एक स्कूल के नब्बे साल

1 नवम्बर 1987

एक स्कूल के नब्बे साल ऋषि गालब की तपस्थली पर,

बसे हुए अविराम,

पुण्य तीर्थ, हे ज्ञान तीर्थ,

हे विद्या के धाम,

तुमको विनत्‌ प्रणाम।’

विशाल सभागार में पियानो के साथ एक स्वर होकर प्राचार्य, शिक्षकगण और सभी छात्र पहले संस्कृत श्लोक, फिर अंगरेजी प्रार्थना और फिर हिंदी में वंदन गीत के साथ हर दिन के विद्योपार्जन की शुरुआत करते हैं। सभागार के बीचोंबीच दीवार पर विद्यालय का चिह्न-सूर्य और शेषनाग अंकित हैं। उसके ठीक नीचे लिखा है विद्यालय का ध्रुववाक्य ‘सा विद्या या विमुक्तये।’

मध्यप्रदेश ही नहीं, वरन्‌ समूचे भारत में विद्यालयीन शिक्षा के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में ग्वालियर के सिंधिया स्कूल का नाम अग्रगण्य है। पब्लिक स्कूल पद्धति पर आधारित लड़कों का यह विद्यालय 1 नवंबर 1987 को अपनी स्थापना की 90वीं जयती उपराष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा के मुख्य आतिथ्य में मना रहा है।

मध्यप्रदेश ही नहीं, वरन्‌ समूचे भारत में विद्यालयीन शिक्षा के सर्वश्रेष्ठ संस्थानों में ग्वालियर के सिंधिया स्कूल का नाम अग्रगण्य है

ग्वालियर के ऐतिहासिक दुर्ग पर लगभग 110 एकड़ के क्षेत्र में बसे इस विद्यालय की स्थापना के प्रेरक ग्वालियर राज्य के तत्कालीन शासक स्वर्गीय महाराजा माधवराव सिंधिया थे। सन्‌ 1897 में यह विद्यालय ‘सरदार स्कूल‘ के नाम से शुरू किया गया था, राजाओं, सरदारों ओर जागीरदारों के पुत्रों के लिए ताकि वे किशोरावस्था में ही अनुशासन और पाबंदी का जीवन व्यतीत करना सीख सकें। यह विद्यालय सिंधिया एज्युकेशन सोसायटी के तत्वावधान में शुरू किया गया था। उसी समिति द्वारा ग्वालियर शहर में ‘सिंधिया कन्या विद्यालय‘ नामक लड़कियों का भी एक आवासीय विद्यालय संचालित किया है।

सन्‌ 1933 में समिति ने यह निर्णय लिया कि विद्यालय को सार्वजनिक स्वरूप दिया जाए- तब इसका नाम सरदार स्कूल से बदलकर ‘सिंधिया स्कूल’ रखा गया। शहर में लगभग 300 फुट की ऊंचाई पर बसे ग्वालियर दुर्ग के ऐतिहासिक अवशेषों की देखरेख और मरम्मत के बाद उन्हें छात्रावास और विद्यालय परिसर का प्रारूप दिया गया। विद्यालय में पढ़ रहे देश-विदेश के लगभग 750 छात्र, समस्त शिक्षक और उनके परिवार और अन्य कर्मचारियों को मिलाकर सिंधिया स्कूल के लगभग 2 हजार लोगों का एक परिवार दुर्गपर आवास करता है।

सिंधिया स्कूल में तीसरी कक्षा से लेकर बारहवीं तक शिक्षा प्रदान की जाती है। विद्यालय में दाखिले के लिए एक परीक्षा होती है। सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एज्युकेशन, नई दिल्ली द्वारा निर्देशित पाठ्‌यक्रम का विद्यालय में पालन किया जाता है। पब्लिक स्कूल प्रणाली में किताबी शिक्षा के अलावा अन्य गतिविधियों में छात्र के संपूर्ण विकास पर बल दिया जाता है। सिंधिया स्कूल में छात्र कई खेल व क्रीड़ाएं जैसे तैराकी, घुड़सवारी, क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, टेनिस, स्क्वैश, जिमनास्टिक्स, गोल्फ, मुक्केबाजी, योग, एथलेटिक्स, टेबल टेनिस, बॉस्केटबॉल आदि खेलने के अवसर प्राप्त करता है।

लगभग 750 विद्यार्थियों का स्वाभाविक तौर पर वर्गीकरण करना आवश्यक है। इसलिए छात्रों को शिक्षा और आवास की दृष्टि से दो वर्गों में बांटा गया है। कक्षा तीसरी से छठी तक जूनियर वर्ग और कक्षा सातवीं से बारहवीं का समावेश सीनियर वर्ग में किया गया है। जूनियर वर्ग के छात्र तीन छात्रावासों में रहते हैं- जनकोजी, दत्ताजी व कनेरखेड़। उसी प्रकार सीनियर वर्ग के छात्रों को 9 छात्रावासों में बांटा गया है- जयाजी, रणोजी, महादजी, जीवाजी, शिवाजी, माधव, जयप्पा, ज्योतिबा व दौलत। सभी छात्रावासों के नाम सिंधिया राजवंश से संबंधित व्यक्तियों पर रखे गए हैं। सिंधिया स्कूल का ‘अस्ताचल’, खुला नाट्‌य मंच और वहां कर कम्प्यूटर सेंटर इसके विशिष्ट आकर्षण हैं।

भारतीय संस्कृति और विचार शैली का सिंधिया स्कूल स्थित ‘अस्ताचल‘ उत्कृष्ट प्रतिबिंब है। सुबह की सामूहिक प्रार्थना तो विद्यालय के परिसर में सभागृह में हो ही जाती है, परंतु शाम को खेलकूद और स्नान के पश्चात जब सूर्य पश्मिांचल की ओर अग्रसर रहता है, तब छात्र ‘अस्ताचल‘ नामक स्थान पर डूबते हुए सूर्य को बिदा देते हुए प्रार्थना, मनन व मौन रखते हैं। अत्यंत नैसर्गिक, इस स्थल पर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की एक आदमकद प्रतिमा भी बनी हुई है जो प्रत्येक छात्र को सत्य, शांति और कर्म करते हुए आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। सिंधिया स्कूल के अर्द्ध वृत्ताकार खुले नाट्‌य मंच के निर्माण में वहीं के छात्रों ने बहुत योगदान दिया था। प्रति वर्ष विद्यालय के वार्षिकोत्सव का आयोजन भी इसी मंच पर किया जाता है। पिछले कुछ वर्षों में कम्प्यूटर व उससे संबंधित शिक्षा का महत्व अत्यंत बढ़ गया है। उसे ध्यान में रखते हुए विद्यालय में पुराने छात्रों के सहयोग से कम्प्यूटर सेंटर का निर्माण करवाया गया है। सिंधिया स्कूल इस तरह का भारत में दूसरा विद्यालय था, जिसने कम्प्यूटर सेंटर की व्यवस्था शिक्षा हेतु की। इस सेंटर का उद्‌घाटन भारत के प्रधानमंत्री (तत्कालीन सांसद) राजीव गांधी ने किया था।

आवासीय विद्यालय में रहते हुए भी छात्र समाज की मुख्य धारा से कभी भी अपने आपको अलग न पाएं, इसलिए समाज सेवा व उससे जुड़े कई कार्य छात्र योगदान से चलाए जाते हैं। ग्वालियर के समीप एक ग्राम सोंसा को सिंधिया स्कूल ने लगभग 45 वर्ष पूर्व गोद लिया था। विद्यालय के छात्र वहां जाकर ग्रामीणों की विभिन्न प्रकार से मदद करते हैं। आज, विद्यालय का हर छात्र सोंसा का अंतरंग सदस्य-सा बन गया है। इसी प्रकार अन्य कार्यों जैसे सड़क निर्माण, मकान बनाना, आदि में भी छात्र भरपूर योगदान देते हैं।

हर विद्यालय अपने छात्रों की कीर्ति से ही गौरवान्वित होता है। सिंधिया स्कूल के ऐसे छात्रों की सूची बहुत लंबी है, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में बहुत उल्लेखनीय प्रगति कर विद्यालय परिवार का नाम रोशन किया है। केबिनेट मंत्री (श्री माधवराव सिंधिया, श्री नटवरसिंह), अनेक सांसद व विधायक, विशिष्ट सैन्य अधिकारी (ले. जनरल समी खान, ले. जनरल अशोक हांडू), प्रमुख उद्योगपति, कलाकार (जयंत कृपलानी, जलाल आगा, अमीन सयानी, संजय खन्ना) व संगीतज्ञ (आनंद शंकर, नितिन मुकेश) इसी विद्यालय के छात्र रह चुके हैं।

विद्यालय से संबंधित नीतियों का निर्धारण संचालक मंडल अर्थात बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के सदस्य करते हैं। इसके अध्यक्ष रेल राज्यमंत्री श्री माधवराव सिंधिया हैं और अन्य सदस्य विद्यालय के ही पुराने छात्र और अन्य गणमान्य शिक्षाविद हैं। परंतु दैनिक कार्यकलापों में हर विद्यालय पर उसके प्राचार्य की व्यक्तित्व की अमिट छाप रहती है। सिंधिया स्कूल इस संदर्भ में अत्यंत भाग्यशाली रहा है कि उसे एफ.जी. पियर्स, जे.एल. धर, श्री साही, पद्मश्री श्री शुक्ला और वर्तमान में डॉ. एस.डी. सिंह जैसे प्रखर शिक्षकों के रूप में प्राचार्य मिले, जिन्होंने विद्यालय की प्रगति के लिए निरंतर अथक प्रयास किए हैं। वर्तमान प्राचार्य डॉ. सुरेंद्र दयाल सिंह 1978 में सिंधिया स्कूल के प्राचार्य नियुक्त हुए। इससे पहले वे बहुचर्चित दून स्कूल, देहरादून में 25 वर्षों तक अंग्रेजी के विभागाध्यक्ष थे। 62 वर्षीय डॉ. सिंह अखिल भारतीय पब्लिक समिति के भी अध्यक्ष हैं।

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