पढ़िए उपन्यास बिना कागज-स्याही के !

5 अप्रैल 2000

पढ़िए उपन्यास बिना कागज-स्याही के !ज से ठीक दो साल पहले अमेरिका में हम विश्व की दूसरे नंबर की प्रकाशन कंपनी क्यूबेकोर के लिए कुछ सॉफ्टवेयर बनाने में सहयोग दे रहे थे। उन दिनों इंटरनेट का बुखार अमेरिका में अपनी पूरी रवानी पर था और ऐसा लग रहा था कि जीवन का शायद ही कोई अंग इंटरनेट से अछूता रह पाएगा।

उसी के रहते एक दिन मजाक में दोपहर के भोजन के समय मैंने कंपनी के अधिकारी पॉल गैबरी से कहा- पॉल, कहीं ऐसा तो नहीं होगा कि प्रकाशन की जरूरत ही न पड़े और किताबें भी इंटरनेट पर मिलने लगेंगी और कुछ ऐसे संयंत्र आ जाएंगे जिसमें सैकड़ों किताबें समा जाएंगी। पॉल ने भी हंसकर कहा, हां हो तो सकता है।

न मैं गंभीर था न पॉल, पर परिवर्तन के कदम तो उस ओर चल ही पड़े थे। कुछ दिनों पहले एक कंपनी का नाम सुना, जिसमें आज एक पुस्तकनुमा इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्म है जिसमें काफी ‘मैटर’ पढ़ सकते हैं, बिना कागज के। यानी एक तरह की इलेक्ट्रॉनिक बुक रीडर।

पर हाल ही में इसी तर्ज पर अमेरिका में धूम मचा दी उपन्यासकार स्टिफन किंग के 66 पन्नों के लघु उपन्यास ‘राइडिंग द बुलेट्‌स‘ ने। यह सिर्फ कम्प्यूटर संस्करण में ही जारी हुआ, यानी उपन्यास कहीं भी बाजार में सामान्य कागज पर छपे उपन्यास के रूप में नहीं बिक रहा था, बल्कि यह सिर्फ इंटरनेट वेबसाइट जैसे www.amazon.com पर मुफ्त में डाउनलोड के लिए उपलब्ध है और प्राप्त आंकड़ों के अनुसार पहले ही दिन ‘राइडिंग द बुलेट्‌स‘ के 5 लाख डाउनलोड हो चुके थे। क्या है यह नया जादू ‘ई-बुक‘ का? क्या यह सिर्फ एक कौतूहल है या वाकई आने वाले दिनों में उपन्यास ऐसे ही बिकेंगे। हालांकि किंग का यह उपन्यास तो मुफ्त था और क्या कागज-स्याही का युगांतर आ गया है?

कुछ दिनों पहले एक कंपनी का नाम सुना, जिसमें आज एक पुस्तकनुमा इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफार्म है जिसमें काफी ‘मैटर‘ पढ़ सकते हैं, बिना कागज के। यानी एक तरह की इलेक्ट्रॉनिक बुक रीडर

सवाल सिर्फ किताबों तक ही सीमित नहीं है। फिल्में, गाने, एलबम, इंटरनेट और उससे जुड़े नए, लेकिन सस्ते उपकरणों ने यह संभव कर दिया है कि लोग घर बैठे फिल्म बना सकते हैं और वेबसाइट पर प्रदर्शन कर सकते हैं आदि। ई-बुक का एक और फायदा है कि अब कोई भी सर्वाधिक बिकने वाली पुस्तक की छपी हुई प्रतियों की कमी (आउट ऑफ प्रिंट) नहीं होंगी। इलेक्ट्रॉनिक पुस्तकों में पाठकों की रुचि बढ़ाने के लिए हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। इलेट्रॉनिक्स पुस्तकों के अक्षर आम पुस्तकों की तरह दिखें, इस बारे में बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनियां विशद्‌ शोध कार्य कर रही हैं।

इससे मानवीय सृजन की अभिव्यक्ति के ये सारे अवयव अब धीरे-धीरे हर आम और खास की पहुंच में होंगे, ताकि अगर उसके दिल में कोई विचार कुलबुला रहा है, तो किसी निर्माता या प्रकाशक के राजी नहीं होने पर उसका विचार दफन होकर नहीं रह जाएगा।

क्या है इलेक्ट्रॉनिक बुक रीडर यानी चलती-फिरती पर्सनल लायब्रेरी?

कुछ अग्रणी कंपनियों ने इस तरह के इलेक्ट्रॉनिक बुक (ई-बुक) प्लेटफॉर्म विकसित किए हैं, जिनकी मदद से इंटरनेट द्वारा किसी भी चाही पुस्तक को डाउनलोड करके बाद में इन्हें यात्रा के दौरान या स्वीमिंग पूल के किनारे बैठकर अथवा सुविधा अनुसार अन्य किसी भी जगह पढ़ा जा सकता है। ज्यादातर ई-बुक रीडर प्लेटफॉर्म किताबों या पत्र-पत्रिकाओं के आकार में ही विकसित किए गए हैं। कंपनियों ने कोशिश यह की कि पढ़ने वालों को अक्षर साफ-सुथरे दिखाई दें तथा पुस्तकें पढ़ने में आने वाली अधिकतर परेशानियों को ई-रीडर में दूर किया जा सके। ई-बुक रीडर की मदद से न केवल मनचाही पुस्तकें पढ़ी जा सकती हैं, बल्कि इनमें ग्रॉफिक्स तथा चित्र भी बखूबी देखे जा सकते हैं। अक्षरों को अपनी जरूरत के मुताबिक छोटा-बड़ा करना, एक साथ अपनी पंसदीदा कई पुस्तकों को डाउनलोड करने की सुविधा तथा निश्चित समय के बाद स्वतः पेज बदलना इन चलती-फिरती पर्सनल लाइब्रेरी जैसी मशीनों की अन्य सुविधाएं हैं।

रिचर्ड ब्रास : सूचना युग के गटेनबर्ग

दुनिया को कागजरहित समाज बनाने की परिकल्पना को साकार करने हेतु हजारों लोग दिन-रात जुटे हैं। उनमें एक उल्लेखनीय नाम है रिचर्ड ब्रास का। ब्रास पिछले 20 वर्षों से ई-बुक रीडर को इस तरह से विकसित करने में लगे हुए हैं कि आम आदमी उसमें विद्यमान इलेक्ट्रॉनिक मैटर को एक सामान्य पुस्तक की तरह ही पढ़ सके। सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात तो यह है कि ई- बुक रीडर की कल्पना को साकार एक ऐसा व्यक्ति कर रहा है जिसके पास विश्वविद्यालय की कोई डिग्री नहीं है। रिचर्ड ब्रास की रुचि ई-बुक रीडर विकसित करने में तब से ज्यादा बढ़ी, जब एक पत्रकार के रूप में उनकी खराब भाषा (स्पेलिंग) के कारण उन्हें काम में परेशानी हुई। 48 वर्षीय रिचर्ड इरा ब्रास विभिन्न सॉफ्टवेयर कंपनियों में इस परिकल्पना को साकार करने में जुटे रहे तथा रिटायरमेंट के बाद माइक्रोसॉफ्ट ने उन्हें 1997 में ई-बुक रीडर पर काम करने का प्रस्ताव दिया। ब्रास तब से अनवरत अपने काम में जुटे हुए हैं। इसी बीच कंपनी ने ई-बुक रीडर बाजार में लांच कर दिए हैं, जिनकी मदद से इंटरनेट के जरिये आसानी से किताबों को डाउनलोड किया जा सकता है। ब्रास और उनकी 100 लोगों की टीम के सामने ई-बुक्स को आम पुस्तकों की तरह सुलभ और पढ़ने में आरामदायक बनाने के साथ-साथ सबसे बड़ी चुनौती है लोगों की इसमें रुचि पैदा करना। अभी तक ई-बुक्स ने बहुत ज्यादा बिजनेस नहीं किया है।

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