पैपिलोन का अदम्य आत्मबल

26 दिसम्बर 1990

पैपिलोन का अदम्य आत्मबलह एक अजीब विडंबना है कि विश्व में मानवाधिकारों और स्वतंत्रता की अलख जगाने वाले जीन रोसयो और वॉल्टेयर जैसे नागरिकों के देश फ्रांस में ही व्यक्ति के आत्मसम्मान और स्वतंत्र जीवनयापन को नारकीय प्रताड़ना से कुचल दिया जाता था। ऐसे ही एक फ्रांसीसी नागरिक हेनरी शायरेर को महज पच्चीस वर्ष की उम्र में हत्या के झूठे आरोप में फंसाकर उम्र कैद की सजा दी गई थी। तीस के दशक में इस प्रकार के बंदियों को तत्कालीन फ्रांस की कॉलोनी, फ्रैंच गयाना (अफ्रीका) भेज दिया जाता था। सजा के प्रारंभिक काल में कई कैदी भागने का प्रयास करते थे, परन्तु लगभग सभी पुनः गिरफ्तार कर लिए जाते थे और दंड होता था- मौत।

हेनरी शायरेर (उर्फ पैपिलोन) अलग था। उसे जितनी बार भागने के जुर्म में गिरफ्तार कर प्रताड़ना दी गई, उसका मनोबल उतना बढ़ता गया। पैपिलोन की भूमिका में स्टीव मक्वीन ने अविस्मरणीय अभिनय का प्रदर्शन किया है। किसी किरदार को निभाते हुए अपने व्यक्तित्व में आत्मसात कर लेने के शायद इससे बेहतर उदाहरण कम ही मिलेंगे।

सहायक भूमिका में लुईस डेगा (डस्टिन हॉफमेन) ने भी शानदार अभिनय किया है। गांधी चश्मा लगाए, एक दुबले-पतले अपने ही ख्यालों में खोए शोधकर्ता की तरह जिसने अपनी जान को बार-बार जोखिम में डालकर पैपिलोन के फरार होने के रास्ते तैयार किए। डेगा शायद खुद भाग जाने का साहस नहीं जुटा पा रहा था। उसने अपनी नियति को स्वीकार कर लिया था, परन्तु पैपिलोन की ललक को भी वह बराबर प्रोत्साहन देता रहा।

मानव के अटूट आत्मविश्वास और साहस की ही कहानी है फिल्म पैपिलोन

पौपिलोन के जीवन का यह प्रभावी फिल्मांकन एक ओर जहां जांबाज, हिम्मत और धैर्य का वृत्तांत है, वहीं दूसरी ओर शताब्दियों से मनुष्य द्वारा मनुष्य पर किए जा रहे अत्याचारों का भी दिल दहलाने वाला ब्यौरा है। फिल्म आधुनिक समाज की जेल व्यवस्था पर भी एक प्रश्नचिह्न खड़ा करती है। घूसखोरी, नृशंसता, भावनाशून्य जेल अधिकारियों और मानव की अस्मिता को चूर-चूर कर देने वाले तरीकों से कैदी एक जिम्मेदार नागरिक कैसे बन सकते हैं? तथाकथित ‘अच्छे‘ और ‘बुरे‘ के वर्गीकरण पर भी फिल्म में गहराई से चोट की गई है। निर्देशक फ्रेंकलिन शैफनर की यह ऐतिहासिक फिल्म दर्शक को सोचने पर मजबूर कर देती है कि क्या यही अत्याचार सुसंस्कृत प्रगतिशील सभ्यता का परिचायक है?

फिल्म : पैपिलोन (हेनरी शायरेर की सत्य आत्मकथा ‘पैपिलोन’ पर आधारित)

प्रदर्शन वर्ष : 1973

भाषा : अंग्रेजी/रंगीन

अवधि : 150 मिनट

निर्देशक : फ्रेंकलिन शैफनर

कलाकार : स्टीव मॅक्वीन, डस्टिन हॉफमेन, विक्टर जौरी, डॉन गोर्डन

प्रस्तुति : कोलम्बिया पिक्चर्स

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