द थर्टी सिक्स्थ चेम्बर ऑव द शॉओलिन

30 मार्च 1992

द थर्टी सिक्स्थ चेम्बर ऑव द शॉओलिनविदेशी ‘एक्शन‘ फिल्मों की श्रृंखला में ‘मार्शल आर्ट्‌स‘ फिल्मों का विशिष्ट स्थान है। कठोर जीवन, कड़ी मेहनत और एकाग्र चित्त से वर्षों अभ्यास कर अपने शरीर और मन पर पूर्ण नियंत्रण पाना और फिर निहत्थे शरीर के हर अंग को ही घातक हथियार का रूप दे देना- अधिकांश ‘मार्शल आर्ट्‌स‘ फिल्मों में यही बेहतरीन अथवा कमजोर ढंग से पेश किया जाता है। साधारण कुंग-फू, जूडो, कराटे आदि ‘मार्शल आर्ट्‌स‘ के कई प्रकार हैं।

शॉओलिन के गुरुकुल में कुंग-फू की शिक्षा पर आधारित है फिल्म ‘द थर्टी सिक्स्थ चेम्बर ऑव द शॉओलिन।‘ फिल्म में प्रदर्शित सामंतवादी चीन में मंचू साम्राज्य की प्रताड़ना और अत्याचार से पूरा समाज त्राहि-त्राहिकर रहा था। ऐसे में कुछ विद्यार्थी अपनी पाठशाला के शिक्षक के साथ मिलकर विद्रोह करने की योजना बनाते हैं। अत्यंत शक्तिशाली शासक अपने दमन चक्र से पूरे समूह को परिवार सहित मौत के घाट उतार देते हैं। बच जाता है सिर्फ एक युवक, जो मरणासन्न हालत में भी प्रबल आत्मशक्ति के सहारे पहुंच जाता है कुंग-फू के श्रेष्ठतम गुरुकुल शॉओलिन।

प्रारंभिक आनाकानी के बाद शॉओलिन के पीठाधिपति उसे स्वीकार कर लेते हैं। फिर शुरू होता है सिलसिला अत्यंत कठिन और कठोर शिक्षा का, जिसमें केवल मानव शरीर को ही आधार मानकर उसे वज्र-सा कठोर, बिजली-सा चपल, रबर-सा लोचदार और तीक्ष्ण जहर-सा प्रहारक बनाया जाता है।

फिर शुरू होता है सिलसिला अत्यंत कठिन और कठोर शिक्षा का

फिल्म की केंद्रीय कथा भी शॉओलिन विद्यालय के 35 चेम्बर (गृहों) पर ही है, जिसमें हर चेम्बर में अलग-अलग विधा में विद्यार्थी को पूर्णतः पारंगत कर दिया जाता है। कहीं पर पानी में तैर रहे लकड़ी के टुकड़ों पर पांव रखकर बिना किसी पुल से पानी लांघना है, तो कहीं पर खुले सिर से भारी-भरकम थैलों को अनवरत धक्का देना है।

निर्धारित समयावधि से बहुत कम समय में जब वह छात्र पाठ्‌यक्रम में पारंगत हो जाता है तो उसे वहां के किसी भी 35 गृहों में से एक का संचालक बनने के लिए आमंत्रित किया जाता है। परंतु उसका ध्येय तो शॉओलिन के ‘बंद वातावरण‘ के बाहर व्याप्त तानाशाही से लड़ना था। इस हेतु वह सामान्यजनों को कुंग-फू की शिक्षा देने हेतु एक नए छत्तीसवें चेम्बर को शुरू करने की मांग करता है। इस प्रकार की अनुशासनहीनता से उसे शॉओलिन से निष्कासित कर दिया जाता है। बाहर पहुंचकर किसी तरह वह अकेला साधारण नागरिकों को शिक्षित कर अत्याचारियों से बदला लेता है, वही फिल्म का अंत है। वैसे फिल्म का प्रमुख आकर्षण शॉओलिन विद्यापीठ के अलावा हीरो का निहत्थे कई लोगों से अकेले मुकाबला करने की ‘वास्तविक‘ क्षमता और एक साधारण, कमजोर शरीर का घातक शस्त्र में परिवर्तन है। और, अत्यंत फुर्ती से अंग-प्रत्यंग द्वारा हवा को चीरने का स्वर और उस पर मुंह से अलग आवाजें निकालना- कुल मिलाकर माहौल बढ़िया बन जाता है।

फिल्म – द थर्टी सिक्स्थ चेम्बर ऑफ द शॉओलिन

निर्माता – मोना फंग

पार्श्व संगीत – चेन युंग यू

निर्देशक – लीन चिया लियांग

कलाकार – लीन चिया हुई/लो लियाह/चियांग हान

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