अमिताभ करीब से
पसंदीदा भोजन : भारतीय शाकाहारी
पसंदीदा फूल : बेला
पसंदीदा किताब : मुहम्मद अली की आत्मकथा ‘अली’
पसंदीदा चित्रकार : सुभाष अवचट
पसंदीदा पाश्चात्य पोशाक डिजाइनर : अरमानी
पसंदीदा भारतीय पोशाक डिजाइनर : अबु संदीप
पसंदीदा जूते : लोफर्स
पसंदीदा गाड़ी : लांगिनेस
पसंदीदा शौक : फोटोग्रॉफी
पसंदीदा पोशाक : कुर्ता, पाजामा
पसंदीदा भारतीय फिल्म : कागज के फूल
पसंदीदा हॉलीवुड फिल्म : गॉडफादर
पसंदीदा भारतीय गायक : शुभा मुदगल
(जया बच्चन द्वारा प्रस्तुत अमिताभ की जीवन घटना “टू बी ऑर नॉट बी” पुस्तक से साभार)
एक सच्चे कलाकार की प्रतिबद्धता
शराबी :
1983 में दिवाली मनाते हुए दिल्ली में एक पटाखा मेरे बाएं हाथ में फट गया था। पूरी हथेली जल गई थी और चमड़ी में बहुत जलन थी। इसलिए मुझे शराबी की शूटिंग के दौरान काफी समय अपने बाएं हाथ को पेंट की जेब में मजबूरन रखना पड़ा था। ‘मुझे नौलखा मंगा दे‘ में पूरे समय नुकीले घुंघरू को अपने हाथ पर बजाना था, जो बहुत दर्दनाक था। उस गाने में मेरे हाथों से निकलता खून एकदम असली था- खुद मेरा।
डॉन :
उन दिनों मैं 2 शिफ्ट कर रहा था। सुबह नास्तिक और फिर दोपहर 1 से रात 10 बजे तक डॉन। इसके कारण दोनों पावों में छाले पड़ गए थे। मुझे ‘खई के पान बनारस…‘ के लिए नंगे पांव शूटिंग करनी थी और मैं तो ठीक से चल भी नहीं पा रहा था। डॉक्टरों को बुलाना पड़ा। और उन्होंने मुझे पांव की एड़ी को सुन्न करने के इंजेक्शन दिए। उसके बाद मैं वह डांस कर पाया।
कभी खुशी कभी गम :
‘शावा शावा‘ वाला डांस के लिए करण जौहर ने मुझे बहुत आग्रह किया। लेकिन मैं बहुत अशक्त महसूस कर रहा था। मेरी कमर में उस समय असहनीय दर्द था। लेकिन फिर भी फराह खान के साथ मैंने कई बार रिहर्सल की। वह मेरे दर्द से हो रही खामियों को नजरअंदाज करती रहीं। शाहरुख तो कुछ पल में ही सारे कदम समझ गए। लेकिन मुझे तो बहुत रिहर्सल करनी पड़ी। मुझे बहुत सारी दर्द निवारक गोलियां खानी पड़ी ‘शावा शावा’ के लिए।
अमिताभ की जिंदगानी, बच्चन परिवार की जुबानी…
अभिषेक :
‘हमेशा दूर रहने के बावजूद पा हमेशा मेरे पास ही थे। उन्होंने कभी भी घर पर हमें उनकी कमी महसूस नहीं होने दी। कुछ समय पहले तक उन्हें मुझे चिट्ठियां लिखने का बड़ा शौक था – हर जगह से, आउटडोर शूटिंग, प्लेन के सफर, विदेशों से और मैं भी कोशिश करता था, उनके जवाब देने के लिए। वह बाहर इतने बड़े कलाकार थे, लेकिन घर में वह सिर्फ हमारा पा थे। किसी भी विषय पर पा मुझे बहुत गहराई से अपना दृष्टिकोण समझाते हैं, लेकिन मुझे अपना फैसला खुद करने के लिए प्रोत्साहन देते हैं। पा आज भी मानते हैं कि वह तो एक साधारण कलाकार हैं, लेकिन मेरी और दुनिया की नजर में वे शायद कुछ और हैं’
श्वेता :
अमिताभ बच्चन की बेटी होना कैसा लगता है। मैं आज भी इस सवाल का जवाब नहीं जानती। क्योंकि मुझे तो उनके साथ हमेशा एक पिता का ही रिश्ता मालूम है, एक ‘स्टार‘ का नहीं। शाम को शूटिंग से घर लौटने के बाद पापा दिन भर की कोई बात नहीं करते थे। शूटिंग अच्छी रही या नहीं, उनका दिन अच्छा रहा या नहीं, हमें वह दिन भर की फिल्मी दुनिया के माया जाल से हमेशा चाह कर अलग ही रखते थे। एबीसीएल और बोफोर्स के दिन उनके जीवन के सबसे विषम दिन थे। वे किसी से कोई बात नहीं करते थे। हमें इंतजार रहता था दिल्ली से अमर सिंहजी के आने का। जिनसे पापा खुलकर अपनी पीड़ा जाहिर कर पाते थे। और फिर ‘कौन बनेगा करोड़पति‘ के बाद उनका सितारा फिर बुलंद होने लगा।’
जया :
‘सिलसिला में मेरे पात्र को लेकर कई चर्चे थे। मैं खुद भी यश चोपड़ाजी के ऑफर पर दो मन में थी – हां करूं या नहीं। फिर मैंने निर्णय किया, क्या फर्क पड़ता है। मुझे उस वक्त फिल्मों में रोल किए 4 साल हो गए थे। और कैमरा के सामने लौटने का यह अच्छा अवसर था। और मुझे कोई अफसोस नहीं है वह रोल करके। और उस फिल्म के दो सबसे चहेते सीन थे – एक जब वो मुझे कहकर घर छोड़कर जा रहे थे कि वह दूसरी औरत से प्यार करते हैं, और दूसरा अस्पताल में संजीव कुमार के साथ… आज अमितजी एक कलाकार के रूप में बहुत ही अलग मुकाम पर हैं। वे तरह-तरह के रोल और सिनेमा करने को तैयार हैं, तत्पर हैं। फैशन शो के कैटवॉक पर चढ़ने में भी वे बहुत उत्साहित नजर आ रहे थे। ऐसा लगता है कि उन्हें भी अनदेखे रोल और नई चुनौतियों में काम करने में आनंद आ रहा है।’