हर्षद मेहता : बी.एस.ई. के दलालों में सरताज
वर्ष 1991-92 के लिए 26 करोड़ का एडवांस इन्कम टैक्स जमा करवाने वाले हर्षद मेहता का आखिर इतिहास क्या है? इतनी कम समयावधि में यह व्यक्ति शीर्ष तक कैसे पहुंचा, यह सवाल सभी के मन में कौंध रहा है? दिनांक 10 फरवरी की सुबह राष्ट्र के प्रमुख वित्तीय अखबारों में आधे पृष्ठ का एक ध्यानाकर्षक विज्ञापन प्रकाशित हुआ था। विज्ञापन का शीर्षक था, ‘हर्षद मेहता झूठ बोलता है।’ हर्षद मेहता की ही कंपनी ग्रोमोर रिसर्च एंड एसेट्स मैनेजमेंट लि. द्वारा जारी इस विज्ञापन में विगत कुछ महीनों से चर्चित शेयर दलाल, हर्षद मेहता के कार्यकलापों का विस्तृत बयान दिया गया। इसी के साथ अब तक सिर्फ ‘लीडिंग बुल‘ या ‘बिग बुल‘ के नाम से पहचाने जाने वाले व्यक्ति से सभी परिचित हो गए। और वह व्यक्ति है- हर्षद मेहता। शेयर बाजार के प्रति बढ़ते आकर्षण और इसमें छुपी द्रुतगामी कमाई ने असंख्य लोगों को इस ओर आकृष्ट किया है। इस बढ़ती हुई रुचि का सबसे अधिक फायदा स्टॉक एक्सचेंज के सदस्य, शेयर दलालों को मिला।
इसकी सीधा-सा उदाहरण यह है कि आज एक मोटे अनुमान से सिर्फ बंबई स्टॉक एक्सचेंज में प्रतिदिन औसतन 500 करोड़ रुपए का कामकाज होता है। एक प्रतिशत की दलाली के हिसाब से रोजाना सिर्फ बीएसई के दलाल 5 करोड़ रुपए की कमाई कर लेते हैं। परंतु सभी दलालों की दिलचस्पी महज दलाली से नहीं होती। कुछेक ऐसे भी हैं, जो दूसरों का नाम भर लेकर वास्तव में खुद ही के लिए व्यवसाय करने लगते हैं। विगत वर्ष में तेजी में आया एक ऐसा नाम उभरा था 29 वर्षीय निमेष शाह का, जिसने सेंचुरी और हेक्स्ट के शेयरों की करोड़ों की खरीद की थी और उसका नाम भारत के सर्वोच्च व्यक्तिगत आयकरदाता के रूप में प्रसिद्ध हो गया था।
दलालों में सरताज…
गत वर्ष के प्रमुख तेजड़िए अगर निमेष शाह थे, तो इस साल वह निस्संदेह हर्षद मेहता हैं। इनकी नजरें जा टिकीं एसीसी और अपोलो टायर के शेयरों पर और फिर जो राष्ट्रव्यापी खरीद शुरू हुई कि 12 दिसंबर 91 से 2 जनवरी 92 तक की सेटलमेंट अवधि में एसीसी के भाव 2955 से 3300 और अपोलो टायर के भाव 111 से 174 तक पहुंच गए। यह लेख लिखे जाने के दिन एसीसी 4110 और अपोलो टायर 212 के शीर्ष पर पहुंच चुका है और अभी भी तेजी सभी प्रतिबंधों के बावजूद अविरल जारी है। तेज भाव वृद्धि को देखते हुए हर स्टॉक एक्सचेंज में दलालों ने जमकर एसीसी-अपोलो टायरों को ‘माथे मार दिया’। (शार्ट सेल किया-बिना डिलीवरी का माल बेचना इस आशा से कि भाव घटने पर खरीद कर लेंगे)। परंतु उन दलालों को शायद यह ज्ञात नहीं था कि यह तेजड़िया वाकई ‘तेज’ है। 3 जनवरी को ‘पटावत‘ (सेटलमेंट) के दिन हर्षद मेहता ने जब दोनों शेयरों की डिलीवरी मांगी, तो सभी स्तंभित रह गए। सभी को आशा थी कि भारी खरीदी का भुगतान न कर पाने की स्थिति में हर्षद मेहता सौदों का ‘बदला‘ देकर उन्हें अगले सेटलमेंट पर ‘केरी-ओवर‘ कर देगा। परंतु हुआ इसका ठीक विपरीत। हर्षद मेहता ने दलालों और बीएसई अधिकारियों के ‘सट्टात्मक खरीद‘ के आरोप को गलत सिद्ध करते हुए अपनी पूरी खरीद का एक चेक से भुगतान कर एसीसी और अपोलो टायर के लाखों शेयरों की डिलीवरी मांग ली। इस पर दोनों ही शेयरों में बेचवाल दलालों को ‘ऊंधा बदला’ या ‘बेकवर्डेशन चार्ज‘ जमा करना पड़ा, जिसकी नौबत स्टॉक एक्सचेंज में बहुत कम आती है।
‘सट्टे‘ के आरोप के अलावा मेहता पर यह भी आरोप लगाया गया कि एक ओर तो उन्होंने लाखों शेयरों की डिलीवरी मांगी, दूसरी ओर ‘शॉर्ट सेल‘ वाले दलालों को ‘ऊंधा बदला‘ भरने के लिए रुपए भी उन्होंने ने ही दिए। इसके अलावा एसीसी में ग्रोमोर की ‘होल्डिंग‘ 5.4 प्रतिशत और अपोलो टायर में 5 प्र.श. के लगभग हो गई, जिससे इन कंपनियों के टेक ओवर की आशंका व्यक्त की जाने लगी है। इन्हीं विवादों का स्पष्टीकरण करने के लिए ग्रोमोर ने 10 जनवरी के अपने विज्ञापन में लिखा कि ‘हर्षद मेहता और ग्रोमोर की एसीसी और अपोलो टायर में रुचि सिर्फ आकर्षक वित्तीय निवेश हेतु है, न कि कंपनी हथियाने के लिए। ग्रोमोर के सभी निवेश गहन अध्ययन और विश्लेषण पर आधारित रहते हैं और 90 प्र.श. खरीद का डिलीवरी लेकर भुगतान किया जाता है। ग्रोमोर की एसीसी पर नजर अगस्त 89 में 300 के भाव से और अपोलो टायर पर सितंबर 89 में 62 के भाव से है। ग्रोमोर का अगर कंपनी टेक ओवर का इरादा हो, तो वह संबंधित मैनेजमेंट की पूर्ण जानकारी में रहता है, जैसा कि मजदा इंडस्ट्री और मजदा पैकेजिंग के मामले में हुआ है। इन दोनों कंपनियों का ग्रोमोर ने अधिग्रहण कर लिया है।