यूं हुआ देश में विमान सेवाओं का जन्म

29 जुलाई 1992

यूं हुआ देश में विमान सेवाओं का जन्मदिसंबर 7, 1937। विमान प्रकार-वेको.सी-6 । इंजिन प्रकार जाकोबो; एच.डी.-225 । बंबई से इंदौर-उड़ान समय 2 घंटे 20 मिनट। वापसी दिसंबर 8 इंदौर से बंबई, समय 2 घंटे 15 मिनट। सहचालक नेविल विन्टसेन्ट के साथ। आधा उड़ान समय दर्ज।

ऊपर लिखे इस वर्णन को पहली बार पढ़ने पर तो शायद आपको कुछ ज्यादा समझ नहीं आएगा, लेकिन अगर यह बताया जाए कि यह ‘पायलट लॉग बुक’ (किसी भी विमान चालक द्वारा उड़ान के गंतव्य, प्रस्थान व आगमन के समय आदि के विवरण को दर्ज करने की पुस्तिका) का एक पन्ना है, तो शायद स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। आपको यह जानकर बेहद आश्चर्य होगा कि यह विवरण किसी साधारण पायलट की ‘लॉग बुक‘ का नहीं, बल्कि भारत में उड्‌डयन के प्रणेता, भारत रत्न जे.आर.डी. (जहांगीर रतनजी दादाभाई) टाटा की ऐतिहासिक ‘लॉग बुक’ से है। जे.आर.डी. की ‘पायलट लॉग बुक‘ और उसमें इंदौर का जिक्र, वह भी ठेठ 1937 का? थोड़ा सब्र कीजिए।

भारत में हवाई डाक सेवा का शुभारंभ 15 अक्टूबर 1932 को हुआ था, जब कराची (विभाजन से पूर्व भारत में) से अहमदाबाद होते हुए बंबई की उड़ान भरकर जे.आर.डी. टाटा ने इतिहास रचा था।

दी इंडियन नेशनल एअरवेज ने प्रस्तावित विमानतल पर रात्रि में विमानों के उतरने से संबंधित सुविधाओं की व्यवस्था करने के लिए शासन से निवेदन किया है

उस उड़ान के कुछ ही समय पहले जे.आर.डी. और उनके ‘नेविल विन्टसेन्ट‘ के संयुक्त प्रयासों के बाद टाटा एअर लाइंस का जन्म हुआ था। वह उद्‌घाटन उड़ान टाटा एअर लाइंस के ही विमान ‘डी. हैवीलैण्ड पस मोथ’ में पायलट के रूप में जे.आर.डी. टाटा ने 6 घंटे 50 मिनट में पूरी की थी।

वैसे मूलभूत योजना कुछ इस प्रकार थी कि तत्कालीन इंपीरियल एयरवेज लंदन से कराची तक हवाई डाक सेवा का संचालन कर रही थी। उसी सेवा से पूरे भारत को जोड़ने के लिए कराची से अहमदाबाद होते हुए बंबई और फिर बंबई से बेलारी होते हुए मद्रास विमान से डाक और थोड़े ही समय बाद यात्रियों को ले जाने का सिलसिला प्रारंभ हुआ। धीरे-धीरे देश के अन्य हिस्से भी विमान सेवा के जरिये जुड़ने लगे।

इसी तारतम्य में इंदौर में भी हवाई पट्‌टी निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हुई। सन्‌ 1934 की होल्कर स्टेट एडमिनिस्ट्रेशन रिपोर्ट जिसके प्रमुख अंश इंदौर गजेटियर में उद्‌धृत हैं, के अनुसार, ‘मेसर्स टाटा एंड संन्स, विमान विभाग (टाटा एअर लाइंस का प्रारंभिक स्वरूप) के मिस्टर विन्टसेन्ट से परामर्श करने के बाद विमानतल के निर्माण के लिए बिजासनी स्थल को चुना गया। संपूर्ण योजना मंजूर कर दी गई है। लागत का अनुमान 1,84,092 रुपए है। प्रथमावास्था में 14,500 रुपए की अनुमानित लागत से एक विमान-शाला (हेंगर) के लिए भी व्यवस्था की गई है।’

1 फरवरी, 1935 को कमांडर वॉट, विमानतल अधिकारी, कराची ने स्थल का निरीक्षण किया और अपने सुझावों सहित प्रतिवेदन प्रस्तुत किया, जिसे तत्कालीन सरकार ने स्वीकृति प्रदान कर 2,20,488 रुपए की राशि मंजूर कर दी। कमांडर वॉट के प्रतिवेदन में भी रात्रि अवतरण-क्षेत्र का जिक्र था। वहीं दूसरी ओर 1936 के आते टाटा एअर लाइंस में नए अमेरिकी ‘वेको वाय.क्यू.सी.-6′ विमान का आगमन हो गया। ब्रिटिश ‘पस मोथ’ के 120 हॉर्स पॉवर शक्ति वाले इंजिन के मुकाबले ‘वेको‘ की इंजिन 225 हॉर्स पॉवर की थी। यह ‘पथ मोथ’ से एक और मायने में बेहतर था- ‘पस मोथ’ के इंजिन को स्वयं चालक को हाथ से घुमाकर शुरू करना पड़ता था, जबकि ‘वेको‘ में यह व्यवस्था स्वचालित थी। इसी ‘वेको‘ के आगमन के पश्चात टाटा एअर लाइंस ने दिल्ली से ग्वालियर, भोपाल और इंदौर होते हुए बंबई के लिए हवाई डाक सेवा प्रारंभ करने का विचार बनाया। चूंकि उस वक्त टाटा एअर लाइंस में सिर्फ तीन ही पायलट थे (जे.आर.डी., विन्टसेन्ट और होमी भरूचा), इसलिए जे.आर.डी. को भी विमान चालन का काफी भार उठाना पड़ा था।

9 नवंबर, 1937 को दिल्ली से बंबई की उद्‌घाटन उड़ान को बिदा करने के लिए दिल्ली की वेलिंगटन हवाई पट्‌टी पर खासी भीड़ जमा थी। टाटा लाइंस के दो विमानों से उस सेवा की शुरुआत हुई, जिसमें से एक नेविल विन्टसेन्ट उड़ा रहे थे। उस विमान में 3,500 चिटि्‌ठयां और एक यात्री बैठा था। दूसरे विमान में तीन पत्रकार थे। रेशम की चार नीली सुनहरी थैलियों में तत्कालीन वाइसराय द्वारा तीनों रियासतों के प्रमुखों और बंबई के गवर्नर के लिए शुभकामना संदेश थे। पूरे समारोह की रपट रेडियो से प्रसारित की गई थी। उद्‌घाटन सेवा में कुल उड़ान समय 6 घंटे 15 मिनट का रहा। यानी, 10000 करोड़ रुपए से भी अधिक कारोबार वाले समूह का प्रमुख तब इंदौर सिर्फ ‘डाकिए’ के रूप में आता था। हां, इसमें उसकी पूर्ण स्वेच्छा थी, कोई मजबूरी नहीं। उपरोक्त संदर्भ के साथ उल्लेखनीय है कि इंदौर में नियमित हवाई सेवा 26 जुलाई, 1948 को प्रारंभ हुई। यहां यह भी विचारणीय है कि जिस रात्रि विमान सेवा हेतु विमानतल को सुसज्जित करने का प्रावधान सन्‌ 1935 में बना था और जिसे शासन की मंजूरी भी मिल गई थी, उसे नागरिक विमानन सेवा में लागू होते-होते 53 साल लग गए, जब 20 अप्रैल 1988 को इंदौर हवाई अड्‌डे पर रात्रि विमान सेवा की अंतिम रिहर्सल की गई।

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