क्रेमर वर्सेस क्रेमर

19 जून 1991

क्रेमर वर्सेस क्रेमर क्या व्यक्ति को अपने व्यावसायिक जीवन हेतु अपने पारिवारिक जीवन की बलि देने का हक है! क्या पिता, पति, पुत्र से जुड़े संबंधों के अलावा एक स्त्री का स्वयं का कोई परिचय या पहचान नहीं है? क्या एक बच्चे के पालन-पोषण में माता और पिता के योगदान का तुलनात्मक आकलन संभव है?

यह वे प्रश्न हैं, जो बार-बार प्रस्तुत होते हैं। इन्हीं को लेकर 1971 में अंग्रेजी फिल्म बनी थी ‘क्रेमर वर्सेस क्रेमर।‘ प्रदर्शन के कुछ ही दिनों में समीक्षकों ने मानवीय संबंधों को टटोलती इस फिल्म को सार्वकालिक ‘क्लासिक‘ फिल्म करार दिया था। उस वर्ष के एकेडमी पुरस्कारों ने इस विचार पर सत्यापन की मुहर लगा दी जब सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (डस्टिन हॉफमैन) एवं सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (रॉबर्ट बेन्टन) के तीनों महत्वपूर्ण ऑस्कर अवार्ड से इस फिल्म को सम्मानित किया गया। पटकथा का प्रस्तुतीकरण लाजवाब है। दफ्तर में चपल गति से प्रगति की दौड़धूप में पति इतना खो जाता है कि उसका परिवार लगभग गौण हो जाता है। घर उसके लिए महज सोने-खाने का एक मुकाम रह जाता है। ऐसा नहीं है कि वह अपनी पत्नी और पुत्र से प्यार नहीं करता। शायद वह यह नहीं समझ पाता कि परिवार को उसके पैसे, शोहरत, तरक्की से ज्यादा उसकी जरूरत है।

शायद वह यह नहीं समझ पाता कि परिवार को उसके पैसे, शोहरत, तरक्की से ज्यादा उसकी जरूरत है

जिस दिन पति अपनी मेहनत से अर्जित सफलता की खुशखबरी अपनी पत्नी को सुनाने घर पहुंचता है, उसके जवाब में पत्नी अपनी पहचान की खोज में घर छोड़ने का फैसला सुनाती है। इस विच्छेद का गहरा आघात पहुंचता है दस वर्षीय पुत्र बिली पर, जिसके जीवन में मां जोयना क्रेमरही सब कुछ थी। फिल्म का पूर्वार्द्ध इसी कथानक पर केंद्रित है कि एक-दूसरे से अपरिचित पिता-पुत्र किस प्रकार एक दूसरे के करीब आते हैं। धीरे-धीरे दोनों में बेइंतहा प्यार हो जाता है। ऐसा लगने लगता है कि जीवन में खुशियों की बहार फिर लौट आई है, तभी एक की मां और दूसरे की पत्नी भी लौट आती है और अदालत में अपने पुत्र के संरक्षण के अधिकार के लिए मुकदमा दायर कर देती है।

फिल्म का उत्तरार्द्ध अदालत की बहस में गुजरता है। संवाद और संवेदना प्रधान इस फिल्म में पति-पत्नी की भूमिका में डस्टिन हॉफमैन और मैरील स्ट्रीप ने चारित्रिक अभिनय में एक नया अध्याय जोड़ा है। इस फिल्म से थोड़ा हटकर हिंदी में भी कई फिल्में बनी हैं, जिनमें ‘तुम्हारे बिना‘ तो काफी हद तक ‘क्रेमर वर्सेस क्रेमर‘ से मिलती-जुलती है। फिल्म का एक ही पक्ष भारतीय दर्शकों को थोड़ा निराश कर सकता है और वह है संवाद बोलने की शैली और गति जो कि कभी तो लगभग अस्पष्ट हो जाती है। इसके बावजूद फिल्म निःसंदेह न सिर्फ देखने वरन विचार करने योग्य है।

फिल्म : क्रेमर वर्सेस क्रेमर (1979)

भाषा : अंग्रेजी

समय : 104 मिनट

निर्माता : स्टेनली जैफी

निर्देशक : रॉबर्ट बेन्टन

कलाकार : डस्टिन हॉफमैन, मैरील स्ट्रीप, केन एलेक्जेंडर

निर्माण संस्था : कोलंबिया पिक्चर्स

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