लॉयन ऑव द डेजर्ट
किसी भी व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र की बौद्धिक या भौगोलिक स्वतंत्रता पर बाह्य अतिक्रमण आधारभूत मानवीय मूल्यों के खिलाफ है। दूसरों पर जायज-नाजायज सत्ता की लोलुपता सदैव से मानव की कमजोरी और महत्वाकांक्षा रही है। मानवता के इतिहास का लगभग हर पन्ना स्वायत्त एवं स्वच्छंद विचार-व्यवहार की व्यवस्था पर आक्रमण और उसके विरोध की गाथाओं से सना हुआ है।
ऐसे ही एक संघर्ष का जीवंत चित्रण है फिल्म ‘ओमर मुख्तार‘ (यह फिल्म एक और नाम से भी प्रचलित है- ‘लॉयन ऑव द डेजर्ट‘)। फिल्म का कथानक बीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में इटली के फासिस्ट तानाशाह बेनिटो मुसोलिनी द्वारा उत्तरी अफ्रीका के राष्ट्र लीबिया पर सत्ता कायम करने के प्रयत्नों का एक सच्चा वृत्तांत है। बीस वर्षों के अनवरत प्रयासों के बावजूद असीम सैन्य शक्ति से लैस इटली के इन मंसूबों को अंजाम नहीं मिल पाया और उनके मार्ग का सबसे बड़ा रोड़ा था- ओमर मुख्तार।
एक अधेड़, धर्मपरायण, सरल मौलवी, जिसने अपनी मातृभूमि पर आए संकट का डटकर सामना करने के लिए अपनी पूरी जाति को संगठित कर नेतृत्व प्रदान किया। उम्र के तकाजे को नजरअंदाज करते हुए हर मुठभेड़ में अपने लोगों के कंधे से कंधा मिलाकर युद्ध किया। ऐसे ऐतिहासिक किरदार को कलाकार एंथनी क्वीन ने पर्दे पर सजीव कर दिया है।
मुकाबला किसी भी मापदंड पर बराबर नहीं था। आधुनिक हथियारों से सुसज्जित, युद्ध में निपुण, तंदुरुस्त सेना के विरोध में अनपढ़, अप्रशिक्षित कबीले के लोग- जिनके पास अपने घोड़े की रकाब और पुरानी बंदूकों के सिवा कोई आसरा न था। अगर थी, तो अपने राष्ट्र की स्वतंत्रता की चाह, जिसके लिए वे हर कुर्बानी देने को तत्पर थे। पीढ़ी-दर-पीढ़ी चल रहे इस संघर्ष को एंथनी क्वीन के संवाद ने चरितार्थ कर दिया था, जिसका हिंदी रूपांतरण एक राष्ट्रभक्ति गीत है- ‘अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं। सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं।’
मुख्तार को जिंदा या मुर्दा पकड़ने की मुहिम अंततः जनरल गत्जियाली (ओलिवर रीड) को सौंपी जाती है, जो कि मुख्तार तक पहुंचने के लिए किसी भी हथकंडे को बाकी नहीं छोड़ता। किंतु, शुरुआत में मुख्तार को बुड्ढा नौसिखिया समझने वाला जनरल भी आखिरकार उसका लोहा मान ही लेता है। फिल्म को देखते हुए बार-बार भारत की आजादी की लड़ाई, अंग्रेजों द्वारा किए गए अत्याचार और महात्मा गांधी की याद आती है। अपने सिद्धांतों के कार्यान्वयन के लिए हिंसा और अहिंसावादी तरीके से फर्क के बावजूद मुख्तार और बापू की लड़ाई का लक्ष्य एक ही था। एक ओर जहां आजादी पूर्व के भारतीयों को इस फिल्म से बीती यादें ताजा हो जाएंगी, वहीं वर्तमान पीढ़ी स्वतंत्रता के नाम पर हो रहे मखौल के वातावरण में यह सोचने को बाध्य हो जाएगी कि इस आजादी की असली कीमत क्या है। अत्यंत मर्मस्पर्शी और रोचक इस फिल्म में और निखार आ जाता, अगर इसका पार्श्व संगीत कथा की गति और ‘सिचुएशन’ से थोड़ी और अंतरंग जुगलबंदी स्थापित कर लेता।
फिल्म : ओमर मुख्तार (लॉयन ऑफ द डेजर्ट)
समय : 162 मिनट
कलाकार : एंथनी क्वीन/ओलिवर रीड/आरीन पापास/रैफ वालीलोन
संपादक : जॉन शर्ली
संगीत : मोरिस
लेखक : हॉल क्रैग
निर्माता-निर्देशक : मुस्तफाअकाड़
निर्माण : फाल्कन इंटरनेशनल (1981)