सिंधिया स्कूल के ‘प्रेरक और प्राण’ माधवराव

1 अक्टूबर 2001

सिंधिया स्कूल के 'प्रेरक और प्राण' माधवराव 21 और 22 अक्टूबर के दिन माधवराव सिंधिया के कैलेंडर में हर साल के लिए तय थे और पिछले कई साल से ये दिन होते थे ग्वालियर के किले पर स्थित सिंधिया स्कूल के वार्षिकोत्सव (फाउंडर्स डे) और अगले दिन ओल्ड बॉयज डे… और माधवराव सिंधिया का पूरा परिवार इसमें पूरे मन से न सिर्फ शरीक होता था, बल्कि उन्हें उसका हर साल इंतजार रहता था।

ग्वालियर में सिंधिया परिवार द्वारा स्थापित सिंधिया स्कूल ने 1997 में ही अपने 100 वर्ष पूरे किए हैं और पहले एक स्टूडेंट के रूप में और बाद में सिंधिया स्कूल के बोर्ड आफ गवर्नर्स के चेयरमैन के रूप में, महाराज माधवरावजी को सिंधिया स्कूल, उसकी प्रगति, उसके नाम और उससे निकले हर स्टूडेंट के लिए दिल में एक विशेष स्थान था। यहां तक अटकलें लगती थीं कि सिंधिया स्कूल के सर्वश्रेष्ठ हाउस की ट्रॉफी अमूमन हर साल जयाजी हाउस को इसलिए प्रदान की जाती थी कि वो ‘महाराज का हाउस था।’

सौभाग्य से मुझे भी सिंधिया स्कूल में उस ‘हाउस’ (यानी होस्टल) में रहने का अनुभव मिला, जिसमें वर्षों पूर्व माधवराव रहते थे- नाम था जयाजी हाउस… लेकिन एक मुश्किल थी, साल में लगभग 5-6 बार बगैर किसी सूचना के माधवरावजी जब भी अपने किसी खास मित्र नेता, पत्रकार आदि को लेकर ग्वालियर का किला और सिंधिया स्कूल दिखाने लाते थे, जयाजी हाउस जरूर लाते थे, इसलिए जयाजी हाउस में रहने वाले छात्र को साफ-सफाई और अनुशासन के प्रति विशेष चौकन्ना रहना पड़ता था, लेकिन इस सब के पीछे उनका जयाजी हाउस और पूरे सिंधिया स्कूल के लिए जो प्रेम था, वो देखते बनता था। ग्वालियर में कोई भी विशेष अतिथि हो, उसे माधवराव सिंधिया स्कूल तो लाएंगे ही।

उनका जीवन भी तो सिंधिया स्कूल के शीर्ष वाक्य में ही बीत गया ‘सा विद्या या विमुक्तया।’

ये बात शायद बहुत कम लोगों को पता है कि लोकसभा चुनाव के समय माधवरावजी सिंधिया स्कूल के कुछ ‘शिक्षकों’ से खास दरख्वास्त करके उनसे चुनाव के खर्चे का हिसाब रखन को कहते थे, उनका मानना था कि इस मायायुग में भी अगर वो किसी पर पैसे के सही हिसाब का भरोसा कर सकते थे, तो वे थे सिंधिया स्कूल के अध्यापक।

1982 से 1986 के मेरे सिंधिया स्कूल के कार्यकाल में मुझे कई बार माधवरावजी से मिलने और उनसे चर्चा का अवसर मिला और ‘फॉउंडर्स‘ डे के दो दिन तो माधवरावजी भी बिलकुल एक ओल्ड बॉय बन जाते थे। 22 अक्टूबर को सुबह क्रिकेट मैच में शरीक होना, उसके बाद सब ओल्ड बॉयज के साथ दोपहर को भोजन और 21 की शाम मुख्य अतिथि को पूरे स्कूल का दौरा खुद लगवाकर माधवराव मानो हर साल अपने अतीत के प्रतिबिंब को वर्तमान में झांक लेते थे और उनका जीवन भी तो सिंधिया स्कूल के शीर्ष वाक्य में ही बीत गया ‘सा विद्या या विमुक्तया।’

दिल्ली, बॉम्बे यहां तक कि न्यूयॉर्क में भी सिंधिया स्कूल के पुराने छात्रों से मुलाकात और उनसे घुलने-मिलने के लिए माधवरावजी के पास हमेशा समय रहता था। सिंधिया स्कूल की प्रगति के लिए उन्हें किसी से भी बात करने में सदैव आनंद आता था। मुझे तो हमेशा याद रहेगा कि सामान्यतः सिंधिया स्कूल में दाखिला फरवरी में हो जाता है, मुझे जून के महीने में ग्वालियर के चन्द्रमोहनजी नागौरी और मेरे नानाजी दामोदरदासजी झंवर की अर्जी पर खुद माधवरावजी ने सिंधिया स्कूल में एडमिशन की मंजूरी दी थी।

आने वाले 21 अक्टूबर की शाम ‘ऋषि गालव की तपस्थली’ पर बसे हुए ज्ञान तीर्थ को हर साल की तरह अपने प्रिय शिष्य माधव का इंतजार रहेगा, जिसने सिंधिया स्कूल को भारत के सबसे अच्छे पब्लिक स्कूल्स की श्रेणी में पहुंचा दिया था। पूरे देश ने एक होनहार नेता खो दिया, कांग्रेस ने उसका नेतृत्व खो दिया। ग्वालियर प्रांत तो अपना लायक बेटा खोकर आज अनाथ हो गया और सिंधिया स्कूल ने अपना सबसे जगमगाता शिष्य!! ग्वालियर के सिंधिया स्कूल और उसके सारे शिक्षक, छात्र और सारे विश्व में फैले पूर्व-शिष्य-समुदाय की ओर से महाराज माधवरावजी को शत्‌-शत्‌ नमन!!

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