‘सरकार’, जन्मदिन मुबारक हो !!!

11 अक्टूबर 2005

‘सरकार’, जन्मदिन मुबारक हो!!!सिर्फ भारत ही नहीं, वरन् पूरी दुनिया के फिल्म इतिहास में ऐसा दूसरा उदाहरण नहीं मिलेगा कि किसी कलाकार ने अपनी उमर के 63वें साल में उस साल के चार सफलतम फिल्मों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। बॉलीवुड में 2005 की सर्वाधिक ‘हिट’ रही चार फिल्मों- बंटी और बबली, ब्लैक, वक्त और सरकार, चारों ही में अमिताभ बच्चन के किरदार ने सदा की तरह अपनी अमिट छाप छोड़ दी है। आज 11 अक्टूबर को अपने बाबूजी का ‘अमित’, कुछ करीबी रिश्तों के लिए ‘अमितजी’ और करोड़ों चाहने वालों के लिए सिर्फ अमिताभ या ‘बीग बी’ अपने जीवन के 64वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। जन्मदिन तो हर साल आता है, और विशिष्ट लोगों का हर जन्मदिन ‘खास’ ही होता है, लेकिन आज अमिताभ बच्चन के जन्मदिन पर दुआएं और बधाइयां देने का एक खास मकसद है- पिछले 365 दिनों में – चाहे वह विज्ञापन का होर्डिंग हो, या सिनेमा का बड़ा पर्दा, या फिर टीवी का छोटा परदा और मोबाइल फोन के छोटा सा झरोखा- अमिताभ ने अपने हर रूप और रोल में पूरी दुनिया में बसे भारतवासियों के दिलों को बार-बार छुआ है। और यह झंकार सिर्फ एक कलाकार की बेजोड़ कला पर नहीं है, यह तालियां सिर्फ उस गहरी आवाज और विलक्षण व्यक्तित्व तक सीमित नहीं है; अपितु यह अभिवादन है हमारे उन अक्षुण्ण मूल्यों का, जो अमिताभ ने अपने व्यक्तित्व और कृतित्व में जीवंत कर दिया है। यह आदर है पिता हरिवंश राय बच्चन के लिखे ‘अग्निपथ का, जिसे अमिताभ ने हर पल जिया है मानो ‘तू ना रूकेगा कभी, तू ना थमेगा कभी, तू ना थकेगा कभी, कर शपथ!!!

प्रौढ़ावस्था में भी अपनी कुर्सी या काम से ‘चिपके’ रहने की परेशानी तो बहुतों को होती हैं और फिल्म जगत में तो विशेषकर। वहीं दूसरी ओर 1970 से शुरू हुए अपने 36 वर्षीय फिल्मी सफर में गोया अमिताभ ने सिर्फ पिछले 36 महीने ही गुजारे होते, तो भी वह कलाकार के रूप में अपनी अमित छाप छोड़ देते।

अमिताभ ने हर पल जिया है मानो ‘तू ना रूकेगा कभी, तू ना थमेगा कभी, तू ना थकेगा कभी, कर शपथ!!!’

सिर्फ पलभर के लिए आंखें मूंदकर अपने सामने गुजरने दीजिए-बागबान’ के राज मल्होत्रा का माँ-बाप और आज की पीढ़ी को पहचान बताने वाले आत्सम्मान से भरे मार्मिक विचार, ‘सरकार’ में पूरी फिल्म में चुनिंदा संवाद बोलकर भी चाय की प्याली में से उनकी बोलती हुई निगाहें, ‘वीर जारा’ और ‘पहेली’ में छोटी सी गेस्ट एपियरेंस लेकिन सशक्त। वहीं दूसरी और ‘विरूद्ध’, ‘देव’ और ‘खाकी’ जैसी फिल्मों में लड़ाई और मुकाबला करने और सच साबित करने के संघर्ष में एक आंतरिक शक्ति। और सिर्फ अभिनय नहीं, लेकिन डांसेज में भी अमिताभ आज की पीढ़ी से कदम से कदम मिला कर थिरक रहे हैं। ‘वक्त’ और ‘बागबान’ में उनके जोशीले डांसेज के बाद ‘कजरारे’ में तो उन्होंने कमाल ही कर दिया। ‘आइटम नंबर’ जैसे ही एक देसी गाने में अपने बेटे और ऐश्वर्या राय के साथ उन्होंने होश में रहते हुए भी जिस मदहोशी को परदे पर उतारा, वह जादू सारे हिंदुस्तान के मोबाइल्स की रिंगटोन पर सुनाई दे रहा है। लेकिन अमिताभ-2 का अधिकांश रोल अपने आप में बेमिसाल है। और फिर है ‘ब्लैक’ – जो खुद अमिताभ भी अपने जीवन के सर्वश्रेष्ठ रोल में गिनाते हैं। सिनेमा जगत की दूसरी विभूति लताजी ‘ब्लैक’ देखकर इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने अमिताभ को ‘ब्लैक’ में उनके अभिनय पर बधाई देते हुए एक पत्र लिखा।

अमिताभ के करियर को तीन भागों में देखा जा सकता है -स्टार’ से ‘सुपरस्टार’ बनते हुए ‘एंग्री यंगमैन’ के रूप में अमिताभ; जिस तक सिर्फ सलीम-जावेद, मनमोहन देसाई, प्रकाश मेहरा और यश चोपड़ा जैसे चुनिंदा फिल्मकार ही पहुंच सकते थे, और उसकी ‘स्टारडम’ में इनका भी बड़ा योगदान था। फिर आया दौर बीमारी, बोफोर्स और एबीसीएल का, जिसने अमिताभ जैसे हर दिल अजीज के घर को भी नीलामी की कगार तक पहुंचा दिया। यह दिन अमिताभ के जीवन के सबसे विषम दिन थे। अमिताभ चाहते तो उन सब जिम्मेदारियों से अपने आपको बड़े आराम से विलग कर सकते थे, दुनिया में अधिकांश लोग वैसा ही करते हैं, और उसके बावजूद फिल्म और इतिहास में उनका नाम सदा के लिए दर्ज तो हो चुका था। लेकिन यह अमिताभ के लिए काफी नहीं था। अपने कुल और पिता हरिवंश राय बच्चन के नाम और प्रतिष्ठा पर लगा एक भी संदेह या दाग अमिताभ को चैन से जीने नहीं दे रहा था। सौ साल बाद भी कोई बच्चन नाम के साथ किसी विवाद का भी जिक्र करे, यह उन्हें बर्दाश्त नहीं था। यही थे उनकी खानदानी गुण। मूल्य और ‘संस्कार’ जिन्होंने उनके जीवन के तीसरे और अविस्मर्णीय सोपान को जन्म दिया ‘कौन बनेगा करोड़पति’ और अपनी सुनहरी फ्रेंच कट ‘दाढ़ी’ के द्वारा। इसी अग्निपरीक्षा में उत्तीर्ण होकर अमिताभ मानव से महामानव और भारत के असली रत्न बन गए।

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