सिनेमा हॉल में गहने एवं पैकेट में गंगाजल

8 जुलाई 1991

कठौती में गंगा

आइए, फिल्मों के कृत्रिम ग्लैमर और जेवरात की चकाचौंध से बहुत दूर किसी शाश्वत, अविरल पदार्थ की ओर चलते हैं, जो अनादि काल से हमारे बीच मौजूद है। हां, वर्तमान में ‘मार्केटिंग‘ के पंडितों की चर्चा में उसका जिक्र अवश्य उठ आता है। भारतीय जीवन में गंगा का स्थान महज एक नदी भर से कहीं ऊपर है। हमारी पीढ़ियों से चली आ रही आस्थाओं, निष्ठा एवं धर्मपरायणता का वह एक सजीव प्रतिबिंब है। जन्म से मरण तक हर महत्वपूर्ण मोड़ पर भारत के लाखों घरों में अत्यंत आस्था और विश्वास से संग्रहीत गंगाजल शुद्धि और मुक्ति के सनातन प्रतीक के रूप में ग्रहण किया जाता है।

जिस गंगाजल के बारे में प्रसिद्ध है कि स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने में उसके वेग को सह पाने की शक्ति भगवान शिव की जटाओं के अतिरिक्त किसी में नहीं थी, वही गंगाजल अब ‘फोइल पैकिंग‘ के पाउच में बंद कर सारे भारत में दुकानों पर उपलब्ध होने वाला है। गंगोत्री मिनरल्स नामक कंपनी के व्यवस्थापक वी.पी. गुप्ता और ए.पी. गुप्ता ने सारे भारत में ‘गंगाजल‘ की ‘खपत‘ को पूरा करने हेतु गंगा के उद्‌गम गंगोत्री में एक आधुनिक स्वचालित संयंत्र लगाया है। इसके द्वारा पूर्णतः शुद्ध-स्वच्छ गंगाजल 200 मि.मी. के पैकेट में बंद कर ‘गंगोत्री‘ नाम से बाजार में पांच रुपए में विक्रय के लिए पेश किया गया है। गुप्ता बंधुओं के अनुसार इस पुण्य कार्य हेतु लिए गए पांच रुपए गंगा-जल की कीमत नहीं, वरन ‘सेवा शुल्क‘ है। उनका यह भी कहना है कि वे यह कार्य सिर्फ जनहित के लिए कर रहे हैं और उससे प्राप्त संपूर्ण आमदनी पारमार्थिक कार्यों में ही लगाई जाएगी।

पैकेट बंद गंगाजल ‘मार्केटिंग‘ के मान से तो एक क्रांतिकारी विचार है। सहूलियत के मान से भी इससे सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले भारतीयों को सरलता से गंगाजल उपलब्ध हो जाएगा, परंतु सर्वाधिक प्रश्न तो आस्था और निष्ठा की कसौटी पर कसे जाएंगे। क्या हजारों मील की यात्रा करने के बाद गंगाजल स्नान और सेवन के पुण्य अब घर बैठे ही मिल जाएंगे? क्या पैकेट बंद गंगाजल भी वही श्रद्धा और आस्था जाग्रत करेगा? पुराने विचार वाले इस गंगाजल की शुद्धि का सत्यापन किससे मांगेंगे? और क्या गंगाजल जैसी व्यापक चीज को पैकेट बंद करने का अधिकार किसी एक संस्था को प्राप्त है? प्रश्न तो हजारों उठ सकते हैं, बस इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि आधुनिक परिवेश ने परिवर्तन को इतना गतिशील बना दिया है कि कल तक सिर्फ तीर्थस्थलों और श्लोकों तक सीमित नर्मदा आज नल तक पहुंच गई और गंगा पैकेट बंद होकर किराने की दुकान तक। आगे-आगे देखिए होता है क्या?

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