निवेशक की जेब तक पहुंचने का रास्ता उसके दिल से होकर है!

13 सितम्बर 1992

निवेशक की जेब तक पहुंचने का रास्ता उसके दिल से होकर है!पिछले दिनों बहुचर्चित सिने-तारिका पूजा भट्‌ट के न्यूनतम परिधानों में विभिन्न आकर्षक मुद्राओं के विशाल रंगीन चित्रों की श्रृंखला देश के कई अखबारों के पन्नों और पाठकों के दिलो-दिमाग पर छाई रही। फिल्मों में अपने अभिनय के जरिये पूजा भट्‌ट द्वारा अर्जित ‘मासूमियत‘ की इमेज का तो इन ‘ग्लैमरस‘ चित्रों से दूर-दूर तक कोई वास्ता न था। परंतु चित्रों को देखने के बाद सबसे पहला सवाल जो पाठकों के मन में आया, वो यही था कि इन चित्रों को प्रकाशित करने का प्रयोजन क्या था? इन चित्रों के शीर्षक से ये तो स्पष्ट था कि वे संपादकीय प्रयोग न होकर किसी विज्ञापन का अंश थे, लेकिन विज्ञापन किस ‘चीज‘ का? जितने पाठक थे, उतनी ही अटकलें थीं- पूजा भट्‌ट की किसी आने वाली फिल्म का विज्ञापन। किसी ‘बिकनी‘ और महिलाओं के लिए अंतरवस्त्र बनाने वाली कंपनी के विज्ञापन। किसी रमणीय पर्यटन स्थल का विज्ञापन आदि-आदि। जी नहीं, सभी अटकलों को निराधार साबित करते हुए जब पाठकों को यह ज्ञात हुआ कि विज्ञापन बीयर और शराब बनाने जा रही एक कंपनी वेस्ट कोस्ट ब्रूअर्स एंड डिस्टलर्स लिमिटेड के पब्लिक इश्यू से संबंधित थे, तो वे स्तब्ध रह गए।

वे टू ए मेन्स हार्ट इज थ्रू हिज स्टमक

अंग्रेजी में गृहिणियों के लिए एक प्रचलित कहावत है ‘वे टू ए मेन्स हार्ट इज थ्रू हिज स्टमक‘ (जिसका भावार्थ यह है कि किसी आदमी का दिल जीतने का सबसे सुगम मार्ग उसे स्वादिष्ट भोजन कराकर यानी उसके पेट के जरिये है)। किंतु, कड़ी प्रतिस्पर्धा के वर्तमान युग में पब्लिक इश्यू लेकर आ रही वेस्ट कोस्ट ब्रूअरी (वेस्ट कोस्ट पेपर कंपनी से कोई संबंध नहीं) ने तो इस पुरातन घरेलू कहावत को एक नया रूप देकर कुछ ऐसा बना दिया कि, ‘वे टू द इन्वेस्टर्स पॉकेट एंड पर्स इज थ्रू हिज हार्ट।’

इस ‘हाई-प्रोफाइल‘ विज्ञापन अभियान से जुड़े तीन-चार महत्वपूर्ण प्रश्नों का जवाब तलाशने का मैंने प्रयास किया- क्या कंपनी द्वारा इस विज्ञापन श्रृंखला पर किए गए खर्च ने ‘सेबी‘ द्वारा पब्लिक इश्यू के लिए निर्धारित सीमाओं का उल्लंघन नहीं किया? पब्लिक इश्यू में कंपनी के कार्मिक और वित्तीय विषयों को प्राथमिकता देने के बजाय सिर्फ किसी ‘मॉडल‘ को दिखाना कहां तक सही है? क्या यह लोकप्रिय या चर्चित व्यक्तियों के आभामंडल के जरिये निवेशकों को लुभाने की एक नई प्रथा की शुरुआत नहीं है?

जब पाठकों को यह ज्ञात हुआ कि विज्ञापन बीयर और शराब बनाने जा रही एक कंपनी वेस्ट कोस्ट ब्रूअर्स एंड डिस्टलर्स लिमिटेड के पब्लिक इश्यू से संबंधित थे, तो वे स्तब्ध रह गए

खैर, सबसे पहली नजर इस कंपनी, इसके प्रवर्तकों और उसकी योजनाओं पर। कंपनी द्वारा जारी ‘प्रॉस्पेक्ट्‌स’ के अनुसार वेस्ट कोस्ट ब्रूअर्स को सन्‌ 1971 में ही एक कंपनी के रूप में वैधानिक मान्यता प्राप्त हो गई थी, और 1975 में उसे बीयर-शराब बनाने का लाइसेंस भी प्राप्त हो गया था। किंतु, विभिन्न कारणों से कुछ समय पहले तक कामकाज शुरू हुआ ही नहीं। गत वर्ष सरलक्स डायग्नोस्टिक कंपनी समूह के प्रबंधकों श्री दीपक गोयल-श्री लाल गोयल ने वेस्ट कोस्ट का अधिग्रहण कर लिया। इसी 1 सितंबर को कंपनी का 10 करोड़ 86 लाख रुपए का सामान्य अंशों के लिए सार्वजनिक निर्गम खुला था, जो कि इश्यू बंद होने की प्रथम तारीख 4 सितंबर को बंद हो गया था।

पानी की तरह बहाया पैसा

कंपनी ने अपने प्रॉस्पेक्टस में इस पब्लिक इश्यू से संबंधित सभी खर्चों (इश्यू प्रबंधक, सह प्रबंधक, रजिस्ट्रार, दलाल, हामीदारी मुद्रण, वितरण, विज्ञापन आदि) का अनुमान 1 करोड़ रुपए दर्शाया है। यदि इश्यू से जुड़े अन्य खर्चों को कम से कम आंकने के बाद भी इश्यू के विज्ञापन के लिए कंपनी ‘प्रॉस्पेक्टस‘ के अनुसार 20-25 लाख रुपए से अधिक खर्च करने की स्थिति में कदापि नहीं थी। लेकिन, विज्ञापन दरों की बारीकियों से अनभिज्ञ सामान्य पाठक भी यह अनुमान लगा सकते हैं कि कंपनी ने पूजा भट्‌ट के विज्ञापनों से पैसा खर्चा नहीं किया वरन्‌ पानी की तरह बहाया है।

पिछले चंद हफ्तों से वेस्ट कोस्ट- पूजा भट्‌ट के आधे पेज के सिर्फ रंगीन विज्ञापन कई क्षेत्रीय, राष्ट्रीय अखबारों और पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं। राष्ट्रीय दैनिक जैसे- ‘टाइम्स ऑफ इंडिया‘, के रविवारीय रंगीन संस्करण में विज्ञापनदर 1600 रुपए प्रति कॉलम सेंटीमीटर की है। अर्थात्‌ आधे पेज (लगभग 200 सेंटीमीटर) की कीमत हो गई तीन लाख रुपए से अधिक। और, यह सिर्फ एक राष्ट्रीय अखबार में एक बार विज्ञापन देने का खर्च है, फिर जिस प्रकार वेस्ट कोस्ट ने विज्ञापनों की ‘झड़ी‘ लगा दी, उसकी लागत निश्चित करो़ड़ों रही होगी। यही नहीं, इस लेखक ने इश्यू-अवधि के दौरान बंबई में पूजा भट्‌ट- वेस्ट कोस्ट की जो छटा विज्ञापन-होर्डिंग्स पर देखी, वह तो शब्दों में वर्णन से परे है। बंबई में, जहां होर्डिंग्स पर विज्ञापन की दर 20,000 से लेकर 1,50,000 रुपए प्रति माह तक की है, वहां वेस्ट कोस्ट के छोटे-बड़े मिलाकर इतने होर्डिंग्स थे कि बंबई की सड़कों पर चल रहा कोई भी व्यक्ति पूजा भट्‌ट और वेस्ट कोस्ट को चाहकर भी अनदेखा नहीं कर सकता था। इसके अलावा, कंपनी ने ‘कार-स्टिकर‘ पोस्टर आदि और भी कई विज्ञापन माध्यमों का जमकर प्रयोग किया।

बंबई से कंपनी के निकटस्थ सूत्रों से प्राप्त सबसे दिलचस्प जानकारी तो यह है कि पूजा भट्‌ट के ये सभी चित्र मॉरीशस में खींचे गए थे, जहां पर पूजा भट्‌ट सहित अन्य व्यक्तियों को लाने, ले जाने और रखने पर कंपनी ने 25 लाख रुपए खर्ज किए। खुद पूजा भट्ट ने कितने लिए यह तो पता नहीं पर इसके पांच लाख रुपए से कम क्या लिए होंगे? मॉरीशस में ‘वेस्ट कोस्ट‘ विज्ञापन हेतु उनके सैकड़ों चित्र लिए गए, जिसमें से कंपनी ने सिर्फ करीब आधा दर्जन का ही उपयोग किया। यहां यह उल्लेखनीय है कि पूजा की नामराशि पूजा बेदी द्वारा ऐसे ही एक चर्चित कंडोम विज्ञापन श्रृंखला के लिए सात लाख रुपए लेने की चर्चा है।

‘मैंने वेस्ट कोस्ट के सभी विज्ञापन तो नहीं देखे, इसलिए उनके कुल विज्ञापन खर्च का तो मैं अनुमान लगाने की स्थिति में नहीं हूं। लेकिन 10 करोड़ रुपए के ‘मध्यम-आकार‘ के पब्लिक इश्यू पर किया गया यह खर्च निश्चित ही सामान्यतः निर्धारित स्तरों से बहुत ज्यादा है’, ये विचार इंदौर की स्विफ्ट एडरवरटाइजिंग के राहुल जैन ने व्यक्त किए। जब कंपनी के प्रॉस्पेक्टस में विज्ञापन खर्च (इश्यू संबंधित) सिर्फ 20-25 लाख रुपए आंका गया है तो फिर करोड़ों रुपए का यह खर्च कैसे संभव हो सकता है? ‘क्यों नहीं, कंपनी द्वारा महज कंपनी और उसकी उत्पाद योजनाओं के विज्ञापन (कार्पोरेट एडवरटाइजिंग)पर किए जाने वाले खर्च पर कहीं कोई सीमा-बंधन नहीं है। ‘सेबी‘ द्वारा तो सिर्फ इश्यू से संबंधित विज्ञापनों के दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, जिनका कंपनी ने अवश्य ध्यान रखा होगा’, ये शब्द वेस्ट कोस्ट के पब्लिक इश्यू के हामीदारों में से एक इंदौर की डी.एस. संचेती एंड कंपनी के श्री निर्मल संचेती के हैं। अब ‘कार्पोरेट एडरवरटाइजिंग‘ और ‘इश्यू एडरवरटाइजिंग‘ के बीच की लक्ष्मण-रेखा इतनी महीन है कि कंपनी उसे अपने हिसाब से परिभाषित कर सकती है और वेस्ट कोस्ट ने इसे अपने ढंग से परिभाषित किया भी है।

इस लेख के जरिए वेस्ट कोस्ट – पूजा भट्‌ट के मुद्दे पर प्रकाश डालना तो उद्देश्य था ही, परंतु मुख्य विषय तो इस अभियान से होने वाली एक नई शुरुआत की संभावना का है। इस नए चलन पर निर्मल संचेती कहते हैं ‘आज जबकि हर दिन औसतन एक नया पब्लिक इश्यू बाजार में आ रहा है, तब अपनी ओर निवेशक का ध्यान आकर्षित करने के लिए कंपनी को लीक से हटकर कुछ करना ही पड़ता है, अन्यथा पब्लिक इश्युओं की भरमार में यह अपनी विशिष्ट छवि नहीं बना पाएगा। वेस्ट कोस्ट की इस विज्ञापन श्रृंखला का सिर्फ एक ही लक्ष्य था- लोगों के मस्तिष्क में अपना स्थान बनाना, जिसमें वह लगभग सफल भी रहा। फिर उसके लिए उन्हें कोई भी मार्ग क्यों न अपनाना पड़ा हो? प्राप्त जानकारी के अनुसार इश्यू खुलने वाले दिन ही पूर्णतः ‘सब्स्क्राइब‘ हो गया था और अंततः इश्यू 5 से 7 गुना ‘ओवर सब्स्क्राइब‘ हो गया। कंपनी को और क्या चाहिए?

नई परंपरा की शुरुआत

परंतु क्या यह एक नई परंपरा की शुरुआत नहीं है, जब पब्लिक इश्यू ला रही कंपनियां अपने कार्यक्रमों को प्रचारित करने के बजाय किसी ‘चेहरे‘ को अधिक महत्व देने लगेंगी? इस पर राहुल जैन का सटीक-सा जवाब है ‘यह तो निवेशक और उसके मानस की परिपक्वता की पहचान है कि वह पूजा भट्‌ट के आकर्षण और वेस्ट कोस्ट के वित्तीय आंकड़ों में से किसे चुनता है। अगर निवेशक महज विज्ञापनों की चकाचौंध से कंपनी के पीछे दौड़ा चला जाए तो इसमें दोष कंपनी का नहीं, वरन्‌ निवेशक के अविकसित विवेक का है।’ तो फिर क्या साबुन, तेल, पंखे की तरह ‘पब्लिक इश्यू’ भी महज एक वस्तु हो गया है, जिसे चर्चित चेहरों के दम पर बेचा जाए? इस पर श्री जैन ने कहा, ‘वैसे तो विज्ञापन की दृष्टि से पब्लिक इश्यू भी एक वस्तु ही है। भारत में सबसे पहले रिलायंस के पब्लिक इश्यू को ‘खजाना’ और दीप केमिकल्स के इश्यू को ‘महाधन’ का नाम देकर उनकी छवि भी उसी सीढ़ी की एक और पायदान है। फिर, प्रश्न यह है कि प्रतिष्ठित कंपनियों और औद्योगिक घरानों के पास तो खुद की ‘इमेज‘ है, जिसे वे भुना सकते हैं। ऐसे में नई कंपनी और नए प्रवर्तकों के पास खुद की तो कोई अर्जित छवि है नहीं, इसलिए वे ‘छवि-युक्त’ चेहरों की मदद लेते हैं।’ तर्क पक्ष में भी है, और विपक्ष में भी, परंतु यह तथ्य निर्विवाद रूप से उभरकर आया है कि यह पब्लिक इश्यू विज्ञापनों में एक नई शुरुआत है। आज तो यह पूजा भट्‌ट ही है, कल अगर माधुरी दीक्षित, सुनील गावस्कर अथवा उस्ताद जाकिर हुसैन या कोई और आपको किसी इश्यू में पैसा लगाने का आमंत्रण दें, तो चौकिएगा नहीं क्योंकि ‘युद्ध, मोहब्बत और विज्ञापनों में सब जायज है।

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