अस्त होना यूं अपराह्न में ‘आदित्य’ का

3 अक्टूबर 1995

अस्त होना यूं अपराह्न में 'आदित्य' का  मां, आज पांच नवंबर है। 14 तारीख को मेरा जन्म दिवस है। पता नहीं क्यों, इन दिनों मेरी विचारधारा में बहुत परिवर्तन हो गया है। आज तक तो मैं सिर्फ पढ़ाई, पढ़ाई और पढ़ाई के ही बारे में सोचता था। पर अब लगता है कि पढ़ाई तो सात महीने में खत्म हो जाएगी। इसके बाद मुझे काम में लगना है। अब मुझे लगता है कि मुझे जल्द से जल्द व्यापार क्षेत्र में उतरना चाहिए- और कुछ बहुत ही बड़ा काम करके दिखाना चाहिए- सचमुच बहुत बड़ा। अब मेरा लक्ष्य है व्यापार के क्षेत्र में बहुत प्रगति करने का। मैं घर लौटकर उद्योग-व्यापार में सचमुच कोई बड़ी उपलब्धि चाहता हूं।

मां-बेटे के बीच ये अंतरंग संवाद एक पत्र के अंश हैं, जो आदित्य विक्रम बिड़ला ने बोस्टन (अमेरिका) में केमिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई करते वक्त 1963 में अपने पिता श्री बसंतकुमार बिड़ला और मां श्रीमती सरलादेवी बिड़ला को लिखा था। यह महत्वाकांक्षा जो युवा आदित्य ने अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत में व्यक्त की थी, वही जैसे उनके जीवन का ध्रुव-वाक्य बन गई।

बिड़ला समूह के उद्योग-व्यवसाय

आदित्य विक्रम बिड़ला के निर्देशन में बिड़ला समूह के उद्योग-व्यवसाय की देश-विदेश में उत्तरोत्तर प्रगति और विकास तो अब जगजाहिर है- इस श्रद्धांजलि में न सिर्फ बिड़ला घराने वरन भारत के समूचे उद्योग जगत के इस दैदीप्यमान ‘विक्रमादित्य‘ के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को प्रकाशमान करना है।

बिड़ला परिवार के आदित्य विक्रम पहले ऐसे सदस्य थे, जो विदेश में जाकर उच्च अध्ययन हासिल कर आए। लौटने के बाद पिता बसंतकुमार बिड़ला के शब्दों में, ‘जब आदित्य 1964 जून-जुलाई में हिंदुस्तान लौटा, तो 6-7 महीने का प्रोग्राम हिसाब-किताब सिखाने का बनाया। साथ ही साथ हिंदुस्तान गैस कंपनी उसके नीचे कर दी गई और स्पिनिंग मिल का एक ‘लाइसेंस‘। उसे बताया, यह एक कागज मात्र है। तुम्हें दिलचस्पी हो तो यह काम कर लो। नहीं, तो इसे फाड़ दो। काम शुरू से अंत तक तुम करोगे। योजना बनाना, आदमी रखना, मशीनों का आर्डर देना- सभी तुम्हारी जिम्मेदारी है। गलती हो तो अपनी अक्ल से सुधारना। तुम अपना प्रयोग करो। असफल हो, तो फिर प्रयत्न करो, गलती सुधारो। इस तरह हुआ उद्योग-व्यवसाय के क्षेत्र में आदित्य विक्रम बिड़ला का पदार्पण- ‘ईस्टर्न स्पिनिंग‘ के नाम से कलकत्ता के पास लगा यह कारखाना आदित्य बिड़ला का पहला और ‘स्वयं‘ सृजन था।

ऐसा लगता है मानो भारतीय उद्योग के इस ‘सूर्य‘ को 51 वर्ष की अल्पायु में ही ‘खग्रास‘ लग गया

एक चर्चा, जो कई बार आदित्य बिड़ला समूह के प्रारंभिक दिनों में की जाती थी, वह यह थी कि आदित्य बिड़ला को अपने ‘दादोजी’ घनश्यामदासजी बिड़ला से बिड़ला समूह की ‘सर्वश्रेष्ठ’ इकाइयां, जैसे हिंडाल्को और ग्रेसिम विरासत में मिलीं। यह बात तो परिवार और समूह के निकटस्थ मानते हैं कि आदित्य विक्रम अपने ‘दादोजी‘ के लाड़ले थे, लेकिन इस चाहत में ममत्व से अधिक काबिलियत का प्रभाव था।

आदित्य बिड़ला समूह के दर्जनों उद्योग

बचपन से ही आदित्य में घनश्यामदासजी को वे सभी गुण नजर आने लगे थे, जो इस विशाल उद्योग समूह को चलाने-बढ़ाने में आवश्यक थे और आदित्य विक्रम भी ‘दादोजी‘ के विश्वास की कसौटी पर खरे उतरे, जब उन्होंने न सिर्फ ग्रेसिम और हिंडाल्को को बढ़ाया, बल्कि इंडियन रेयान, मैंगलोर केमिकल्स, इंडो गल्फ फर्टिलाइजर्स जैसे कई औद्योगिक ‘जायंट‘ अपने समूह में बढ़ा लिए। यही नहीं, दक्षिण पूर्व एशिया के देश जैसे थाईलैंड, इंडोनेशिया, फिलीपींस आदि में भी आदित्य बिड़ला समूह के दर्जनों उद्योग स्थापित हैं।

घनश्यामदासजी की 1983 में मृत्यु और बिड़ला परिवार में विभाजन के बाद इन वर्षों में तो ऐसा ही हो गया था, जैसे आदित्य बिड़ला समूह ही ‘बिड़ला‘ शब्द का पर्याय बन गया था। क्या थी ऐसी विशेषता आदित्य बिड़ला के संचालन में? आदित्य बिड़ला समूह के उद्योगों के संचालन में भी वही ‘पड़ता‘ प्रणाली नींव का पत्थर थी जो सदैव ही से बिड़ला समूह की पहचान रही है। उसके अलावा स्वयं आदित्य विक्रम ने कहा था, ‘कोई सामान्य व्यक्ति यह सोच सकता है कि प्रगति और विस्तार के लिए हम सभी तरह के उद्योगों में हाथ डाल रहे हैं। पर ऐसा कदापि नहीं है। हमारा समूह एक अत्यंत ही ‘केहोसिव‘ परिवार का अंग है और उन सभी क्षेत्रों में बढ़ना चाहते हैं, जिनमें हमें महारथ हासिल है। हमारे अधिकांश विस्तार कार्यक्रम ‘प्रोसेस इंडस्ट्री‘ में रहे हैं, जैसे रसायन, सीमेंट, खाद, कागज, रेशा, एल्युमिनियम आदि। और इन सबके ऊपर भी आदित्य विक्रम बिड़ला की पैनी नजर और वृहद दूरदर्शिता का समागम, जो हर उद्योग के कार्यकलापों में होने वाली बैठकों में नजर आती थी, जिसमें उनके समूह के मुख्य प्रबंधक भाग लेते थे।

आदित्य विक्रम बहुत ही संवेदनशील व्यक्ति

आदित्य विक्रम एक उद्योगपति ही नहीं, बहुत ही संवेदनशील व्यक्ति भी थे, जो संगीत और चित्रकारी में उनकी गहरी रुचि से जाहिर था। इतने व्यस्त होने के बावजूद रोजाना ‘बैडमिंटन‘ खेलने का शौक रखने वाले आदित्य विक्रम की बनाई हुई पेंटिंग्स की प्रदर्शनी भी 1990 में लगाई गई थी। अब, जो प्रश्न उद्योग व्यवसाय से जुड़े हर व्यक्ति के सामने है, वह यही है- ‘अब इन उद्योगों को कौन संभालेगा?‘ वैसे तो आदित्य विक्रम के पिता श्री बसंतकुमार बिड़ला 74 वर्ष की आयु में भी पूर्णतः सक्रिय हैं और उनके अधीनस्थ उद्योग (सेंचुरी समूह, केसोराम इंडस्ट्री) का संचालन अभी भी स्वयं ही करते हैं, व दूसरी ओर आदित्य विक्रम के एकमात्र पुत्र 27 वर्षीय कुमार मंगलम बिड़ला भी पिछले दो वर्षों से सक्रिय रूप से व्यापार-व्यवसाय के क्षेत्र में हैं, परंतु कुमार मंगलम तो उस ‘ग्रूमिंग‘ से वंचित ही रह जाएंगे, जो उन्हें अपने पिता के सान्निध्य में मिलती।

बिड़ला समूह के उद्योगों के बारे में यह चिर-परिचित है कि उनकी बुनियाद सदैव ‘ठोस‘ रहती है। कुमार मंगलम को उन सभी प्रबंधकों की टीम का पूरा सहयोग भी मिलेगा, जिन्हें उनके पिता के साथ वर्षों तक काम करने का अमूल्य अनुभव है। इंदौरवासियों को याद होगा, जब 1989 में कुमार मंगलम बिड़ला के इंदौर के श्री शंभुकुमार कासलीवाल की पुत्री नीरजा के साथ विवाह के उपलक्ष्य में हुए स्वागत समारोह में श्री बसंतकुमार बिड़ला और श्री आदित्य बि़ड़ला सपत्नीक खड़े होकर सभी का अभिवादन स्वीकार कर रहे थे। अपनी उद्योग पताका को आदित्य बिड़ला ने इस शीर्ष पर फहराया कि बचपन में खेल-खेल में अपने पिता बसंतकुमार बिड़ला को कहे गए वचन सत्य हो गए। ‘बाबू, बाबू! आप हार गए।‘ ऐसा लगता है मानो भारतीय उद्योग के इस ‘सूर्य‘ को 51 वर्ष की अल्पायु में ही ‘खग्रास‘ लग गया।

‘आदित्य’ के ‘विक्रम’ को हमारा नतमस्तक नमन!

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