिता और पुत्र भी कप्तानी के लिए बारी बारी से चुने जाएं तो उनमें मतभेद होना अवश्यंभावी है। आखिरकार, उसमें व्यक्ति नहीं वरन पद की महिमा अधिक है।

प्रश्न- ‘कर्नल’ वेंगसरकर का नाम कप्तान के रूप में हमेशा छोड़ क्यों दिया जाता है?

उत्तर- हां, वे बहुत अच्छे क्रिकेटर हैं, इसमें कोई शक नहीं है। शायद एक व्यक्ति के रूप में उनसे कुछ और आशाएं हो सकती हैं। चूंकि चयन समिति या टीम के मैनेजर लगातार स्थायी नहीं रहते, इसलिए इस बात का पता लगाना मुश्किल है कि क्या एक व्यक्ति के रूप में वे बहुत जनप्रिय है या नहीं। कप्तानी एक ऐसी टोपी है कि आप सोचते हैं कि वह इस सिर पर फंसेगी, उस पर शायद नहीं।

प्रश्न- परंतु, इस तरह का कुछ चित्रण तो हुआ है कि वे बहुत मिलनसार नहीं हैं?

उत्तर- हां, शायद यह सही हो सकता है। अगर आप व्यक्तिगत तौर पर मुझसे यह सवाल पूछें, तो मुझे तो वे बहुत ही खुशमिजाज व्यक्ति लगते हैं और हम दोनों की बहुत पटती है। परंतु भारतीय टीम सिर्फ मेरे दृष्टिकोण से तो बन नहीं सकती। उन्हें किसी समय मौका तो जरूर दिया जाना चाहिए था। मौका तो अमरनाथ को भी दिया जाना चाहिए था। परंतु इन सब बातों का विश्लेषण करना बहुत मुश्किल होता है। रवि शास्त्री को चयन समिति ने युवा भारतीय टीम का कप्तान बनाया था और इन्होंने अपने आप को कप्तानी के भार से काफी अभ्यस्त कर लिया। उपकप्तान हमेशा उसी व्यक्ति को नियुक्त किया जाता है जिसे 3-4 वर्षों के बाद टीम के कप्तान के रूप में देखा जा सके। सुनील गावस्कर को तो हमने 1974 में ही उपकप्तान बना दिया था। उस समय मैं चयन समिति का सदस्य था। तब भी हमने कई लोगों को नजरअंदाज कर दिया था और उस समय तो गावस्कर भी काफी नए थे।

प्रश्न- क्या आप कपिल और इमरान को कप्तानी के मामले में एक ही श्रेणी का मानते हैं?

उत्तर- उनमें सिर्फ एक मुख्य फर्क है। जहां कपिल पूर्णतः स्वदेशी क्रिकेट की उपज हैं, वहीं इमरान ने काउंटी क्रिकेट बहुत खेला है। उसी के फलस्वरूप उनका सोचने का तरीका कपिल से कहीं ज्यादा प्रोफेशनल है। वैसे मैं इमरान को बहुत उच्च श्रेणी का कप्तान नहीं मानता हूं। सुनील गावस्कर शायद उन्हें मानते हैं, परंतु मैं नहीं। वो एक बहुत अच्छे नेता हैं। इसका कारण यह है कि मैदान के अंदर और बाहर उनकी ऐसी विशालकाय छवि बन गई है कि वो टीम में लगभग पितृ सम आदर पाते हैं। पाकिस्तान में तो वे अकेले ‘वन मैन मिस्टर- क्रिकेट’ हैं।

प्रश्न- तो फिर आप वर्तमानव निकट भूतकाल के सर्वश्रेष्ठ कप्तानों की श्रेणी में किसे रखते हैं? इस युग की लक्ष्मण रेखा कहां है? (1970)

उत्तर- उस समय तक रे इलिंगवर्थ (इंग्लैंड) खेल रहे थे। और मेरे हिसाब से तो वे एक बहुत बढ़िया कप्तान थे। एक अच्छा कप्तान तो वह है कि जो कि साधारण खिलाड़ियों से बनी टीम का नेतृत्व कर भी सफलता अर्जित कर सके। इस हिसाब से अगर थोड़ा पीछे देखें तो रिची बेनो (ऑस्ट्रेलिया) का नाम मेरे दिमाग में सबसे पहले आता है। रिची के पास सिर्फ दो स्थापित गेंदबाज थे- स्वयं रिची व एलन डेविडसन। इसके बावजूद उन्होंने अपने सभी महत्वपूर्ण मुकाबलों में विजय प्राप्त की। और अगर 70 के दशक की बात की जाए तो इलिंगवर्थ बहुत ही चतुर थे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक साधारण खिलाड़ी होने के बावजूद वे बहुत ही बुद्धिमान व कुशल कप्तान थे जो कि पिच का रुख बखूबी भांप लेते थे। इयान चैपल (ऑस्ट्रेलिया) तो अपने खुद के दमखम पर नेतृत्व करते थे। वो एक बहुत ही आक्रामक बल्लेबाज थे व आक्रामक व्यक्तित्व। उनकी टीम बहुत ही सुदृढ़ थी। सितारों से सुसज्जित टीम का हानिकारक पक्ष यही है कि अगर कप्तान भी बहुत अच्छा खिलाड़ी न हो तो शायद उसे बागडोर संभालने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़े। और अच्छे कप्तानों की श्रेणी में सुनील गावस्कर का नाम भी आता है। वे क्रिकेट के सभी आयामों के बारे में लगभग सभी कुछ तो जानते हैं। वे एक बहुत ही चतुर कप्तान हैं पर शायद बहुत अधिक घुल-मिलकर नहीं रहते। इसलिए उनके टीम प्रबंध से उनके क्रिकेट के ज्ञान की सही समीक्षा नहीं होती है। माइक ब्रेयरली (इंग्लैंड) भी एक अच्छे कप्तान थे। परंतु वो ऐसे समय इंग्लैंड के कप्तान थे जब सभी सितारे ‘पैकर सर्कल’ में चले गए थे और फिर उन्होंने वेस्टइंडीज के खिलाफ तो इंग्लैंड का नेतृत्व किया ही नहीं और वही सच्ची अग्नि परीक्षा है।


प्रश्न- अगर कथनों के अनुसार यह मानकर चलें कि गावस्कर रिलायंस कप के बाद संन्यास ले लेंगे तो क्या भारतीय टीम उससे उत्पन्न रिक्तता को भरने में कामयाब हो सकती है?

उत्तर- भारतीय टीम तो क्या, क्रिकेट का इतिहास भी गावस्कर के संन्यास से उत्पन्न खाई को पाटने में असमर्थ है। संपूर्ण क्रिकेट इतिहास में प्रारंभिक बल्लेबाजी में तीन ‘मील के पत्थर’ रहे हैं। प्रथम विश्व युद्ध के पहले व ठीक बाद में जेक हॉब्स (इंग्लैंड) जो एक ऐसे बल्लेबाज थे, जो सुदृढ़ नींव बनाने में माहिर थे। दोनों विश्व युद्ध के बीच में सर लेन हटन (इंग्लैंड) और अब सुनील गावस्कर। ऐसे खिलाड़ी रोज-रोज नहीं आते। प्रकृति की भी अपनी सीमा होती है। धैर्य, साहस, तकनीक एकाग्रता- कहने को तो ये बड़े ही आसान व सुंदर शब्द हैं पर इन सभी का एक खिलाड़ी में होना बहुत मुश्किल है और सुनील में ये कूट-कूटकर भरे हैं।

प्रश्न- परंतु उनके हाल ही के प्रदर्शन को देखकर यह लगता है कि वे अभी 2-3 साल तो और खेल सकते हैं?

मैं अत्यधिक बारीकियों में तो नहीं जाना चाहूंगा परंतु बार-बार कप्तानी में परिवर्तन टीम के लिए उत्साहवर्द्धक नहीं सिद्ध होता है

उत्तर- विजय मर्चेन्ट कहा करते थे, ‘खिलाड़ी को ऐसे समय संन्यास ले लेना चाहिए जब सभी कहें- अभी नहीं, और उस वक्त का इंतजार नहीं करना चाहिए जब सब कहें- क्यों नहीं।’ उन्हें अपना विदाई गीत तभी सुन लेना चाहिए जब वे विश्व के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक हैं। सुनील बहुत ही समझदार व्यक्ति हैं और मेरे ख्याल से उन्होंने अपने संन्यास के समय के बारे में गहन चिंतन कर लिया है। अगर वो अगले सीजन की शुरुआत में अपने संन्यास की घोषणा नहीं करेंगे तो सीजन के अंत में तो घोषणा अवश्यंभावी है। उनका क्रिकेट अब निश्चित रूप से अस्ताचल की ओर अग्रसर है।

प्रश्न- हाल ही की भारत-पाक श्रृंखला में इमरान खान ने भारतीय पिचों की बहुत निंदा की? क्या आप उनसे सहमत हैं?

उत्तर- हां, भारतीय पिच बिलकुल निर्जीव थे। उन्होंने एक बहुत अच्छा निरीक्षण किया। भारत ने इंग्लैंड को इंग्लैंड में इंग्लिश पिचों पर हराया इसलिए भारत में भी थोड़ी नमी व घास से परिपूर्ण विकेट बनाना कोई बहुत गलत निर्णय नहीं होगा। परंतु निर्जीव विकेट पर बात को किसी भी तरह नहीं छुपा सकते कि जिन चार टेस्ट मैचों में भारत का पलड़ा हमेशा भारी रहा, उनमें इमरान ने अत्यंत ‘निगेटिव’ क्रिकेट खेला था। पारी समाप्ति की किसी भी घोषणा को उन्होंने आक्रामक रूप में नहीं लिया। टीम को जो पूरे दिन के खेल में महज 125 रन बना पाती है, यह बोलने का कोई हक नहीं है कि विकेट खराब या निर्जीव थे।

प्रश्न- परंतु क्या क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड विकेट सुधारने के लिए कुछ कर रहा है?

उत्तर-  मुझे इस बारे में जानकारी नहीं है। इस सीजन के अंत में तो क्रिकेट की मूलभूत जानकारी रखने वाले व्यक्ति भी पिच के हालात को देखकर खीझ उठे हैं। परंतु विकेट बनाने के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाने के मामले में बोर्ड कोई कदम नहीं उठा रहा है। और इस बात की मैं पिछले पांच सालों से चर्चा कर रहा हूं। शायद बोर्ड में ज्यादा लोग इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं कि क्रिकेट बड़े स्टेडियम और क्रिकेट एसोसिएशन के आय-व्यय के लेखा-जोखा से नहीं पनपता। क्रिकेट तो 22 गज की जमीन से पैदा होता है। इतिहास मैं उन बाईस गज को ‘सबसे बहुमूल्य शहरी जमीन’ की संज्ञा देता हूं। हमें इस विषय की ओर तुरंत ध्यान देना चाहिए और अगर बेजान विकेट तैयार करने की प्रक्रिया बरकरार रही तो यह समझ लीजिए कि सोने का अंडा देने वाली मुर्गी का सरेआम कत्ल हो गया है।

मनमुटाव का तो प्रश्न ही नहीं उठता। क्रिकेट के नजरिये से दोनों एकदम अलग व्यक्तित्व हैं

प्रश्न- ‘किसी भी चीज की अति हानिकारक सिद्ध होती है।’ क्या इस ध्रुव वाक्य का प्रतिबिंब अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में भारत के निम्न प्रदर्शन से नहीं झलकता है?

उत्तर- इस सीजन ने तो उस वाक्य को चरितार्थ कर दिया है और उससे यह भी साबित होता है कि भारत-पाक श्रृंखला कितने गलत समय पर निर्धारित की गई थी। इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया के एशेज मुकाबले की तरह भारत-पाकिस्तान श्रृंखला में भी क्रिकेट के अलावा कुछ और भी जुड़ा रहता है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि वहां युद्ध के समान भावना रहती है। और हो भी क्यों नहीं- खिलाड़ियों की भाषा, खानपान, सब कुछ तो समान है। परंतु फिर भी मैदान पर मुकाबले की भावना और प्रबल होती है। इसलिए, इस श्रृंखला को क्रिकेट सीजन के अंत में आयोजित करने के बजाय मुख्य आकर्षण के रूप में पहले आयोजित करना चाहिए था।

प्रश्न- इमरान खान तटस्थ अंपायरिंग के पक्ष में बहुत कुछ बोल व लिख चुके हैं। इस बारे में आपके क्या विचार हैं?

उत्तर- मेरे क्रिकेट शब्दकोश में तटस्थ अम्पायर नामक शब्द है ही नहीं। जो शब्द है, वह श्रेष्ठ अम्पायर। तटस्थता है तो बड़ा लुभावना शब्द परंतु जो आपको निष्पक्ष या तटस्थ प्रतीत होता हो, वो शायद मुझे नहीं लगे। अब अगर एक वेस्टइंडीज का अम्पायर हो पर उसका मूल भारतीय हो तब भी शायद कोई उसे निष्पक्ष मानने से इंकार कर दे, तो! हमारी असली जरूरत है- श्रेष्ठ व उच्चतम श्रेणी के अम्पायरों की। न तो पाकिस्तान और न ही भारत सभी मैचों के लिए सर्वश्रेष्ठ अंपायर नियुक्त कर सकते हैं। श्रेष्ठ कोटि के अंपायर बहुत कम होते हैं पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तो उन्हें ही सारे मैचों में रहने देना चाहिए।

प्रश्न- परंतु बंगलोर टेस्ट में अंपायर श्री रामास्वामी के साथ किए गए अभद्र व्यवहार को देखकर क्या अंपायरों को और अधिक अधिकार नहीं दिए जाने चाहिए?

उत्तर- सवाल सिर्फ अंपायर और उनके अधिकारों का नहीं है। भारतीय उपमहाद्वीप में तो अंपायर के सामाजिक स्तर का सवाल सबसे ज्वलंत है। अंपायर यहां उस व्यक्ति को समझा जाता है जो और कुछ नहीं कर पाया है। एक अंपायर उच्चतम न्यायालय के एक सम्माननीय जज के समान होता है। अंपायर तो सिर्फ नियमों का रखवाला है, पर व्यवहार का रखवाला तो टीम का मैनेजर होता है। एक मैनेजर का व्यक्तित्व बहुत ऊंचा होना चाहिए। यह तात्पर्य नहीं कि वह 7 फीट ऊंचा या 250 पौंड वजन हो, परंतु कुछ ऐसा होना चाहिए कि एक बार जो किसी खिलाड़ी की विपरीत रिपोर्ट भेज दे, तो अत्यंत ही कठोर कार्रवाई की जाए। जब तक कि ऐसा नहीं होता, इस खेल की शालीनता का खिलवाड़ होता रहेगा। और अगर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खिलाड़ी ऐसा करते हैं तो आने वाली पीढ़ी पर भी वही असर होगा। इस सबका अंत फिर न जाने कहां होगा?


प्रश्न- परंतु क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड तो टीम के मैनेजर को कैलेंडर के पन्नों की तरह बदलते हैं?

उत्तर- उन्हें शायद इसका अनुमान नहीं है कि वे क्या कर रहे हैं। उलटफेर करने की तो जैसे आदत-सी पड़ गई है परंतु इस ओर किसी ने भी आपत्ति नहीं उठाई है। मेरे विचार से तो बोर्ड को एक स्थायी मैनेजर और वेतन देय सेक्रेटरी रखना चाहिए। इससे कोई अगर समझे कि मैं अपने आपको एक उम्मीदवार के रूप में पेश कर रहा हूं तो मैं कहूंगा, ‘कदापि नहीं। मेरे पास इतना समय नहीं है।’ परंतु ऐसे कई योग्य व्यक्ति हैं, जिनमें से किसी एक को नियुक्त किया जा सकता है। मैं नाम तो नहीं लूंगा, परंतु एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास सब कुछ है- न सिर्फ क्रिकेट का ज्ञान, बल्कि पूर्णनिष्ठा भी। समर्पित व्यक्ति इस कार्य के लिए उपयुक्त रहेगा।

प्रश्न- सैयद किरमानी के बाद भारतीय क्रिकेट टीम में कोई स्थायी विकेट कीपर नहीं आ पाया है। किरण मोरे, चंद्रकांत पंडित व सदानंद विश्वनाथ- इन तीनों में से कौन उस स्थान के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है?

उत्तर- मेरे ख्याल से अब तो यह सवाल हल हो चुका है। किरण मोरे बहुत अच्छे विकेट कीपर हैं। किरमानी तो भारत के सर्वश्रेष्ठ विकेट कीपर थे। और मोरे टेस्ट मैच के लिए उपयुक्त हैं, क्योंकि वे एक बैट्‌समैन हैं। और एक दिवसीय मैचों में तो ऐसे बल्लेबाज की जरूरत होती है जो विकेट कीपिंग भी कर सकता है। पीछे तो बहुत कम गेंदें आती हैं। और जो आती भी हैं, वो ज्यादातर वाइड बॉल होती हैं। एक दिवसीय मैचों के लिए तो चंद्रकांत पंडित उपयुक्त हैं, परंतु वे अभी अपना स्थायी स्थान नहीं बना पाए हैं।

प्रश्न- कपिल देव व भारत को एक नपे-तुले मध्यम तेज गेंदबाज की बहुत जरूरत है। इस विषय में आपके क्या विचार हैं?

उत्तर- यह मसला भी लगभग सुलझ गया है। चेतन शर्मा बहुत अच्छे गेंदबाज हैं। परंतु, सीजन के शुरू होने के समय से ही उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहा है। और अगर 21-22 वर्ष की उम्र में कोई अपने प्रदर्शन के बजाय सेहत के कारण टीम में स्थान न बना पाए तो काफी दुःखद विषय है।

प्रश्न- पिछले चंद वर्षों से घरेलू क्रिकेट स्पर्धाओं के साथ अत्यंत उपेक्षित व्यवहार किया जा रहा है। क्या इसके दूरगामी परिणाम प्रतिकूल नहीं होंगे?

उत्तर- राज्य क्रिकेट एसोसिएशन से क्रिकेट को प्रोत्साहन तभी मिलेगा, जब सदस्यों की संख्या में वृद्धि की जाएगी। और इंग्लैंड में काउंटी क्रिकेट की लोकप्रियता भी इसलिए बरकरार है क्योंकि सभी सदस्य क्लब या काउंटी के समर्थक बन दर्शक के रूप में आते हैं।

प्रश्न- एक दिवसीय क्रिकेट के आगमन से सही तकनीक का उपयोग पार्श्व में और रन बनाना प्रमुख हो गया है। क्या आप इससे संतुष्ट हैं?

उत्तर- एक दिवसीय क्रिकेट तो जैसे क्रिकेट की भेल है। भेल में आप कोई भी मसालों का प्रयोग कीजिए, वह भेल ही रहेगी। परंतु झटपट क्रिकेट के आनंद की भी एक सीमा है। दिनभर के खेल में अच्छा क्षेत्ररक्षण, धुआंधार बल्लेबाजी। पर मेरे लिए तो संपूर्ण सीजन में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन तो बंगलोर में सुनील गावस्कर के 96 रन लगे। वे तो अनंतकाल के लिए मेरी याददाश्त रहेंगे। उस दिन विकेट अत्यधिक स्पिन ले रहा था, गेंदबाज अपने सर्वश्रेष्ठ पर थे और एक अकेले गावसकर के बल्ले ने जैसे बल्लेबाजी का महाकाव्य ही रच दिया था। और मैच का रुख तो अंत तक अनिश्चित था। ऐसी पारियां एक दिवसीय क्रिकेट में कहां नसीब होती हैं।

प्रश्न- क्या रिलायंस कप विश्व स्पर्धा के लिए बोर्ड की तैयारियां संतोषजनक हैं?

उत्तर - विचार विनिमय व योजना तो बहुत विस्तृत तौर पर तैयार की गई है। परंतु क्रिकेट संबंधी विषय जैसे पिच की तैयारी, उनको ढंकने की व्यवस्था, दर्शकों द्वारा मैच के बीच में विघ्न, खिलाड़ियों के ड्रेसिंग रूम की व्यवस्था इन सब पर भी पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए। हमारे देश में तो ऐसे गिनती के ड्रेसिंग रूम हैं जो कि ‘साइड स्क्रीन’ के ठीक ऊपर हों। हम शायद इस बात को महत्व नहीं देते कि कोई खिलाड़ी पूर्णतः निजी ढंग से मैच को देख सके। और यह बात तब उजागर होती है जब व्यक्ति या तो खुद खिलाड़ी होता है या फिर वह टीम का मैनेजर होता है। स्टेडियम का सबसे विशिष्ट अंग मेहमानों के लिए नहीं बल्कि खिलाड़ियों के लिए होना चाहिए।

प्रश्न- आकाशवाणी व दूरदर्शन के प्रसारण के बारे में आपको क्या लगता है?

उत्तर - हम अभी भी निर्धारित समय से बहुत पिछड़ रहे हैं। शायद केमरामैन, उद्‌घोषक और निदेशक के बीच उचित समन्वय नहीं हो पाता है। और जब तक वह नहीं होगा, शब्द व चित्र दोनों ही की दृष्टि से प्रसारण स्तरहीन होगा और अगर मैच के दिन प्रसारण अच्छा नहीं रहा तो कोई नहीं कहेगा कि ‘दूरदर्शन’ स्तरहीन था, सभी ‘भारतीय टेलीविजन’ की निंदा करेंगे। भारत के गौरवशाली इतिहास व प्रगति सम्मानजनक हैं और ऐसे आयोजन को सफल बनाने के तो हमें सभी प्रयास करने चाहिए।


प्रश्न- क्या उचित नहीं रहता कि रिलायंस कप के ठीक पहले हमारी टीम कुछ अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलकर ‘फॉर्म’ में आ जाती?

उत्तर - इस वक्त हमारे खिलाड़ियों को क्रिकेट से ज्यादा आराम की जरूरत है। लगातार क्रिकेट खेलते रहने से स्पर्धा की भावना क्षीण होने लगती है और अगर भारतीय टीम को अच्छे ‘फिजियोथेरेपिस्ट’ की सेवाएं मिल जाएं तो भारत का प्रदर्शन बहुत बेहतर हो जाएगा।

प्रश्न- 1983 के विश्व कप के पहले ऑस्ट्रेलिया के किम ह्यूज ने भारत के अवसरों के बारे में सही भविष्यवाणी की थी। इस बार किस देश के आसार सबसे अच्छे हैं?

उत्तर- एक दिवसीय क्रिकेट में इस तरह की भविष्यवाणी करना बहुत मुश्किल है। सिर्फ कागज पर टीम के नाम काफी नहीं हैं- निर्धारित दिन पर सभी खिलाड़ी मिलकर कैसा खेलते हैं, इस पर बहुत कुछ निर्भर है। वेस्टइंडीज अभी भी बहुत सुदृढ़ टीम है। उन्हें हराना इसलिए और भी मुश्किल है क्योंकि उनके तेज गेंदबाज विरोधी टीम को ‘बेकफुट’ पर खेलने को मजबूर कर देते हैं और ‘बेकफुट’ पर बल्लेबाजी के स्ट्रोक बहुत सीमित हो जाते हैं। विश्व की अन्य टीमों में ऐसे 2-3 तेज गेंदबाज नहीं हैं। इसलिए, उनकी गेंदबाजी इतनी मुश्किल नहीं रहती है।

वैसे इस मौसम में इंग्लैंड का प्रदर्शन भी बहुत बढ़िया रहा है, परंतु भारत के पिचों पर इंग्लैंड की गेंदबाजी पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। और इयान बॉथम के बगैर इंग्लैंड का पलड़ा भी कमजोर हो जाएगा। पाकिस्तान और भारत को कभी भी कम नहीं आंका जा सकता। भारतीय टीम के अच्छे, बुरे और असाधारण प्रदर्शन का उतार-चढ़ाव इतना अजीब है कि कुछ नहीं कहा जा सकता। न्यूजीलैंड की टीम और ऑस्ट्रेलिया भी कुछ अप्रत्याशित करने की क्षमता रखते हैं। हां, श्रीलंका और जिम्बॉब्वे की जीतने की संभावनाएं बहुत कम हैं।

प्रश्न- निर्धारित ओवर से कम फेंकने पर गेंदबाजी वाली टीम पर रिलायंस कप में वित्तीय दंड लगेगा। क्या यह क्रिकेट से थोड़ा हटकर नहीं है?

उत्तर- कोई भी दंड क्रिकेट जैसे संभ्रांत खेल का अंग नहीं हो सकता। परंतु और कोई तरीका भी तो नहीं है। अगर बल्लेबाजी टीम को अतिरिक्त रन दिए जाएं तो वह तो नितांत पक्षपात हो जाएगा।

प्रश्न- परंतु वह पैसा खिलाड़ियों को देना पड़ेगा।

उत्तर - बिलकुल। वो रुपए बोर्ड नहीं देगा। वह या तो खिलाड़ियों के पारिश्रमिक में से जाएगा या उन्हें दिए गए पुरस्कारों की राशि में से। जैसा कि सर्वविज्ञ है, पुरस्कार से प्राप्त समस्त राशि खिलाड़ियों में बराबर हिस्सों में बांट ली जाती है। परंतु अगर ‘निगेटिव’ क्रिकेट को समाप्त करना है तो वित्तीय भार के अलावा और कोई चारा नहीं है।

प्रश्न-  परंतु कई बार तो बल्लेबाज भी समय नष्ट करते हैं?

उत्तर - आपने अत्यंत उचित प्रश्न पूछा है। कोई दंड तो बल्लेबाजी वाली टीम पर भी होना चाहिए। वैसे तो आप हर गेंद के बाद हेलमेट उतारकर रख सकते हैं, हर ओवर के बाद बल्ला बदल सकते हैं, परंतु यह खिलाड़ी भावना से च्युत नहीं है। पांच वर्षों पहले तो ये सब सवाल स्वप्न में भी नहीं आते थे और आज वे चरितार्थ हो गए हैं। और, ये क्रिकेट के उत्थान के आसार कदापि नहीं हैं।

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