एक करोड़ हिन्दुस्तानी 100 करोड़ लोगों की तकदीर बदल सकते हैं – मुकेश अंबानी
आने वाले 20 सालों में भारत का सकल राष्ट्रीय उत्पादन 500 मिलियन डॉलर से दोगुना बढ़ जाएगा। अगले 10 सालों में अगर 1 करोड़ भारतीय 15 डॉलर घंटे के हिसाब से 2000 घंटे साल के काम करेंगे, तो इससे देश का नक्शा ही बदल जाएगा। मुझे पूरा विश्वास है कि इक्कीसवीं शताब्दी ज्ञान, शक्ति और भारत की ही है।”
यह विचार थे रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी के, जो उन्होंने शनिवार को न्यूयॉर्क में टाई के वार्षिक सम्मेलन में दोपहर भोजन के समय मुख्य अतिथि के रूप में व्यक्त किए। सम्मेलन में भारतीय और अमेरिकी मूल के कई व्यावसायिक और प्रोफेसनल्स शरीक थे। अपने एक घंटे के ओजस्वी भाषण और उसके बाद प्रश्नोत्तर में मुकेश अंबानी ने उनके छोटे भाई अनिल अंबानी से तथा कथित ‘मतभेद’ और उससे रिलायंस समूह के भविष्य पर होने वाले संभावित असर के बारे में कोई बात नहीं की।
धीरूभाई अंबानी क्या सोचते थे …
रिलायंस के शुरू से लेकर वर्तमान और भविष्य पर प्रकाश डालते हुए मुकेश अंबानी ने कई बार अपने पिता और रिलायंस के संस्थापक स्वर्गीय धीरूभाई अंबानी को याद किया। उन्होंने कहा कि धीरूभाई का यही मानना था कि जो हिन्दुस्तान के लिए अच्छा है, वही रिलायंस समूह के लिए भी अच्छा है। अपने आपको एमएबीएफ (मैट्रिक एपियर्ड बट फेल्ड) कहलाने वाले धीरूभाई ने उन्हें सदा ही विशाल सपने देखना और फिर उन्हें साकार करने की रिलायंस समूह को प्रेरणा देता है। 22 वर्षों के सफर में रिलायंस समूह की वार्षिक बिक्री 22 बिलियन डॉलर हो गई है, लेकिन हर तीन-चार सालों में समूह का आकार दोगुना हो जाने की परम्परा आने वाले सालों में भी बरकरार रहेगी। प्रसार और सूचना प्रौद्योगिकी के संगम से रिलायंस इन्फोकॉम भारत में एक नई क्रांति ले आएगा। भारतीयों के दिमाग की क्षमता ही भारत का सबसे बड़ा धन है।
धर्म-अध्यात्म और व्यवसाय के संबंधों पर एक प्रश्न के जवाब में मुकेश अंबानी ने कहा कि भारत में सरस्वती और लक्ष्मी दोनों ही को पूजनीय माना जाता है, यही भारतीय परम्परा में ज्ञान और वैभव; दोनों ही पूज्य है। भारत में रोजगार बढ़ाने को भारत की प्राथमिक जरूरत बताते हुए श्री अंबानी ने कहा कि भारत से बाहर बसे 2 करोड़ प्रवासी भारतीय भी स्वदेश की प्रगति में महती भूमिका निभा सकते हैं। जिस प्रकार पिछली शताब्दी ने गांधी और नेहरू ने विदेशों से लौटकर देश में राजनीतिक स्वतंत्रता की लहर को जगाया, उसी प्रकार वर्तमान युग में प्रवासी भारतीय हिंदुस्तान में आर्थिक स्वतंत्रता की लहर के सूत्रधार बन सकते हैं। सम्मेलन की शुरुआत विश्व प्रसिद्ध वित्तीय संस्थान गोल्डमैन सैक्स के चेयरमैन हैंक पॉलसन के भाषण से हुई। अमेरिकी अर्थव्यवस्था को ‘सुदृढ़’ करार देते हुए भी उन्होंने अमेरिकी डॉलर के और अधिक अवमूल्यन से इंकार नहीं किया। आने वाले सालों में चीन और भारत विश्व के दो महत्वपूर्ण आर्थिक शक्तियों के रूप में जरूर उभरकर आएंगे।