जीडी-जे.आर.डी.: इस ‘जहान’ में ऐसे ‘बिरले’ ही आते हैं!

29 जुलाई 1992

इसलिए जहां टाटा घराने में कई प्रबंधक तो कंपनी के पर्याय ही बन गए हैं (उदाहरणतः रूसी मोदी-टिस्को, दरबारी सेठ-टाटा केमिकल्स), वहीं बिड़ला समूह में कंपनियों के साथ उतना ही समय व्यतीत करने के बावजूद इंदू पारेख के साथ ग्रेसिम और आर.पी. पोद्दार के साथ सेंचुरी का नाम क्रमशः आदित्य व बी.के. बिड़ला से अधिक नहीं जुड़ पाया है। बिड़ला औद्योगिक समूह का सारा केंद्र काफी समय तक बिड़ला ब्रदर्स कंपनी रही, जबकि टाटा में यह स्थान टाटा सन्स को था। वैसे निजी तौर पर जी.डी. के परिवार में तीन पुत्र, तीन पुत्रियां, तीन भाई सहित ढेरों नाती-पोते रहे; वहीं जे.आर.डी. के पास रिश्तेदार कहने को सिर्फ पत्नी-बहन रहीं।

पचास वर्षों से भी अधिक समय तक श्री बिड़ला को जानने के बावजूद हमारी मुलाकात अत्यंत सीमित ही रही। हालांकि वे अत्यंत परंपरागत माहौल में पले-बढ़े थे, फिर भी जी.डी. के विचारों और विवेचना में गजब का पैनापन था। यह मेरा दुर्भाग्य रहा कि हम आपस में और अधिक साथ नहीं रह सके

धर्म के प्रति दोनों के विचारों में भी गहरा फर्क रहा। जहां जी.डी. सदैव पूजा-पाठ, तीर्थयात्रा में शरीक रहते थे, जे.आर.डी. को किसी भी तरह के ‘कर्मकांड‘ से जुड़ा धर्म शास्त्र ही नहीं आता, और उनके अनुसार सिर्फ अपना कर्तव्य वहन करते रहना ही धर्म है। जहां जी.डी. ने 32 वर्ष की उम्र में दूसरी पत्नी के देहावसान के बाद कभी भी महिला पक्ष की ओर ‘उस‘ दृष्टि से सोचा ही नहीं, वहीं जे.आर.डी. की आंखों में आज भी किसी ‘खूबसूरत’ चेहरे को देखकर चमक आ जाती है।

विषमताएं तो एक ढूंढें, हजार मिलेंगी। लेकिन जो निर्विवाद रूप से समानता रही कि दोनों ही भारत को प्रगतिशील, खुशहाल, संपन्न राष्ट्र देखना चाहते थे, दोनों ही के विचार विज्ञान, प्रौद्योगिकी और उद्योगों के प्रति सदैव जागरूक रहे, और दोनों ही के उद्योगों के माध्यम से देश और जनता को लाभ मिलता रहा। जी.डी. बिड़ला के निधन पर अपने शोक संदेश में जी.आर.डी. ने उन दोनों की जीवनगाथा में ‘संगम’ का अच्छा वर्णन कर दिया था। ‘पचास वर्षों से भी अधिक समय तक श्री बिड़ला को जानने के बावजूद हमारी मुलाकात अत्यंत सीमित ही रही। हालांकि वे अत्यंत परंपरागत माहौल में पले-बढ़े थे, फिर भी जी.डी. के विचारों और विवेचना में गजब का पैनापन था। यह मेरा दुर्भाग्य रहा कि हम आपस में और अधिक साथ नहीं रह सके।’

जिस उपन्यास का मैंने लेख के प्रारंभ में जिक्र किया था, उसी उपन्यास में जीवन-पर्यंत प्रतिद्वंद्वी रहे केन और एबल अंत में एक-दूसरे के समधी बन जाते हैं। टाटा-बिड़ला में अभी तक वैसी पारिवारिक रिश्तेदारी तो नहीं हुई है, लेकिन व्यवसाय के क्षेत्र में संभवतः पहली बार टाटा-बिड़ला ने कुछ वर्षों पहले हाथ मिलया है। पेप्सीफूड्‌स लिमिटेड (जिसमें टाटा समूह की वोल्टास कंपनी की 24 प्रतिशत हिस्सेदारी है) के शीतल पेय की बॉटलिंग का कार्य पूर्वी भारत के लिए वी.एक्स.एल. को दिया गया है, जो कि सुदर्शन बिड़ला समूह की कंपनी है।

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