गौरवपूर्ण आयोजन – शुभ स्वागतम्‌

7 अक्टूबर 1989

गौरवपूर्ण आयोजन - शुभ स्वागतम्‌जिस फासले को कम करने के लिए पिछले 40 वर्षों से कई वार्ताएं असफल रहीं, जिस खाई को पाटने में स्व. महात्मा गांधी, भुट्‌टो और श्रीमती इंदिरा गांधी जीवनपर्यंत असफल रहीं, उसे एक लकड़ी का बल्ला और एक गेंद अत्यंत सहजता से ओझल कर देंगे। यह कल्पनातीत था। परंतु यह सत्य है। भारतीय उपमहाद्वीप में क्रिकेट सचमुच शांति और बंधुत्व के मसीहा के रूप में चरितार्थ हो गया है। तभी तो रिलायंस कप का ध्रुव वाक्य सार्थक प्रतीत होता है ‘शांति के लिए क्रिकेट।

तीन विश्व कप आयोजन…

1975 से 1983 तक तीन विश्व कप आयोजन क्रिकेट विशेषकर एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट को बढ़ावा के लिए कारगर सिद्ध हुए हैं। इन तीनों में कई समानताएं थीं। तीनों बार यह आयोजन क्रिकेट की जन्मभूमि और उसे राष्ट्रमंडल में प्रचार-प्रसार करने वाले देश इंग्लैंड में हुआ। तीनों विश्वकप का आयोजन प्रूडेंशियल इंश्योरेंस कंपनी ने किया। तीनों में वेस्ट इंडीज फाइनल में पहुंची और तीनों बार विजेता टीम ने एक दिवसीय क्रिकेट की प्रचलित नीति के विरुद्ध पहले बल्लेबाजी करते हुए विजय प्राप्त की।

परंतु तृतीय विश्वकप के बाद प्रूडेंशियल इंश्योरेंस कंपनी ने प्रायोजक बने रहने में असमर्थता जाहिर की। ऐसा ही कुछ विचार इंग्लैंड के टेस्ट काउंटी क्रिकेट बोर्ड का भी था पर क्रिकेट के मैदानों की दृष्टि व मौसम के हिसाब से इंग्लैंड सर्वोत्तम था। खिलाड़ियों को आवागमन में ज्यादा समय नहीं व्यतीत करना पड़ता था और फिर वहां पर जून के महीने में शाम 7.30 बजे तक रोशनी बनी रहती है। फलस्वरूप मैच 60 ओवर प्रति टीम के हुआ करते थे, पर क्रिकेट और विश्व कप किसी देश की जागीर तो है नहीं। इस पर तो संपूर्ण क्रिकेट विश्व का समान अधिकार और दायित्व है।

भारत और एक दिवसीय क्रिकेट के संबंध 1975 में स्थापित हुए। 1971 तक शैशव काल समाप्त नहीं हुआ था। परंतु, 1983 में भारतीय क्रिकेट टीम ने एक धमाका-सा कर दिया

भारत और एक दिवसीय क्रिकेट के संबंध 1975 में स्थापित हुए। 1971 तक शैशव काल समाप्त नहीं हुआ था। परंतु, 1983 में भारतीय क्रिकेट टीम ने एक धमाका-सा कर दिया। विश्व विजयी वेस्ट इंडीज टीम जो कि दिग्गजों से सजी हुई थी, सिर्फ 183 रन भी न बना सकी और फाइनल में पराजित हुई। भारत क्रिकेट का अधिकृत विश्व चैंपियन बन गया। 18 जून, 1983 तारीख फाइनल की नहीं है, परंतु यह दिन उतना ही महत्वपूर्ण था। भारतीय टीम के कप्तान कपिल देव ने दबाव में जिस तरह धाराप्रवाह बल्लेबाजी का प्रदर्शन किया। भारत के इरादे तो उसी दिन से नजर आने लगे थे। 6 छक्कों और 16 चौकों की मदद से कपिल के नाबाद 175 रन क्रिकेट का इतिहास बन गए थे और उस दिन जब कपिल बल्लेबाजी करने मैदान में उतरे थे तब भारत के पांच विकेट मात्र 17 रनों पर गिर चुके था। उसके बाद जो हुआ वह तो अब इतिहास है।

अभिमान के बजाय आत्मविश्वास से ओतप्रोत टीम अंततः अपने अभियान में सफल रही थी। रातों-रात क्रिकेट के 14 खिलाड़ी पूरे भारत के लाड़ले बन गए थे। क्रिकेट प्रेमियों ने उन्हें सिर आंखों पर बैठा लिया। वो दिन था और आज का दिन है- 25 जून को लार्ड्‌स की वह शाम भारत के समय के अनुसार अर्द्धरात्रि में जीत की मदहोशी और पटाखों की गूंज अभी भी सुनाई दे रही है। उसी परिणाम को स्वदेश में दोहराने की इच्छा ने भारत को चौथे विश्वकप में मेजबानी करने के लिए प्रेरित किया। आज इस निष्कर्ष पर पहुंचना कि क्या भारत अकेले इस आयोजन को नहीं कर सकता था, बहुत कठिन है। हां, इतना निश्चित है कि संयुक्त आयोजन करने से दोनों राष्ट्रों के संगठनों और जनता के बीच क्रिकेट का जो सेतु बन गया है, अद्वितीय है।

आयोजन का आर्थिक भार कौन उठाएगा?

इतने विशाल पैमाने पर हो रहे आयोजन का आर्थिक भार कौन उठाएगा? कई अंतरराष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियां इस आशय के प्रस्ताव लेकर क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के दरवाजे खटखटाने लगीं। किंतु, अत्यंत अल्प समय में बेशुमार समृद्धि और शोहरत अर्जित करने वाली पूर्ण स्वदेशी रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड का प्रस्ताव बोर्ड को उत्तम लगा। प्रमुख कारण यह था कि पिछले वर्ष जब बोर्ड को तैयारियों के लिए आर्थिक स्त्रोतों की तीव्र आवश्यकता थी, रिलायंस ने उसी समय उनकी जरूरत को पूरा कर दिया था।

विश्व कप को रिलायंस कप का नाम प्रदान करना सस्ता सौदा नहीं था। सिर्फ नामांकन के रिलायंस कंपनी को 2.20 करोड़ रुपए बोर्ड को देने पड़े। क्या सिर्फ नामांकन के लिए कुछ महंगा सौदा नहीं था? रिलायंस के निदेशक अनिल अंबानी के अनुसार पिछले छः महीनों में रिलायंस शब्द का उपयोग इस महाद्वीप में असंख्य बार नागरिकों और मीडिया द्वारा किया जाएगा इस विज्ञापन की क्या कोई कीमत आंकी जा सकती है? इसके अलावा 2.60 करोड़ रुपए में रिलायंस की सहभागी कंपनी मुद्रा कम्युनिकेशन ने सभी 21 केंद्रों में स्टेडियम के अंदर के विज्ञापन अधिकार खरीद लिए। श्री अंबानी ने एक अंग्रेजी मासिक को दिए गए साक्षात्कार में कहा- बोर्ड को हमारा यह प्रस्ताव इसलिए पसंद आया, क्योंकि उन्हें हर विज्ञापनदाता से बातचीत करने के झंझट से मुक्ति मिल गई। यह सारा काम मुद्रा ने अपने हाथों में ले लिया और लगभग 90 प्रतिशत विज्ञापन बोर्ड आरक्षित हो चुके हैं। रिलायंस ने इसके अलावा दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले एक कार्यक्रम पर भी काफी खर्च किया है। कुल मिलाकर रिलायंस कंपनी को लगभग 6 करोड़ रुपए का भुगतान करना पड़ा है।

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