क्या कुछ थम रहा है अमेरिका का आर्थिक अश्वमेध
90 के दशक में आर्थिक उत्थान के एक लंबे दौर के बाद अमेरिका की अर्थव्यवस्था का रथ कुछ-कुछ थमने लगा। बेरोजगारी बढ़ने लगी और कंपनियों के दिवाले बढ़ने लगे। उन्हीं दिनों के माहौल पर एक नजर।
1999 का साल अमेरिका के आर्थिक इतिहास के स्वर्णिम युग का चरमोत्कर्ष था। पूरे साल में डू जोंस इंडेक्स (डीओडब्ल्यू इंडेक्स) ने 25 प्रतिशत और ज्यादा प्रचलित नास्दाक ने 85 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की थी। 1952 में तत्कालीन आबादी का सिर्फ चार प्रतिशत अमेरिकी शेयर बाजार में पैसा लगा था, वहीं वर्तमान 28 करोड़ की आबादी का 49 प्रतिशत प्रत्यक्ष-परोक्ष में शेयर बाजार में पैसा लगाने लगे थे।
इंटरनेट इकॉनोमी अपने पूरे जोर पर थी और इसी के चलते ‘टाइम‘ पत्रिका ने वर्ष 1999 के लिए ‘मैन ऑफ द ईयर’ का खिताब दिया ‘अमेजोन डॉट कॉम‘ के संस्थापक जैफ बिजोस को, जो खुद और उनकी कंपनी ‘अमेजोन डॉट कॉम’ कई मायनों में इंटरनेट और डॉट कॉम ई- कॉमर्स युग के परिचायक बन गए थे। ठीक 12 महीने बाद उसी टाइम पत्रिका के साल के पहले अंक के मुख्य पृष्ठ पर कहानी का शीर्षक है- ‘आने वाली आर्थिक मंदी में कैसे जिया जाए।‘ सिर्फ 365 दिनों में ऐसा क्या बदल गया कि अमेरिका में चर्चा जैफ बिजोस से मंदी तक पहुंच गई और क्या वाकई अमेरिका आर्थिक मंदी के कगार पर खड़ा है, क्या यह भी बिजोस की ही तरह मीडिया जनित अधिक है। इसी सवाल का कोई हां या ना में जवाब देना मुश्किल है, पर आज मैं आपके सामने अमेरिका का वर्तमान आर्थिक परिदृश्य और संभावनाएं अवश्य रखना चाहता हूं।
स्वर्णिम अध्याय
क्लिंटन प्रशासन के 8 साल अमेरिका के इतिहास का स्वर्णिम युग ही कहलाएंगे। मोनिका प्रकरण से व्हाइट हाउस की छवि जरूर धूमिल हो गई, पर वॉल स्ट्रीट पर छाई तेजी की चमक ने मानो उस दाग को ढंक दिया। अमेरिका ने दो हजार के पूर्वार्ध में अपने 225 वर्ष के इतिहास की सर्वाधिक लंबी इकॉनोमिक एक्सपांशन के सौ महीने पूरे किए। बेरोजगारी की दर न्यूनतम पर रही और साथ ही साथ महंगाई (इनफ्लेशन) भी बिलकुल कम। 1992 में मंदी के कगार पर खड़ा देश और अरबों डॉलर के बजट घाटे से मुड़कर आज अमेरिकी सरकार का बजट अरबों के आधिक्य (सरप्लस) का बजट होता है। यह सब संभव हो पाया क्लिंटन के नेतृत्व और उनके अपने सलाहकारों की जुगलबंदी द्वारा जिसके सरताज थे अमेरिका के फेडरल रिजर्व के चेयरमैन एलन ग्रीनस्पान।
एलन ग्रीनस्पान : उस्ताद
एलन ग्रीनस्पान की जीवनी पर पिछले दिनों एक किताब निकली है, जिसका टाइटल है ‘मेस्ट्रो‘ (यानी अपने फन का उस्ताद)। 72 वर्षीय ग्रीनस्पान सही मायनों में अर्थव्यवस्था के मेस्ट्रो हैं, एक हैरत अंगेज व्यक्ति जिसे सब ठीक चलने पर भी खुटका लगा ही रहता है कि शायद कुछ ठीक नहीं जो पिछले 20 सालों से हर दिन, हर घंटे लगभग 150 विभिन्न आर्थिक सूचकांक देखता और स्टडी करता है और जिसके सिर्फ एक शब्द से दुनिया के स्टॉक मार्केट ऊपर-नीचे हो जाते हैं। उनके पास सिर्फ एक तार है- फेडरल बैंक की ब्याज की दरें – जिसकी जरा-सी झंकार से वो पूरी अर्थव्यवस्था को सही मार्ग दिखाने का प्रयास करते हैं और पिछले कई सालों से सफल हैं। तभी तो इस साल उन्हें अपना चार वर्षीय कार्यकाल समाप्त होने पर चौथी बार अपने पद पर बने रहने के लिए क्लिंटन ने फिर नियुक्त कर दिया। क्योंकि इसी व्यक्ति के आर्थिक निर्देशों तले अमेरिका ने पिछले सालों में न सिर्फ प्रगति की, वरन विश्व में आई आर्थिक विपदाओं से देशों को उबारने में मदद की। लेकिन ग्रीनस्पान की सफलता के पीछे उनके पांडित्य के साथ छिपा है क्लिंटन और प्रशासन का उन पर विश्वास और उनको दी गई पूरी छूट।
इंटरनेट और डॉट कॉम
इस आर्थिक प्रगति की पूरी ट्रेन को खींच रहा था टेक्नोलॉजी का इंजन, जिसके रहते कुशलता और उत्पादकता कई गुना बढ़ रही थी और फिर आया इंटरनेट-जिसने तो एक पूरे नए समाज और जीने की शैली को ही जन्म दे दिया। अब इंटरनेट और डॉट कॉम कंपनियों के विस्तार के बारे में क्या लिखना, सब जगजाहिर है। पर जो परी कथाओं और महीनों में रंक से राजा बनते हुए इंटरनेट और डॉट कॉम युग ने दिखाया, वह विगत इतिहास में तो किसी को याद नहीं। इस नई व्यवस्था में, जिसमें आपके पास पैसा नहीं, लेकिन आइडिया और उसे सच करने की इच्छा और कार्यशक्ति होना चाहिए, पैसा और साधन देने वाले कई मिल जाएंगे। इसके रहते दुनिया के बदलने की गति ही बदल गई।