ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई

10 फ़रवरी 1992

ब्रिज ऑन द रिवर क्वाईअंग्रेजी फिल्मों के विख्यात निर्देशकों में डेविड लीन का अलग ही स्थान है। किसी एक पात्र के बहुआयामी चरित्र को पर्दे पर उभारने की कला में वे बेजोड़ थे। इसीलिए उनकी कई फिल्में जैसे ‘ग्रेट एक्स्पेक्टेशन्स‘, ‘डॉ. जिवागो’, ‘लॉरेन्स ऑफ अरेबिया‘ और ‘पैसेज टू इंडिया’ फिल्म इतिहास की बहुमूल्य धरोहर हैं। किन्तु जानकारों का मानना है कि डेविड लीन की सर्वश्रेष्ठ कृति थी फिल्म ‘द ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई।‘ वर्ष 1957 के अकादमी पुरस्कारों में इस फिल्म ने धूम मचा दी। सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ फिल्म एवं सर्वश्रेष्ठ कलाकार (अलेक गिनीस) के तीनों प्रतिष्ठित ‘ऑस्कर’ सम्मान इसी फिल्म को प्राप्त हुए थे।

फिल्म के कथानक का केन्द्र है एक युद्धबंदी ब्रिटिश सैनिक अधिकारी निकलसन (अलेक गिनीस), जो कि बंदी होने के बावजूद ठीक उसी तरह से बर्ताव करता है जैसा कि ब्रिटिश सेना के एक जिम्मेदार अफसर से अपेक्षित होता है। जापानी सेना के अधीनस्थ एक युद्धबंदी कैम्प बर्मा के अत्यन्त घने जंगलों में स्थित है, जहां तपती धूप, बेमौसम बारिश और संक्रामक रोगों का ही साम्राज्य है। अत्यन्त विषम परिस्थितियों में रह रहे ‘कैम्प 16‘ में ब्रिटिश अमेरिकी युद्ध बंदियों द्वारा क्वाई नदी पर एक रेल-पुल का निर्माण किया जाना था, जिससे कि रंगून को बैंकॉक तक जोड़ने वाला रेल मार्ग पूरा हो सके। इस कार्य को निष्पादित करने का जिम्मा दिया जाता है जापानी कैम्प कमांडर कर्नल साइटो को। किन्तु कर्नल साइटो का सामना होता है निकलसन से, जो जिनेवा संधि के अनुसार बंदी अफसरों द्वारा शारीरिक श्रम पर पाबंदी का कानून दोहराता है।

युद्ध तो किसी न किसी दिन समाप्त हो जाएगा, परन्तु वह पुल सदा के लिए सैनिकों द्वारा बंदीकाल में निर्मित एक बेजोड़ मिसाल बन जाएगा

युद्ध के ‘तथाकथित‘ नियमों को ताक पर रखते हुए कर्नल साइटो निकलसन की आत्मशक्ति तोड़ने के लिए उसे कठोरतम शारीरिक व मानसिक यंत्रणा देता है। एक ‘अप-राइट’ ब्रिटिश अफसर की अविस्मरणीय भूमिका अदा करते हुए निकलसन टस से मस नहीं होता। अंत में पुल की तैयारी की तारीख को नजदीक आता देखकर कर्नल साइटो को निकलसन के आत्मबल के सामने घुटने टेक कर लगभग यह प्रार्थना करनी पड़ती है कि वह किसी भी तरह उस पुल को निर्धारित समयावधि में पूरा करवाने में मदद करे।

यहीं पर उस आदर्श ब्रिटिश अफसर के चरित्र का दूसरा आयाम सामने आता है, जब वह युद्ध बंदी होने के बावजूद खुद अपने सैनिकों के साथ दिन-रात मेहनत कर उस पुल को पूरा करवाने का प्रयास करता है। इस मुहिम में वे सभी जापानी सैनिकों के कंधे से कंधा मिलाकर काम करते हैं। इसके पीछे निकलसन की एक अद्वितीय भावना झलकती है कि युद्ध तो किसी न किसी दिन समाप्त हो जाएगा, परन्तु वह पुल सदा के लिए सैनिकों द्वारा बंदीकाल में निर्मित एक बेजोड़ मिसाल बन जाएगा। एक ओर जहां पुल के निर्माण का कार्य निश्चित तारीख तक समाप्ति की ओर अग्रसर था, वहीं दूसरी ओर ब्रिटिश अधिकारी उसके सामरिक महत्व को मद्देनजर रखते हुए उसे ध्वस्त करने हेतु एक दस्ता भेजते हैं।

क्या निकलसन का पुल को एक मिसाल बनाने का सपना सच होगा? क्या ब्रिटिश सेना के हाईकमान का उद्देश्य उसी के एक अफसर के लक्ष्य से टकराव पैदा कर देगा? इन प्रश्नों का उत्तर तो इस फिल्म में ही मिलेगा, जो युद्ध बंदियों के जीवन की एक अनूठी कहानी है और जिसने एक आदर्श सैनिक अधिकारी की परिभाषा को चिरकालीन व्याख्या दी है। इस फिल्म के रिलीज के समय सैनिकों द्वारा बजाई गई सीटी दुनिया भर की गलियों में गूंजी थी।

फिल्म : द ब्रिज ऑन द रिवर क्वाई

समय : 2 घंटा 30 मिनट

संपादक : पीटर टेलर

पार्श्व संगीत : माल्कम अर्नोल्ड

लेखक : पियरे बुले

कलाकार – अलेक गिनीस/विलियम होल्डन/जैक हॉकिन्स/स्टीव काल्वर्ट

निर्माता : सैन स्पीगल

निर्देशक : डेविड लीन

निर्माण संस्थान : कोलंबिया पिक्चर्स

निर्माण वर्ष : 1957

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