निवेशक की जेब तक पहुंचने का रास्ता उसके दिल से होकर है!

13 सितम्बर 1992

बंबई से कंपनी के निकटस्थ सूत्रों से प्राप्त सबसे दिलचस्प जानकारी तो यह है कि पूजा भट्‌ट के ये सभी चित्र मॉरीशस में खींचे गए थे, जहां पर पूजा भट्‌ट सहित अन्य व्यक्तियों को लाने, ले जाने और रखने पर कंपनी ने 25 लाख रुपए खर्ज किए। खुद पूजा भट्ट ने कितने लिए यह तो पता नहीं पर इसके पांच लाख रुपए से कम क्या लिए होंगे? मॉरीशस में ‘वेस्ट कोस्ट‘ विज्ञापन हेतु उनके सैकड़ों चित्र लिए गए, जिसमें से कंपनी ने सिर्फ करीब आधा दर्जन का ही उपयोग किया। यहां यह उल्लेखनीय है कि पूजा की नामराशि पूजा बेदी द्वारा ऐसे ही एक चर्चित कंडोम विज्ञापन श्रृंखला के लिए सात लाख रुपए लेने की चर्चा है।

‘मैंने वेस्ट कोस्ट के सभी विज्ञापन तो नहीं देखे, इसलिए उनके कुल विज्ञापन खर्च का तो मैं अनुमान लगाने की स्थिति में नहीं हूं। लेकिन 10 करोड़ रुपए के ‘मध्यम-आकार‘ के पब्लिक इश्यू पर किया गया यह खर्च निश्चित ही सामान्यतः निर्धारित स्तरों से बहुत ज्यादा है’, ये विचार इंदौर की स्विफ्ट एडरवरटाइजिंग के राहुल जैन ने व्यक्त किए। जब कंपनी के प्रॉस्पेक्टस में विज्ञापन खर्च (इश्यू संबंधित) सिर्फ 20-25 लाख रुपए आंका गया है तो फिर करोड़ों रुपए का यह खर्च कैसे संभव हो सकता है? ‘क्यों नहीं, कंपनी द्वारा महज कंपनी और उसकी उत्पाद योजनाओं के विज्ञापन (कार्पोरेट एडवरटाइजिंग)पर किए जाने वाले खर्च पर कहीं कोई सीमा-बंधन नहीं है। ‘सेबी‘ द्वारा तो सिर्फ इश्यू से संबंधित विज्ञापनों के दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं, जिनका कंपनी ने अवश्य ध्यान रखा होगा’, ये शब्द वेस्ट कोस्ट के पब्लिक इश्यू के हामीदारों में से एक इंदौर की डी.एस. संचेती एंड कंपनी के श्री निर्मल संचेती के हैं। अब ‘कार्पोरेट एडरवरटाइजिंग‘ और ‘इश्यू एडरवरटाइजिंग‘ के बीच की लक्ष्मण-रेखा इतनी महीन है कि कंपनी उसे अपने हिसाब से परिभाषित कर सकती है और वेस्ट कोस्ट ने इसे अपने ढंग से परिभाषित किया भी है।

इस लेख के जरिए वेस्ट कोस्ट – पूजा भट्‌ट के मुद्दे पर प्रकाश डालना तो उद्देश्य था ही, परंतु मुख्य विषय तो इस अभियान से होने वाली एक नई शुरुआत की संभावना का है। इस नए चलन पर निर्मल संचेती कहते हैं ‘आज जबकि हर दिन औसतन एक नया पब्लिक इश्यू बाजार में आ रहा है, तब अपनी ओर निवेशक का ध्यान आकर्षित करने के लिए कंपनी को लीक से हटकर कुछ करना ही पड़ता है, अन्यथा पब्लिक इश्युओं की भरमार में यह अपनी विशिष्ट छवि नहीं बना पाएगा। वेस्ट कोस्ट की इस विज्ञापन श्रृंखला का सिर्फ एक ही लक्ष्य था- लोगों के मस्तिष्क में अपना स्थान बनाना, जिसमें वह लगभग सफल भी रहा। फिर उसके लिए उन्हें कोई भी मार्ग क्यों न अपनाना पड़ा हो? प्राप्त जानकारी के अनुसार इश्यू खुलने वाले दिन ही पूर्णतः ‘सब्स्क्राइब‘ हो गया था और अंततः इश्यू 5 से 7 गुना ‘ओवर सब्स्क्राइब‘ हो गया। कंपनी को और क्या चाहिए?

नई परंपरा की शुरुआत

परंतु क्या यह एक नई परंपरा की शुरुआत नहीं है, जब पब्लिक इश्यू ला रही कंपनियां अपने कार्यक्रमों को प्रचारित करने के बजाय किसी ‘चेहरे‘ को अधिक महत्व देने लगेंगी? इस पर राहुल जैन का सटीक-सा जवाब है ‘यह तो निवेशक और उसके मानस की परिपक्वता की पहचान है कि वह पूजा भट्‌ट के आकर्षण और वेस्ट कोस्ट के वित्तीय आंकड़ों में से किसे चुनता है। अगर निवेशक महज विज्ञापनों की चकाचौंध से कंपनी के पीछे दौड़ा चला जाए तो इसमें दोष कंपनी का नहीं, वरन्‌ निवेशक के अविकसित विवेक का है।’ तो फिर क्या साबुन, तेल, पंखे की तरह ‘पब्लिक इश्यू’ भी महज एक वस्तु हो गया है, जिसे चर्चित चेहरों के दम पर बेचा जाए? इस पर श्री जैन ने कहा, ‘वैसे तो विज्ञापन की दृष्टि से पब्लिक इश्यू भी एक वस्तु ही है। भारत में सबसे पहले रिलायंस के पब्लिक इश्यू को ‘खजाना’ और दीप केमिकल्स के इश्यू को ‘महाधन’ का नाम देकर उनकी छवि भी उसी सीढ़ी की एक और पायदान है। फिर, प्रश्न यह है कि प्रतिष्ठित कंपनियों और औद्योगिक घरानों के पास तो खुद की ‘इमेज‘ है, जिसे वे भुना सकते हैं। ऐसे में नई कंपनी और नए प्रवर्तकों के पास खुद की तो कोई अर्जित छवि है नहीं, इसलिए वे ‘छवि-युक्त’ चेहरों की मदद लेते हैं।’ तर्क पक्ष में भी है, और विपक्ष में भी, परंतु यह तथ्य निर्विवाद रूप से उभरकर आया है कि यह पब्लिक इश्यू विज्ञापनों में एक नई शुरुआत है। आज तो यह पूजा भट्‌ट ही है, कल अगर माधुरी दीक्षित, सुनील गावस्कर अथवा उस्ताद जाकिर हुसैन या कोई और आपको किसी इश्यू में पैसा लगाने का आमंत्रण दें, तो चौकिएगा नहीं क्योंकि ‘युद्ध, मोहब्बत और विज्ञापनों में सब जायज है।

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