भारतीय नक्षत्रों का धरती पर समागम
अमेरिका में वर्तमान तकनीकी प्रगति में भारतीयों की अहम भूमिका रही है। इसका प्रभाव और प्रभुत्व देखने के लिए 2000 में टीआईई का वार्षिक अधिवेशन बहुत उपयुक्त स्थान था। 5 मई को आकाश में ग्रहों और सूर्य के एक रेखा में आने की विलक्षण घटना के मानो एक ही दिन बाद धरती पर पुनरावृत्ति हो गई। अगर एक समय एक ही छत के नीचे सिकामोर के संस्थापक डॉ. गुरुराज देशपांडे, हेलथों के सहसंस्थापक पवन निगम, प्रख्यात वेंचर कैपिटलिस्ट और सन माइक्रोसिस्टम्स के सहसंस्थापक विनोद खोसला, इंटेल के विनोद धाम, मुकेश चत्तर, कंवल रेखी, राज वट्टीकुट्टी, प्रकाश भालेराव, एक्सोडस के संस्थापक बी.वी. जगदीश और के.बी. चंद्रशेखर, भारतीय अरबपति/करोड़पति (बिलिएनर/मिलिएनर) दिग्गजों की सूची तो इतनी लंबी है, जैसे पूरी सिलिकॉन वैली ही एक सभागार में समा गई थी। अवसर था सिलिकॉन वैली में 1994 से कार्यरत टीआईई (द इंडस इंटरप्रीन्यूर्स) का सातवां वार्षिक कार्यक्रम टीआईई- कॉन 2000, जो सेन जोस (जिसे ऐसे लिखा गया था) में 6 और 7 मई को आयोजित किया गया था।
इस साल कॉन्फ्रेंस में कल्पनातीत 1800 से अधिक लोगों ने भाग लिया (रजिस्ट्रेशन 3 सप्ताह पहले ही बंद हो गए थे) और भाग लेने वालों में सभी लोग थे। अपने ‘आइडिया‘ या सपने को साकार करने के जोश और उत्साह से भरे युवा इंजीनियर ‘इंटरप्रीन्यूर्स‘ अपनी-अपनी ‘इंटरनेट स्टार्ट अप‘ का ‘बिजनेस प्लान’ लेकर उन्हीं में अगले सबीर भाटिया के.बी. चंद्रशेखर की तलाश में थे। पूरा माहौल ऐसा लग रहा था जैसे, अमेरिका में सिलिकॉन वैली हिन्दुस्तानियों की। ‘परिंदा भी पर नहीं मार सकता।‘
खचाखच भरे सभागार में कार्यक्रम का प्रारंभ नेटस्केप और हेल्टोन के संस्थापक जिम क्लॉर्क के उद्बोधन से हुआ। जिम क्लॉर्क ने अपने अनुभवों से नए ‘इंटरप्रीन्यूर्स’ को अत्यंत संजीदगी से आत्मसात कराया और उसी के बाद था अमेरिका में सबसे अमीर भारतीय डॉ. गुरुराज देशपांडे का भाषण, जिन्होंने अत्यंत ओजस्वी और जोशीले भाषण में कहा कि एक नई कंपनी को बनाकर बड़ा करने के रोजाना के दुख-सुख में आनंद पाने वाले ही इस यात्रा के सही हकदार हैं। सिर्फ ‘आईपीओ‘ और कंपनी को बेचकर पैसा बनाने के ख्वाब से चालू की गई कंपनी बहुत आगे नहीं जाती।
इसी अवसर पर कंवल रेखी ने भारत सरकार द्वारा वेंचर कैपिटल इन्वेस्टमेंट के संबंध में टीआईई के सभी सुझाव मानने पर संतोष व्यक्त किया। इस दो दिवसीय कार्यक्रम में दो विषयों पर सर्वाधिक जोर था। सफल लोगों द्वारा नई कंपनियों के अपने अनुभवों से सुझाव ‘गुरु-शिष्य परंपरा‘ और आपस में नेटवर्किंग ‘भाईचारा।’ और नेटवर्किंग तो देखते ही बनती थी, अंदर तीन सभागारों में दिनभर अलग विषयों पर विशिष्ट वक्ताओं के पेनल, जिनमें प्रो. अमर भिड़े, डॉ. सी.के. प्रहलाद जैसे दिग्गज मिलाकर 65 स्पीकर शामिल थे- अपने विचार प्रकट कर रहे थे, वहीं चारों ओर गलियारे में लोग एक-दूसरे से मिलने और अपने डॉट कॉम ‘सपने‘ को ‘सच‘ करने की तलाश में लगे थे। वहां ऐसा लगा जैसे हाल ही की नस्दक में भारी गिरावट के बाद भी कोई 200-250 नई डॉट कॉम स्टार्टअप के प्रणेता वहां हाजिर थे।
कौन पहुंचा महाकुंभ में :
ऐसा नहीं था कि सिर्फ सिलिकॉन वैली के लोग वहां मौजूद थे, न सिर्फ अमेरिका के हर कोने, वरन भारत से भी कई लोग इस ‘महाकुंभ‘ में डुबकी लगाने आए थे, जिनमें उद्योगपति डॉ. बी.के. मोदी, आईटीसी चेयरमैन के. चुघ, थॉपर आदि प्रमुख थे। पंजाब सरकार के प्रमुख सचिव समेत कई अन्य प्रशासक वहां आए थे। यही नहीं, इंदौर मूल के भी करीब 10 लोग उस कार्यक्रम में थे, जो कि इंदौर की प्रगतिशीलता का अच्छा परिचायक है। टीआईई की ख्याति इतनी बढ़ गई है कि हाल ही में वॉल स्ट्रीट जर्नल और फॉरच्यून पत्रिका, दोनों ने सिलिकॉन वैली में भारतीयों की सफलता और टीआईर्ई के बारे में खासा कवरेज दिया। टीआईई की अब भारत में 5, अमेरिका में 9 और कनाडा में 1 प्रांतीय शाखाएं कार्यरत हैं और ‘नेटवर्किंग‘ के जरिये आगे बढ़ने के लिए हर सुझाव का लाभ उठाते युवा उद्यमी, माहौल बड़ा जोरदार रहता है।
यहां पर मैं कंवल रेखी का विशेष उल्लेख करना चाहूंगा, जिनके चेहरे और हावभाव को देखकर ही लगता है कि अपने अनुभव से वे हर नए उद्यमी और अपनी मातृभूमि भारत की भरसक मदद करना चाहते हैं और ‘इकोनॉमिक इंटरप्रीन्यूर्स‘ के बाद ‘सोशल इंटरप्रीन्यूर्स‘ की भूमिका बखूबी निभा रहे हैं। शायद उद्यमियों में नारायण मूर्ति और अजीम प्रेमजी और प्रशंसकों में चंद्रबाबू नायडू वहां और होते, तो समूचे भारतीय आईटी समुदाय की सनद पूरी हो जाती। टाइकॉन का सब लाभ उठा सकें, इसके लिए टीआईई ने अपनी वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू.ओआरजी पर इन गतिविधियों के साइबरकास्ट की व्यवस्था भी की है।