इट्स अ मैड मैड मैड मैड वर्ल्ड
आदम-हव्वा के जमाने से आज तक मानवता का पूरा स्वरूप ही बदल गया है। सभ्यता पनपी है। और न जाने क्या क्या । परंतु, तब और अब में जो भी सबसे क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं, उनके मूल में अधिकांशतः सिर्फ दो अक्षर का एक छोटा-सा शब्द है ‘पैसा।’ इसे नाम चाहे आप समृद्धि का दें, संपदा-संपत्ति का, धन या सिर्फ पैसा। प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से इसी की चाह ने मानव को बहुत उठाया व गिराया है।
इसी अनन्त पिपासा और तृष्णा को अत्यन्त विनोदप्रिय और व्यंग्यात्मक रूप में पेश किया गया है फिल्म ‘इट्स अ मैड मैड मैड मैड वर्ल्ड‘ में। इस हास्य फिल्म की एक विशेषता यह भी है कि तत्कालीन अमेरिकी सिनेमा के सभी ‘दिग्गज‘ हास्य कलाकार इसमें एक साथ मौजूद हैं। संक्षिप्त में फिल्म की कथा बहुत ही सीधी और सरल है। ‘हाई-वे‘ पर एक खतरनाक मोड़ पार करते हुए एक गाड़ी गहरी खाई में गिर जाती है। उस गाड़ी की सवारियों की हालत का अता-पता लगाने चार अन्य गाड़ियों के चालक नीचे उतरते हैं। वहीं दुर्घटनाग्रस्त गाड़ी का मरणासन्न चालक उन्हें एक उद्यान में गड़े खजाने का अधूरा पता देकर मर जाता है।
बस, अब पूरी फिल्म उस खजाने की खोज का ही बहुत मजेदार और रोचक वृत्तांत है। हल्के-फुल्के तौर पर फिल्म देखें तो पेट में मारे हंसी के बल पड़ने लगते हैं, किन्तु थोड़ा गौर करें तो फिल्म में हर दृश्य में इस बात को बखूबी पेश किया गया है कि पैसे के पागलपन में मानव अपनी मानवता को कितनी जल्दी तिलांजलि दे देता है। खजाने को ढूंढना तो दूर, उसके मिलने पर प्रस्तावित बंटवारे और उस तक पहुंचने के साधनों को लेकर ही आपस में फूट पड़ जाती है। एक ओर तो गाड़ी चालक अकेले पूरा पैसा पाने के लिए अपने जिगरी दोस्त एवं रिश्तेदारों का भी साथ छोड़ देता है, वहीं जरूरत पड़ने पर वह अनजान लोगों से भी घनिष्ठ मित्रता कायम करने का ढोंग रचता है। सच ही कहा गया है ‘माया महा ठगिनी, हम जानी।‘
एक ओर तो साइकल, मोटर, प्लेन, यहां तक कि पैदल काफिला गंतव्य की ओर बढ़ रहा था, वहीं दूसरी ओर पुलिस का पूरा लवाजमा उनमें से हर एक की प्रगति पर पूरी नजर रखे हुए था। पुलिस को भी उसी खजाने की तलाश थी। मारपीट, छलकपट, तोड़फोड़ आदि का पूरा सिलसिला खत्म होने के बाद अंत वही निकलता है कि सब एक साथ गंतव्य उद्यान में पहुँच जाते हैं। अपने आप को ‘तीसमार खाँ‘ और दूसरों को ‘गोबर गणेश’ समझने की वृत्ति में कोई खजाने के सुराग को नहीं पहचान पाता, जबकि वह सबके सामने साफ-स्पष्ट नजर आ रहा था। भारी दौड़-धूप के बाद जब अंततः तीन लाख पचास हजार डॉलर का खजाना मिलता भी है, तो इन सब की सारी भागदौड़ को विफल करते हुए पुलिस बड़े इत्मीनान से आकर खजाना जब्त कर लेती है और वे सब हाथ पर हाथ धरे खड़े रह जाते हैं। परंतु धन -लोलुपता से पुलिस कहाँ अछूती है। पुलिस चीफ सारा पैसा हड़पकर ले जाने की फिराक में रहता है। फिर सभी उसके पीछे लग जाते हैं। अंत में तो हर एक की जान पर बन आती है। मोह का परिणाम तो शाश्वत तौर पर कटु ही होता रहा है। फिल्म का अंत भी उसी तर्ज पर है। बिना परिश्रम किए सरलता से पैसा प्राप्त करने की चाह का क्या नतीजा होता है- इस में वही दोहराया गया है। ‘खजाने की खोज‘ विषय पर एक और बेहतरीन फिल्म ‘मेकन्नास गोल्ड‘ भी बनी है। परंतु उस फिल्म में संदेश हिंसा से ओतप्रत है, मैड मैड वर्ल्ड में जोर हास्य पर है।
फिल्म : इट्स अ मैड मैड मैड मैड वर्ल्ड
अवधि : 2 घंटे 30 मिनट
निर्माता-निर्देशक : स्टेनली क्रेमर
पार्श्व संगीत : एर्नेस्ट गोल्ड
पटकथा : विलियम व तानिया कोज
कलाकार : स्पेन्सर ट्रेसी/मिल्टन वर्ली/सिड सीजर/इथल मर्मन
प्रदर्शन वर्ष : 1963