अमेरिका की साख पर आंच
1941 के बाद पहली बार साख निर्धारण संस्था स्टैंडर्ड एंड पूअर्स (एसएंडपी) ने अमेरिका के ‘दीर्घकालीन‘ साख को एएए से एए+ कर दिया है।
क्या होती है क्रेडिट (साख) रेटिंग : आर्थिक विश्व में व्यक्ति, संस्था और राष्ट्र सभी का आकलन किया जाता है, जिसके आधार पर उनके ‘आर्थिक सुदृढ़ता‘ और दीर्घ और लघु अवधि के कर्ज चुकाने की क्षमता का अंदाजा लगाया जाता है। पश्चिमी देशों में स्टैंडर्ड एंड पूअर्स, मूडीज, और फिच रेटिंग- तीन प्रमुख साख निर्धारण संस्थाएँ हैं। ये तीनों ही गैर सरकारी कंपनियां हैं।
अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग : 1941 से 5 अगस्त 2011 तक देश के रूप में अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग हमेशा एएए (सर्वोच्च) रही है। दुनिया में जर्मनी, इंग्लैंड, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा सहित कुछ और राष्ट्र ही एएए साख रखते हैं। अमेरिका के कर्ज वृद्धि को लेकर चल रही बहस के तहत साख संस्थाओं ने बार-बार चेतावनी दी थी कि अगर अमेरिका ने अपने कर्ज को कम करने के कठोर कदम नहीं उठाए तो अमेरिका की साख पर गलत प्रभाव जरूर पड़ेगा।
मूडीज संस्था ने अभी तो अमेरिका को लेकर अपना आकलन ‘एएए‘ रखा है, लेकिन उनकी नजर कुछ नरम है। बीते सप्ताह अमेरिका सहित दुनिया में स्टॉक मार्केट में काफी गिरावट रही। उसके बाद शुक्रवार शाम एसएंडपी ने ऐतिहासिक घोषणा कर इतिहास में पहली बार अमेरिका की रेटिंग को एक पायदान नीचे उतार दिया।
क्या मतलब है इसका? : सीधे शब्दों में आपके पास का 24 कैरेट सोना अगर किसी दिन 22 कैरेट ही करार दिया जाए तो क्या होगा। देश की आर्थिक रेटिंग के आधार पर ही उसे दूसरे राष्ट्र कर्ज देते हैं। चीन ने अमेरिका को 1 ट्रिलियन डॉलर से अधिक कर्ज दिया है। साख की पायदान कम होते ही चीन ने अमेरिका को चेतावनी संदेश भेजा है कि उसे अपने खर्च को कम करना होगा और जितनी चादर हो उतने ही पैर पसारने होंगे।
उल्लेखनीय है कि ये साख कुछ दिन और हफ्तों की उथल-पुथल से नहीं बिगड़ी, बल्कि वर्षों से चल रहे खर्चों, इराक और अफगानिस्तान में पानी की तरह बहाया अरबों-खरबों और 14 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज भी इसकी वजह है। कई बड़ी कंपनियों के नियमों में लिखा होता है कि वे एएए से कम रेटिंग में पैसा नहीं लगा सकतीं। ये सब कंपनियाँ अब अमेरिका को दीर्घकालीन कर्ज नहीं दे सकतीं।
और अब आगे? : एसएंडपी ने पायदान को नीचे करते ही ये भी कहा है कि अगर अब भी अमेरिका नहीं सुधरा तो साख और भी नीचे हो सकती है। क्या अमेरिका और दुनिया दोबारा आर्थिक मंदी में डूब जाएँगे? अभी ऐसा नहीं लगता, लेकिन आर्थिक हालत जल्दी नहीं सुधरी तो ऐसा हो भी सकता है। अभी तो अमेरिका की बड़ी कंपनियां काफी मुनाफा कमा रही हैं लेकिन बेरोजगारी कम नहीं हो पा रही है।
जापान हो, एप्पल कंपनी हो या अमिताभ बच्चन, राष्ट्र, संस्था या व्यक्ति सभी अपनी खोई हुई साख को दोबारा हासिल कर सकते हैं बशर्ते वो कमर कस लें, सच्चाई का सामना करें, आमदनी के अनुसार खर्चा करें और नई प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार रहें।
जैसे 1945 के पर्ल हार्बर आक्रमण के बाद 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर अटैक ने अमेरिका को हिला दिया था, ठीक उसी तरह 1941 के बाद 2011 में इस गिरी हुई साख ने अमेरिका को वित्तीय तौर पर हिला दिया है। क्या कोई इससे सीखेगा, वक्त ही बताएगा।
कुछ दूसरे पहलू : वैसे तो यह तीनों साख संस्थाएं भी प्रायवेट कंपनियां है और दरों की गिरावट के समय इन संस्थाओं की काफी निंदा हुई थी। एसएंडपी कंपनी मैकग्रा हिल कंपनी की शाखा है और इसके अध्यक्ष बिट्स पिलानी के पूर्व छात्र भारतीय मूल के देवेन शर्मा हैं।