“रहिमन पानी राखिए… वित्त जगत में ‘साख’ का अभाव”

11 अक्टूबर 2008

"रहिमन पानी राखिए... वित्त जगत में 'साख' का अभाव"मेरिका सहित सारी दुनिया के शेयर बाजारों में निरंतर गिरावट, पूरी अर्थव्यवस्था में हर संस्था और व्यक्ति द्वारा दूसरे की ‘साख‘ पर घोर संदेह, शताब्दियों पुराने बैंकों का चंद दिनों में पतन, इसके बाद- अब और क्या??

21वीं शताब्दी में अमेरिका के लिए 9/11 का दिन अभी तक एक ऐसा मील का पत्थर था, जिसने पूरे रास्ते का निर्धारण किया। लेकिन इस साल 9/11 से 10/11 तक के इस माह ने ऐसा इतिहास रच दिया, जो पूरी दुनिया को हमेशा याद दिलाता रहेगा कि ‘रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून….

बीता मास : 9/11 की बरसी को गुजरे अभी महीना भी पूरा नहीं हुआ है, पर लग रहा है मानो बरसों बीत गए। हर शुक्रवार और सप्ताहांत पर एक नई वित्त समस्या सिर उठाए खड़े रहती है, जो सभी को ध्वस्त करने जैसी लगती है। पहले लेहमैन, मेरिल, एआईजी का हादसा हुआ फिर 700 बिलियन डॉलर के बेल आउट बिल और उसकी राजनीतिक रस्साकशी को अंतिम रामबाण दवाई बताया गया।

भारी मतभेद के बावजूद बिल पास हुए, लेकिन सारे बाजार पर उसका असर रहा। गरम तवे पर पानी की चंद बूँदों सा। वारेन बफेट ने गोल्डमैन और जीई में भारी निवेश घोषित किया, उसका प्रभाव भी टिका नहीं। सरकार ने बैंकों में जमा पूँजी की सुरक्षा सीमा बढ़ा दी और 2.0 प्रतिशत की न्यूनतम दर से भी घटाकर ब्याज दर 1.5 प्रतिशत कर दी, लेकिन ये आर्थिक सुनामी ऐसे थमती नहीं लगती। जॉर्ज बुश और वित्त मंत्री पाउलसन तो प्रायः रोज ही टीवी पर आकर जनता को संबल देने का भरसक प्रयास कर रहे हैं, लेकिन कोई असर नहीं।

21वीं शताब्दी में दुनिया ने ग्लोबलाइजेशन (वैश्वीकरण) से बढ़ती हुई प्रगति और व्यापार का सिर्फ ‘सुंदरम्‌’ पक्ष देखा था, अब उसी का ‘सत्यम्‌’ पक्ष भी देखना होगा

बीता सप्ताह : इस सप्ताह ने तो मानो ऐसा डर पैदा कर दिया कि मानो इस रात की कोई सुबह नहीं। डाउ जोन्स सूचकांक के 112 वर्षीय इतिहास में इन 5 दिनों में ये सर्वाधिक 18 प्रतिशत गिर गया। गुरुवार को सिर्फ आखिरी एक घंटे के कारोबार में डाउ 679 अंक गिरा। शुक्रवार को पुनः डाउ के इतिहास में पहली बार एक ही दिन में इंडेक्स ने 1000 अंकों का ‘ज्वार-भाटा‘ दिखा दिया। सुबह खुलते ही बाजार 697 अंकों तक गिरा और डाउ 8000 के भी नीचे गिर गया। दिनभर बाजार 500-600 अंक नीचे रहा, आखिरी एक घंटे में बाजार 322 अंकों तक चढ़ा और आखिरी कुछ पलों में फिर गिरकर अंत में 128 अंक नीचे 8451 पर बंद हुआ। सिर्फ एक सप्ताह ने जैसे पूरी दुनिया के बाजारों और सरकारों को हिला दिया है और दिग्गजों-विशेषज्ञों की समझ के परे है कि ये कहाँ थमेगा? विडम्बना है कि ठीक एक साल पहले 9 अक्टूबर 2007 को डाउ ने 14164 अंक का कीर्तिमान बनाया था। डाउ सूचकांक एक वर्ष में 40 प्रतिशत से अधिक गिर चुका है। ये ही हाल एस एंड पी 500 और नेस्देक का भी है।

अब मूल मजारा क्या है? : वैसे तो समस्या इतनी विकराल और एक दूसरे में गुत्थम-गुत्था है कि संक्षिप्त में इसका विवेचन असंभव है, लेकिन आज आर्थिक और मॉर्टगेज, सब प्राइम समस्या से भी बढ़कर चुनौती ‘साख’ की है, यानी ‘क्रेडिट क्राइसिस‘। साख अथवा क्रेडिट अथवा विश्वास को पूँजी की तरलता से सौ गुना साकार संबल तो दिया जा सकता है, लेकिन उसका मूलाधार निर्गुण, निराकार है।

एक बैंक या संस्था दूसरे बैंक या संस्था को कर्ज देने और उसके साथ कोई भी लेन-देन करने में डर रही है। क्या पता दूसरे बैंक के पास इतनी पूँजी है भी कि नहीं या ‘कल हो न हो‘। विगत में लेहमैन और एआईजी और कई बैंकों ने भी बार-बार उद्घोषणा की थी कि सब एकदम ठोस है, उनके पास अथाह वित्तीय जमा पूँजी है, लेकिन उन्हें ध्वस्त होने में ताश के पत्तों के महल से ज्यादा वक्त नहीं लगा।

स्वाभाविक है, जब उन जैसे महारथियों का कोई भरोसा नहीं, तो फिर किसी और का कैसे? उनकी ऐसी दयनीय हालत की बुनियाद थे मकानों को दिए गए बेतहाशा कर्ज और उस खोखली नींव के ऊपर खड़े अरबों-खरबों के वित्तीय सौदे, ऊँची इमारतें। जब तक ‘क्रेडिट क्राइसिस‘ की पूरी जकड़न का वित्तीय और सरकारी मालिश से इलाज नहीं होता, दुनियाभर के स्टॉक मार्केट को स्थायी राहत नहीं मिलेगी। 21वीं शताब्दी में दुनिया ने ग्लोबलाइजेशन (वैश्वीकरण) से बढ़ती हुई प्रगति और व्यापार का सिर्फ ‘सुंदरम्‌‘ पक्ष देखा था, अब उसी का ‘सत्यम्‌‘ पक्ष भी देखना होगा कि दुनिया के एक भाग की परेशानी से दूसरा अछूता नहीं रह सकता और फिर इस सर्वव्याप्त गरल के कड़वे घूँट को ‘शिवम्‌‘ की तरह सारी दुनिया को पीना पड़ेगा। सारे प्रमुख देशों के वित्तमंत्री इस समय वाशिंगटन में इसी चर्चा के लिए मिल रहे हैं, सारी दुनिया की आँखें उन पर टिकी हैं कि कुछ ऐसे सामूहिक निर्णय लिए जाएँ, जो सभी को मान्य हों और जिससे इस ‘क्रेडिट क्राइसिस‘ से निपटा जा सके। प्रबल आशा है कि कुछ साहसिक निर्णय लिए जाएँगे, जिनका प्रभाव विश्वव्यापी होगा।

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