सवालों के अंबार पर बैठी अमेरिकी निर्वाचन प्रणाली
गवर्नर बुश, पिछले 45 मिनट में घटनाक्रम काफी बदल गया है और फ्लोरिडा में स्वतः ही पुनर्गणना होने वाली है, इसलिए मैं आपको दी हुई बधाई वापस लेता हूं।’
- ‘वाइस प्रेसिडेंट महोदय, तो क्या आप मुझे कहना चाहते हैं कि आप अपनी पराजय की स्वीकृति वापस लेना चाहते हैं।‘
- ‘गवर्नर, आप इस पर इतना बौखलाइए मत। बड़े अजीब हालात हो रहे हैं।’
- ‘पर फ्लोरिडा के गवर्नर तो मेरे भाई जैब बुश हैं और उन्होंने मुझे अभी बताया है कि फ्लोरिडा में हम विजयी हुए हैं।’
- ‘गवर्नर साहब, आपके छोटे भाई फ्लोरिडा के चुनाव के अंतिम निर्णायक नहीं हैं, धन्यवाद और शुभरात्रि।’
यह किसी फिल्म के सनसनीखेज संवाद नहीं वरन वह फोन वार्तालाप है जो अब विश्व इतिहास में दर्ज हो गया है। यह फोन वार्तालाप था वाइस प्रेसिडेंट गोर और गवर्नर बुश के बीच, कल रात लगभग ढाई बजे का जब गोर ने बुश को सिर्फ चंद मिनटों पहले स्वयं ही ने दी विजय की औपचारिक बधाई वापस ले ली। अमेरिका इस वक्त उन सवालों के अंबार पर बैठा है, जिसके बारे में शायद इन्होंने कभी सोचा ही नहीं था। सारा विश्व देख रहा है अचंभे से, आश्चर्य से कि दुनिया का सर्वाधिक शक्तिशाली और साधन संपन्न राष्ट्र अपने चुनाव भी ठीक से नहीं करवा सकता।
फ्लोरिडा में तो गुत्थियां ही गुत्थियां हैं। वेस्ट पाम बीच क्षेत्र में कई मतदाताओं का आरोप है कि बेलेट पत्र कुछ ऐसे गलत छपे थे कि वे वोट डालना चाहते थे गोर को, लेकिन वोट डल गया निर्दलीय उम्मीदवार बुकनेन को। तीन मतदाताओं ने तो कोर्ट में याचिका भी दाखिल कर दी है।
बुश यदि फ्लोरिडा को थोड़े-बहुत अंतर से जीत भी जाते हैं तो उनकी विजय का आधार जनमत का बहुमत न होकर इलेक्टोरल में विजय रहेगी। तो क्या वे देश और विदेश का विश्वास जीत पाएंगे? अल गोर ने इस बात पर अपनी स्पष्ट राय देते हुए कहा कि वे संविधान द्वारा स्थापित इलेक्टोरल को ही मान्यता देंगे और उसका आदर करेंगे।
सवाल अभी भी बाकी हैं…
अभी डाक से आए मतपत्रों के सवाल भी बाकी हैं और फ्लोरिडा के गवर्नर और जॉर्ज बुश के छोटे भाई जैब बुश ने नैतिकता के आधार पर अपने आपको फ्लोरिडा की पुनर्गणना से अलग कर लिया है। वहीं दूसरी ओर सारे मीडिया जगत में बखेड़ा है कि एक रात में चंद घंटों के फैसले में एक नहीं दो बार गलत घोषणा और वो भी हर बड़े नेटवर्क द्वारा। पहले गोर के फ्लोरिडा जीतने की ओर फिर बुश के फ्लोरिडा और चुनाव जीतने की जबकि सवाल अभी भी बाकी हैं।
कई बड़े अखबारों के हेडलाइन पर बुश के विजयी होने के समाचार छप चुके थे और अखबार बंट भी गए। नेटवर्क्स की वेबसाइट्स पर रात ढाई बजे से लगभग आधे घंटे तक ‘बुश अमेरिका के 43वें राष्ट्रपति’ सुर्खियां चलती रहीं। आखिर यहां कॉम्पीटिशन इतनी ज्यादा है कि ऐसे मौके पर होड़ में गलती की संभावना हो जाती है। सारे मीडिया में गहन आत्मावलोकन शुरू हो गया है और अब तो सवाल ये भी उठ रहा है कि अगर बुश जीते, लेकिन जनमत गोर के पास है तो क्या इलेक्टोरल प्रथा पर ही प्रश्नचिह्न नहीं लग जाता? और ये उस देश में जहां असंख्य परमाणु अस्त्र इंसान के एक छोटे से निर्णय से और अंगुली दबाते ही पृथ्वी नष्ट कर सकते है, वहां इतनी ढील-पोल?
भारत में चुनावों को लेकर इतना असंमजस कभी नहीं होता, जबकि वहां इससे कहीं ज्यादा पिछड़े मसले उभरते हैं। वहां राष्ट्रपति और गवर्नर के पास पालकीवाला, सोराबजी जैसे कई संविधान के पंडित सलाह देने के लिए होते हैं, लेकिन यहां तो कोई संविधानविद् नजर नहीं आ रहा, यहां तक कि फ्लोरिडा की पुनर्गणना में अपने कानून पर्यवेक्षक के रूप में दोनों पक्षों ने भूतपूर्व सेक्रेटरी ऑफ स्टेट वारेन क्रिस्टोफर (डेमोक्रेट) और जेम्स बाकर (रिपब्लिकन) को भेजा है क्योंकि और तो कोई है ही नहीं। समस्या का मूल यह है कि यह देश जब किसी घटना के बारे में विचारता है तब उसके आगे- पीछे, संभव-असंभव सब सोच लेता है, लेकिन चुनाव प्रक्रिया में ऐसा घटनाक्रम तो इन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा। इसलिए उसकी तैयारी भी नहीं है। और मजा देखिए। कल शाम 6 बजे गिनती रोक दी गई कि सुबह 9 बजे फिर चालू करेंगे। एक ओर तो उम्मीदवार बिना खाए, सोए महीनों तक प्रचार करते रहे और अब गणना के बीच में विश्राम, बड़ा अजीब लगता है यह सब। नतीजा चाहे जो कुछ भी रहे। दोनों पक्ष काफी संतुलन भरे वक्तव्य दे रहे हैं। पर ये चुनाव जवाबों के बजाय सवाल अधिक छोड़ जाएगा।