“रहिमन पानी राखिए… वित्त जगत में ‘साख’ का अभाव”

11 अक्टूबर 2008

आने वाला कल : कुछ समय तक शेयर मार्केट में ये उतार-चढ़ाव का दौर और चल सकता है। वैसे शेयर बाजार धरातल या उसके करीब ही है, लेकिन अभी भी इंतजार है समस्या के मूल तक पहुँचकर उसका कारगर इलाज शुरू हो जाने का। उसके बाद की क्रिया की समय रेखा तो बताना बहुत मुश्किल है, लेकिन इलाज होगा कैंसर के इलाज की ही तरह कष्टप्रद और अत्यंत पीड़ादायी और इसके प्रभाव से शायद ही कोई अछूता रहेगा। अमेरिका में कम्पनियों द्वारा और अधिक ‘लेऑफस्‌‘ की पूरी संभावना है, बेरोजगारी की दर बढ़ने से रोजाना के जीवन पर दुष्कर प्रभाव होगा, खर्च और खरीदी कम होगी, क्रेडिट कार्ड, गाड़ियाँ, घर के लिए कर्ज मिलना मुश्किल और महँगा हो जाएगा।

हिन्दुस्तान में भी इसके ऐसे ही कुछ आसार होंगे, शायद अनुपात कम रहेगा, क्योंकि भारत में अभी भी उधार के बजाय नकद की व्यवस्था बरकरार है, लेकिन ऊँची तनख्वाहें, बड़े खर्च, महँगा घर और फ्लैट्स, इनमें अवश्य गिरावट दिखने वाली है। जो साधन संपन्न हैं, वह कुछ और इंतजार करेंगे। ईएमआई पर खरीदने वाले के लिए कर्ज लेना और फिर ऊँची ब्याज दर पर चुकाना दोनों ही महँगा होगा। शेयर मार्केट में भी तो मोटे नुकसान लगे हैं, आखिर बीएसई सेंसेक्स 9 महीने में 21000 से 10000 पर आ गया। कटु सत्य यही है कि निकट भविष्य दुष्कर है, जिसको धैर्य से ही पार करना होगा। सारी दुनिया ने अत्यधिक तरलता और ‘ईजी मनी‘ की बदौलत पिछले कई सालों में मौज-मस्ती भी भरपूर मनाई थी। तेजी की यह ‘ग्लोबल पार्टी‘ कभी तो समाप्त होनी ही थी, सो हो गई।

लेकिन… : दुनिया के इतिहास में आज तक हर विपदा के बाद सुनहरा कल फिर आया है। 1930 की मंदी के बाद भी अमेरिका और दुनिया पुनः अपने पैरों पर खड़ी हो गई। सिर्फ वक्त लगेगा। सूचना तंत्र के चलते सारी सरकारें और प्रशासन इससे निपटने के लिए तत्परता से लगे हुए हैं। पिछले चंद सप्ताहों में अमेरिकी प्रशासन ने जितने भी कदम उठाए, वह सामान्यतः कल्पनातीत है। जनता के विश्वास को बनाने के लिए सारी दुनिया की सरकारें बैंकों में जमा पूँजी की गारंटी कर रही है। ‘क्रेडिट क्राइसिस‘ से उबरने के लिए सभी ने ब्याज दर कम कर दी है और वित्तीय तरलता के सारे बंध खोल दिए हैं। एक महीने में अमेरिका में नए राष्ट्रपति का चुनाव है। वर्तमान रेटिंग्स् के अनुसार डेमोक्रेटिक पार्टी के बराक ओबामा आगे चल रहे हैं। 2009 में नए प्रशासन को पूरा अवसर रहेगा कि वह सभी देशों से मिलकर ऐसी नीतियाँ अपनाए जिससे समस्याओं से निपटा जा सके और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति को रोका जा सके।

भारत में भी कुछ महीने में आम चुनाव होंगे। पिछले महीनों की विकराल समस्या महँगाई से धीरे-धीरे निज़ात मिलने वाली है। तेल की कीमतें 147 डॉलर से घटकर 77 डॉलर (लगभग आधी) रह गई हैं। बाकी पदार्थों की माँग में भी कमी आने से सामान्य भाव अपने आप कम होंगे। मुख्य चुनौती रहेगी कि यह स्लो डाउन ‘आर्थिक मंदी’ में न तब्दील हो जाए, जिससे 1930 में अमेरिका और 1980 से जापान गुजर चुका है। इसके आसार तो कम हैं, और फिर भारत, चीन जैसे देशों में निर्यात के अतिरिक्त देश की घरेलू खपत बहुत विशाल है, जो कि आबादी के साथ बढ़ने ही वाली है।

वारेन बफेट का तो यही मानना है कि जब सब शेयर बाजार त्रस्त होकर त्राहि-त्राहि कर रहे हों, वही शेयर खरीदी का सबसे बढ़िया समय होता है। क्या वह समय आज है? अगले सप्ताह? अगले महीने? यह तो पता नहीं, लेकिन पाँच-दस साल बाद पीछे मुड़कर देखने पर शायद ऐसा ही लगेगा। यही नहीं, भारतवासियों के लिए पाँच साल बाद यह सप्ताह अमेरिका से परमाणु करार और नैनो गाड़ी के गुजरात आगमन के लिए ज्यादा याद किया जाएगा, लेकिन आज वह सब नेपथ्य में छिप गए हैं। हर्षद मेहता घोटाला, फिर डॉट कॉम; हर बार शेयर बाजार गिरता है, फिर कुछ सालों में कोई नया फुगावा उसे नई ऊँचाई पर ले जाता है। यह ‘बूम’ और ‘बस्ट’ तो मानो प्रकृति की तरह अवश्यंभावी है। इस ‘बस्ट’ के बाद अगला ‘बूम‘ कब और क्यों होगा, यह कोई नहीं बता सकता, लेकिन ‘बूम‘ होगा जरूर। हर ‘बस्ट’ न खत्म होने वाली अँधियारी रात लगती है और हर ‘बूम’ इस बार कुछ अलग है वाली आकर्षक दावत। दोनों का अंत शाश्वत है, लेकिन अग्नि परीक्षा होती है मंदी में धैर्य और तेजी में होश संभाले रखने की। वहीं तो हम चूक जाते हैं, इन्सान जो ठहरे…..

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