रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून
कितने गहरे हैं ये घाव?
सिर्फ एक कंपनी वर्ल्डकॉम ने विश्व का ‘सबसे बड़े दिवाला’ करते हुए 107 बिलियन डॉलर से दिवाला घोषित किया, जो कि भारत के सालाना जीडीपी का 25 प्रतिशत है। ये सारे पैसे डूबे नहीं हैं, लेकिन उनके लेनदारों के लिए अब बहुत लंबा सफर है। ये तो सिर्फ एक ही नाम है, पूरी फेहरिस्त तो सुरसा की तरह बढ़ती ही जा रही है। सबसे गहरी घात लगी है अमेरिका की जनता के शेयर्स में लगी जमा पूंजी पर। अमेरिका की लगभग 55 प्रतिशत आबादी शेयर मार्केट में प्रत्यक्ष या म्यूच्युअल फंड के जरिये निवेश करती है, क्योंकि दीर्घ अवधि के लिए पूंजी निवेश का ये सर्वोत्तम साधन रहा है।
यही नहीं, भारत के प्रोविडेंट फंड के समक्ष यहां के 401-के रिटायरमेंट फंड का खरबों डॉलर भी स्टॉक मार्केट में ही लगा हुआ है। इन सारी पेंशन योजनाओं की पूंजी औनी-पौनी रह गई है और अब ये दोबारा कब बढ़ेगी, कोई नहीं जानता। यही नहीं, अमेरिका के स्टॉक मार्केट में तो सारे विश्व का व्यक्तिगत और संस्थागत निवेश होता है, क्योंकि ये सबसे सुरक्षित माना जाता है। अब उस पर भी कुछ प्रश्न चिह्न हैं, उसी के रहते यूरो करंसी भी डॉलर के कंधे से कंधा मिला रही है। ओसामा ने तो अमेरिका की जान और माल के ढांचे को ही ठेस पहुंचाई थी, डो के इस गिरते धारावाहिक ने तो व्यवस्था की बुनियाद को ही झकझोर दिया है।