चंद घंटों के टी.वी. प्रसारण में ही 600 करोड़ के वारे -न्यारे
जनवरी माह का आखिरी रविवार (30 जनवरी) अमेरिका में खेल और विज्ञापन की दुनिया दोनों ही में हर वर्ष काफी महत्व रखता है। इस दिन एन.एफ.एल. (नेशनल फुटबॉल लीग) स्पर्धा का फाइनल यानी सुपर बोल खेला जाता है। पाठकों की जानकारी के लिए यह पेले और मेराडोना वाला फुटबॉल नहीं है। अमेरिका में इसे सॉकर कहते हैं।
विज्ञापनदाता के लिए मुंहमांगा वरदान
अमेरिकी फुटबॉल को भारत के पाठक रकबी जैसा समझ सकते हैं। पर इस लेख को लिखने का मकसद है इस खेल के साथ जुड़ा व्यापार…। इसमें अमेरिका की एक प्रसारण कंपनी को मात्र कुछ घंटों में 600 करोड़ रु. की आमदनी हो गई। इस साल सुपर बोल का 34वां फाइनल रविवार (30 जनवरी) को शाम 6 बजे अटलांटा में खेला गया। ज्ञातव्य है कि अटलांटा 1996 के ओलिंपिक शहर और कोक की जन्मभूमि है। सुपर बोल अमेरिका में देखा जाने वाला पूरे वर्ष का सर्वाधिक लोकप्रिय कार्यक्रम है। अनुमान है कि इस वर्ष इसे लगभग 12 करोड़ अमेरिकी दर्शकों ने देखा, जो पूरी अमेरिकी आबादी के 50 प्र.श. के आसपास है। एक ही समय में इतनी अधिक टेलीविजन दर्शक संख्या तो किसी भी विज्ञापनदाता के लिए मुंहमांगा वरदान है। लेकिन इसके लिए उसे चुकानी होती है, मुंहमांगी कीमत। सुपर बोल के टी.वी. प्रसारण के सर्वाधिक अधिकार सिर्फ ए.बी.सी. (अमेरिकन ब्रॉडकास्टिंग कार्पोरेशन) को मिले थे। ए.बी.सी., डिज्नी का ही एक भाग है। इस वर्ष ए.बी.सी. ने 30 सेकंड के विज्ञापन के औसतन 22 लाख डॉलर (करीब 10 करोड़ रुपए) की कीमत वसूल की। यानी एक सेकंड के 73,000 डॉलर (करीब 30 लाख रुपए)। लेकिन इस गगनचुंबी कीमत के बावजूद सुपर बोल के दौरान टी.वी. विज्ञापनों की लाइन लग गई। प्राप्त जानकारी के अनुसार 30 से अधिक कंपनियों ने सुपर बोल के दौरान विज्ञापन के ‘स्पॉट‘ बुक किए, जिनका कुल मिलाकर ए.बी.सी. को चंद घंटों के प्रसारण में 1350 लाख डॉलर (करीब 600 करोड़ रुपए) की आमदनी हो गई।
साल में सर्वाधिक विज्ञापन
लेकिन इस साल के विज्ञापनों में सर्वाधिक विज्ञापन हैं डॉट कॉम इंटरनेट कंपनियों के, जो कि 17 से अधिक हैं। इनमें से कुछ ने तो लगभग 30 लाख डॉलर में 30 सेकंड के स्पॉट खरीदे। कम्प्यूटर डॉट कॉम, नेटप्लेंस डॉट कॉम, ब्रिटेनिका डॉट कॉम, एपिडेमिक डॉट कॉम, पेट्स (पालतू जानवर) डॉट कॉम… सूची सिर्फ डॉट कॉम के नामों से भरी रही। फाइनल सेंट लुई रैम्स और टेनेसी टाइटन टीमों के बीच खेला गया, जिसमें सेंट लुई रैम्स चैंपियन बनी। सुपर बोल हर साल अमेरिका के अलग शहर में आयोजित होता है। इनमें से दो कम्प्यूटर कंपनियों की कहानी तो बहुत जोरदार है। कम्प्यूटर डॉट कॉम एक नई-नई कंपनी है, जिसे अभी तक सिर्फ 58 लाख डॉलर की ‘फंडिंग‘ मिली है। इसमें से 30 लाख डॉलर (यानी पूरी पूंजी का 60 प्र.श.) इसने सुपर बोल के दौरान टी.वी. विज्ञापनों का स्पॉट खरीदने में लगा दिया। विज्ञापन बनाने की कीमत अलग। कम्प्यूटर डॉट कॉम सामान्य जनता को कम्प्यूटरों के बारे में जानकारी देने की एक वेबसाइट है। दूसरी वेबसाइट लाइफ मांडूडर्स कॉम ई-मेल मार्केटिंग के बारे में वेबसाइट है। इनकी समस्या यह थी कि विज्ञापन का स्पॉट बुक कराने के बाद जब इन्होंने विज्ञापन बनाने वाली एजेंसी को ढूंढा और उसे काम दिया तो एजेंसी ने काम समय पर पूरा करने में असमर्थता जताई। परिणाम… इस कंपनी ने खुद एक छोटे-से बोर्ड पर लिखा, ‘यह सुपर बोल का सबसे घटिया विज्ञापन है।‘ और उसी को उसने इतने महंगे विज्ञापन स्पॉट में दिखाया।
कुछ सवाल :
पिछले वर्ष सिर्फ तीन डॉट कॉम विज्ञापनदाता थे, जो इस वर्ष बढ़कर 17 हो गए। सुपर बोल के दौरान इतने कम समय में क्या कोई कंपनी दर्शकों पर अपना स्थायी प्रभाव छोड़ पाएगी? इतने महंगे विज्ञापन देखकर पेप्सी या मॅकडॉनल्ड जैसे स्थापित ब्रांड तो इतनी बड़ी टी.वी. दर्शक संख्या में अपना नाम पुनः दिला सकते हैं, पर एक अंजान वेबसाइट के जन्म की घोषणा करने का क्या यह सबसे अच्छा और सबसे महंगा तरीका है? भेड़चाल में इसका जवाब कोई नहीं दे सकता। लेकिन पिछले साल की तीन डॉट कॉम में से दो ने इस बार फिर विज्ञापन दिया। कहीं जन्म की उद्घोषणा के साथ-साथ विज्ञापन का पैसा चुकाते हुए कंपनी का मरण तो नहीं हो जाएगा? पर अमेरिका में कोई ऐसा नहीं सोचता। विज्ञापन और ब्रांड के इस गंगासागर देश में सुपर बोल विज्ञापन का सचमुच महाकुंभ है, जिसमें डुबकी लगाकर हर विज्ञापनदाता मोक्ष की कामना करता है। किसे ‘मुक्ति’ मिलेगी यह तो समय और कम्प्यूटर माउस का डबल क्लिक ही बताएगा।